Sunday 7 March 2021

एक यक्ष प्रश्न-

 एक यक्ष प्रश्न-

🤔🤔🤔🤔🤔

माता पार्वती की रसोई में खाने वाले, शिव-शक्ति जी के साक्षात दर्शन व उनकी साधना करने वाले, उनसे वरदान प्राप्त करने वाले, कुछ वर्ष कैलाश के दिव्य वातावरण में रहने वाला रावण पतित व मानवता का दुश्मन षड्यंत्रकर्ता कैसे बन गया?


ऐसे ही माता वन्दिनियाँ के हाथों की रसोई खाने वाले, गुरु के साक्षात दर्शन करने वाले व साधना करने वाले वरिष्ठ साधक षड्यंत्रकर्ता कैसे बन गए? क्या इनकी साधना से मुक्ति सम्भव है? क्या इनकी साधना फलित होगी?


उत्तर-  जिस तरह मनुष्य का स्वास्थ्य वर्तमान समय में वह कितना स्वास्थ्यकर खा रहा है व कितना योग व्यायाम कर रहा है तय करता है। उसी तरह वर्तमान के पाप पुण्य पिछले कर्मो को प्रभावित करेंगे।


 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, जो जैसा जिस मार्ग का चयन होगा, उस ओर ही अच्छा या बुरा चयनानुसार परिणाम होगा।


अंगुलिमाल और डाकू रत्नाकर हिंसा व पाप मार्ग छोड़कर जिस क्षण से सन्मार्ग की ओर बढ़े उनका जीवन बदलने लगा व वह सन्त बन गए। उनके नए पुण्य कर्मो ने उनके पुराने पापों को नष्ट करना शुरू कर दिया।


इसीतरह रावण व भीष्म ने साक्षात ईश्वर की शरण मे साधना की वरदान प्राप्त किये। जिस क्षण रावण ने माता कैकसी और नाना के बहकावे में कुमार्ग चुना, जिस क्षण भीष्म पितामह ने पिता के मोह में अधर्म को भी वचनबद्ध होकर संरक्षण देने का वचन दे डाला। उस क्षण से उनके नए कर्मो ने पुण्य कर्मों को क्षीण करना शुरू कर दिया। द्रोण पुत्र मोह में फंसकर अधर्म के साथी बने, तो उनकी पुण्य कीर्ति नष्ट हो गयी।


एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती। विनाश ही विनाश रावण का हुआ। इसी तरह भीष्म ने वचनबद्ध होकर मत्स्यगंधा, धृतराष्ट्र व उनके पुत्रों के अनीति को संरक्षण देकर विनाश को आमंत्रित किया व महाभारत के युद्ध मे बाणों की शैय्या प्राप्त किये।


इसी तरह माता जी की रसोई का खाने वाले और गुरु के साक्षात दर्शन करने वाले, प्राण दीक्षा लिए हुए जो साधक अनीति मार्ग पर किसी के बहकावे में चल पड़े हैं।उनके नए कर्म पुराने पुण्य कर्मों को क्षीण कर देंगे। वर्तमान गुरुद्रोह प्राचीन गुरुभक्ति के पुण्य को नष्ट कर देगा। वर्षों की संचित साधना कालनेमि का साथ देने के कारण पाप क्षिद्र से ख़ाली हो जाएगा। अब यह पतित होने पर नरकगामी होंगे।


भटका हुआ साधक ही राक्षस बनता है, उसका प्रथम कार्य होता है सेना का विस्तार करना। अतः वह पुरानी साधक की इमेज का (रावण द्वारा लिए साधु वेष) की तरह दुरूपयोग करेगा। जगह जगह भ्रमण करके मीटिंग करके लोगों को गुरु परिवार के ख़िलाफ़ भड़काने का कार्य करेगा। जिसका चित्त भ्रमित हुआ और जो लक्ष्मण रेखा पार किया वह षड्यंत्रकर्ता की मायाजाल में ग्रसित हो जाएगा। कालनेमि की सेना का हिस्सा बन जायेगा।


सतर्क व चैतन्य रहें, अन्यथा उनकी चिकनी चुपड़ी कालनेमि युक्त बुद्धि चातुर्य के जाल में फंस जाएंगे। पतन की गर्त में गिर जाएंगे।


देवता की आराधना करके अनुदान वरदान प्राप्त करने वाले राक्षस ही बाद में लोगों से देवताओं की पूजा बन्द करवाते हैं। ऐसे ही गुरु व उनके परिवार से लाभ प्राप्त करने वाले भटके साधक ही उनके परिवार का समर्थन लोगों से बन्द करने की अपील करते हैं।


समस्या वही प्राचीन है, अब निर्णय तो आपको ही करना है कि आपको भ्रमित होना है इनसे मीटिंग करके या इनसे दूरी बनानी है। 


हम इन समस्त कालनेमी साधक से दूरी बनाने में ही अपना भला समझते हैं, चाहे पहले हम उनके चरण वंदन ही क्यों न करते हों। अब उनकी नीयत जानने के बाद अब उनसे सोशल डिस्टेंसिग ही बचाव का उपाय है।


महाभारत में मेरा पक्ष क्लियर कर दिया है, मैं सत्य के साथ हूँ, गुरु व उनके मिशन के साथ हूँ। गुरु परिवार के साथ हूँ। अतः साधक के वेश में आये षड्यंत्रकर्ता से दूरी बनाए रखूँगी। 


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...