Friday, 19 March 2021

जिज्ञासा - "नादयोग ध्यान के बारे में विस्तार से बताएं।"

 जिज्ञासा - "नादयोग ध्यान के बारे में विस्तार से बताएं।"


समाधान - *नाद आधीनम जगत सर्वम्*


यह समस्त जगत नाद के आधीन है। विज्ञान भी वेद के कथन को मानता है कि यह समस्त ब्रह्माण्ड ध्वनि का कम्पन मात्र है।


यदि जीवन को मधुर सकारात्मक संगीत लहरियों से वंचित रखोगे तो डिप्रेशन को स्वतः आमंत्रित करोगे। 


The impact of musical sounds


वाद्यस्य शब्देन हि यान्ति नाशं बिषाणि घोराण्यपि यानि सन्ति।


 By the musical sounds, the terrible poisonous elements get killed. - Sushruta-samhita


ध्वनि ही ब्रह्म है, ब्रह्मांड का प्रकट स्वरुप है, ध्वनि अपने आप को सभी प्रकार के जीवन के रूप में प्रकट करती है, ध्वनि ही कर्म है, ध्वनि ही धर्म है, ध्वनि ही बंधन है, ध्वनि ही मुक्ति है, ध्वनि ही सब कुछ देने वाली है, ध्वनि ही हर चीज़ में मौजूद ऊर्जा है, ध्वनि ही सब कुछ है।


ध्वनियों को एक ख़ास पैटर्न या ढांचे में रखें,तो उनका एक ख़ास प्रभाव पड़ता है। 

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*नाद का सामान्य अर्थ है* - शब्द या ध्वनि संगीत शास्त्र के अनुशार आकाशस्थ अग्नि और मरुत (वायु) के संयोग से नाद उत्तपन होता है। सम्पूर्ण जगत नाद से भरा हुआ है। इसे "नाद ब्रह्म" कहा गया है।

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नाद दो प्रकार का माना गया है:


1.आहत

2. अनाहत


 नाद के साथ संबंध जोड़ना- यह अनुसंधान या खोज तो स्वयंके आंतरिक जगत की है। नाद योग का उद्येश्य है आहद से अनाहद की ओर ले जाना। ब्रह्मांड और शरीर दोनों में अनाहद ध्वनि गूंज रही हैं अर्थात् ब्रह्मांड में गूंज रहे अनाहद से शरीर में गूंज रहे अनाहद से जोड़ना ताकि अपने बाहरी मन को आंतरिक मन की ओर ले जा सके यही नादयोग का उद्देश्य हैं, अनाहत नाद की ध्वनि का अनुसंधान करना ही नाद योग या नादानुसंधान कहलाता है।


*नादयोग* साधना 


नादयोग या लययोग से अर्थ मन को लय कर देने से है।


मन को लय करने के लिये साधक अपनी चेतना को बाह्य वृत्तियों से समेट कर अन्तर्मुख करके


भीतर होने वाले शब्दों को सुनने की चेष्टा करता है, जिसे ‘नाद’ कहते हैं।


‘नादबिन्दु उपनिषद्’ में इसकी पूरी साधन प्रक्रिया बतलाई गई है।


प्रचलित साधन पद्धतियों में थोड़ा बहुत अन्तर भी दिखलायी पड़ता है।


जिस तरह सूखे पड़े हैण्डपम्प में बाहर से थोड़ा पानी डालकर भीतर के जल के स्त्रोत को बाहर लाया जाता है, इसीतरह बाह्य नादयोग की ध्वनि को सुनते सुनते इतने लयबद्ध व तन्मय होते हैं कि भीतर के अनाहत नाद से जुड़ जाते है। तब परिवर्तन घटता है।


क्रमशः आँख, नाक और होठों को बन्द कर बाहर से वृत्तियों को समेट कर अन्दर में ‘नाद’ को श्रवण करने के लिए केन्द्रित करते हैं।


शिव संहिता में विभिन्न प्रकार के अनहद ‘नाद’ बतलाये गये हैं।


नाद जब सिद्ध होने लगता है तब श्रवण की साधना के प्रारम्भ में मधुमक्खी की भन-भनाहट, इसके बाद वीणा तब सहनाई और तत्पश्चात् घण्टे की ध्वनि और अनन्तः मेघ गर्जन आदि की ध्वनियाँ साधक को सुनाई पड़ती है।


इस नाद-श्रवण में पूरी तरह लीन होने से मन लय हो जाता है और समाधि की अवस्था प्राप्त हो जाती है!


इसी तरह कुछ साधक सिद्धासन में बैठ कर योनि मुद्रा धारण करके अनाहत ध्वनि को दाँये सुनने का प्रयास करते हैं।


इस ‘लययोग या नादयोग’ की साधना से बाहर की ध्वनियाँ स्वतः मिटने लगती है और साधक ‘अकार’ और ‘मकार’ के दोनों पक्षों पर विजय प्राप्त करते हुए धीरे-धीरे प्रणव को पीने लगते हैं!


प्रारम्भ में ‘नाद’ की ध्वनि समुद्र, मेघ-गर्जन, भेरी तथा झरने की तरह तीव्र होती है, मगर इसके पश्चात् यह ध्वनि मृदु होने लगती है


और क्रमशः घण्टे की ध्वनि, किंकिणी, वीणा आदि जैसी धीमी होती जाती है।

यह अनुभव हर साधक के साथ अलग अलग हो सकते हैँ !


इस प्रकार के अभ्यास से चित्त की चंचलता मिटने लगती है और एकाग्रता बढ़ने लगती है।


नाद के प्रणव में संलग्न होने पर साधक ज्योतिर्मय हो जाता है और उस स्थिति में उसका मन लय हो जाता है।उसके अन्दर आनंद का झरना फूट पड़ता है ! उसका मन निर्मल और शांत हो जाता है !


इसके निरन्तर अभ्यास से साधक मन की सब ओर से खींच कर परम तत्व में लीन कर लेता है,


यही नादयोग या लययोग कहलाता है। इसे ही नादयोग या लययोग की परम उपलब्धि बतलाया जाता है।


कुछ लोग ‘नाद योग’ से अर्थ समझते हैं, वह ध्वनि जो सबके अन्दर विद्यमान है तथा


जिससे सृष्टि के सभी आयाम प्राण तथा गति प्राप्त करते हैं, उसकी अनुभूति प्राप्त करना।


इस ‘नाद’ को चार श्रेणियों बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा रूप में विभाजित करते हैं


और इसे साधना की विभिन्न सीढ़ियाँ बतलाते हैं।


कहीं-कहीं इस ‘नाद’ को चक्र-साधना से भी जोड़ दिया जाता है।


इसके अन्तर्गत यह मान्यता है कि जैसे-जैसे चक्र जाग्रत होते है ‘नाद योग’ में सूक्ष्म ध्वनियों का अनुभव होता है।


मूलधार चक्र से आगे बढ़ने पर क्रमशः ध्वनियां सूक्ष्म होती जाती हैं और यह अभ्यास ‘बिन्दु’ पर जाकर समाप्त होता है।


ऐसी मान्यता है कि ‘बिन्दु’ पर जो नाद प्रकट होता है उसकी पकड़ मन से परे होती है।


कुछ लोग संगीत के सात स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सा) को आँखें बन्द करके क्रमशः


मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, बिन्दु (आज्ञा) तथा सहस्त्रार के साथ जोड़कर


आत्म-चेतना को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैँ !


भारतीय शास्त्रीय संगीत मानव तन्त्र या सिस्टम की गहरी समझ से पैदा हुआ है, क्योंकि जीवन के सारे अनुभव, मूल रूप से, हमारे अंदर ही पैदा होते हैं। प्रकाश और अंधकार, ध्वनि एवं मौन, प्रसन्नता एवं दुःख, ये सब हमारे अंदर ही होते हैं। हरेक मानवीय अनुभव अंदर ही होता है, कभी भी हमारे बाहर नहीं होता। अपने अनुभवों के आधार, हम खुद हैं। इस वजह से हमने मानवीय शरीर के कुछ आयामों को पहचाना जो ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं। अगर आप जानते हैं कि ध्वनियों का उपयोग कैसे करें तो ध्वनियों की एक उपयुक्त व्यवस्था अद्भुत काम कर सकती है।


मानवीय शरीर को संगीत से सक्रिय करने का तरीका


योग में, हम मानव शरीर को पांच कोषों या सतहों का बना हुआ देखते हैं -- अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष तथा आनंदमय कोष।

प्राणमय कोष या ऊर्जा शरीर बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें 72000 नाड़ियाँ होती हैं, जो ऊर्जा मार्ग हैं और जिनमें से हो कर ऊर्जा सारे शरीर में बहती है। ये नाड़ियाँ, मानवीय शारीरिक व्यवस्था में 114 स्थानों या केंद्रों या चक्रों पर एक दूसरे से मिलती हैं, और फिर से बंट जाती हैं। इन 114 में से 2 केंद्र भौतिक शरीर से बाहर होते हैं तथा 112 शरीर के अंदर होते हैं, जिनमें से 4 अधिकाँश रूप से निष्क्रिय होते हैं।

तो शरीर में 108 सक्रिय ऊर्जा केंद्र रह जाते हैं। ये 108 स्थान शरीर के दायें और बायें भाग में समान रूप से बंटे हैं अर्थात दोनों तरफ 54, और ये इड़ा एवं पिंगला कहलाते हैं। इसी आधार पर हमने संस्कृत की 54 ध्वनियां बनायीं, प्रत्येक को एक पुरुष और एक स्त्री रूप में।


इन 108 ध्वनियों से परम संभावना तक पहुँचना नाद योग कहलाता है


भारतीय शास्त्रीय संगीत में, गणितीय सूक्ष्मता और शुद्धता से यह देखा गया है कि कौन-सी ध्वनियां इन 108 केंद्रों को सक्रिय कर सकती हैं, जिससे मनुष्य का स्वाभाविक उत्थान जागरूकता के ज्यादा ऊँचे स्तर की तरफ हो सके। भारतीय शास्त्रीय संगीत कभी भी सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा है। यह, एक मनुष्य को ब्रह्मांडीय स्तर तक विकसित करने की एक प्रणाली रहा है। इस संस्कृति में हम संगीत, नृत्य, जो कुछ भी करते हैं वे सिर्फ मनोरंजन के लिये नहीं होते, वे आध्यात्मिक प्रक्रियायें भी हैं। हमारे जीवन में मनोरंजन का दृष्टिकोण कभी नहीं था, सब कुछ जागरूकता के उच्च स्तर पर जाने की एक साधना ही था।


इन 108 ध्वनियों का उपयोग कर के मानवीय सिस्टम को सक्रिय करना तथा इसे इसकी उच्चतम संभावना तक उठाना 'नाद योग' कहलाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत नाद योग की इस मूल प्रक्रिया का विकसित स्तर है। जब कोई आवश्यक भागीदारी के साथ भारतीय संगीत सुनता है या कोई शास्त्रीय संगीत की प्रक्रिया में स्वयं पूर्ण रूप से भाग लेता है तो उसे सिर्फ शरीर या भावनाओं के आनंद का ही लाभ नहीं मिलता परंतु यह जीवन के मजबूर करने वाले चक्रों से बाहर आने का एक तरीका हो जाता है। यह एक मार्ग बन जाता है जिससे आप जीवन की उन चक्रीय गतियों से ऊपर उठ कर स्वतंत्रता एवं मुक्ति को प्राप्त करते हैं।


आप नादयोग साधना हेतु शान्त चित्त कमर सीधी कर बैठें व अपना समस्त ध्यान नादयोग की ध्वनियों को सुनने व उसमें खो जाइये। इतने लयबद्ध व तल्लीन हो जाइए कि बाहर की दुनियां का भान ही न रहे व इस माध्यम से अंतर्जगत में प्रवेश कर जाइये।


निम्नलिखित शांतिकुंज की नादयोग ऑडियो वीडियो भी नादयोग हेतु उपयोग में ले सकते हैं:-


https://youtu.be/vgrXskQMLPM


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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