परामनोवैज्ञानिक उन्माद - मानसिक नकारात्मक वृत्ति - भूत बाधा शांति हेतु प्रयोग
40 दिन नित्य घी का दीपक जलाकर, षट्कर्म व देववाहन के बाद ग्यारह(11) माला गायत्री मंत्र, एक माला क्लीं बीज मंत्र के साथ गायत्री एवं एक माला महामृत्युंजय मन्त्र का जप करें। साथ ही नित्य यज्ञ में 24 गायत्री मंत्र की आहुति, 11 क्लीं बीज मंत्र युक्त मन्त्र की आहुति एवं 11 महामृत्युंजय मंत्र की आहुति दें। घृत टपकाया जल हाथ से चेहरे पर लगाएं व अत्यंत थोड़ा यज्ञभष्म मिलाकर एक चम्मच जल पिला दें। यज्ञभष्म को रोगी के हृदय, ग्रीवा, मस्तक, नेत्र, कर्ण, मुख, नासिका इत्यादि में हल्का सा लगा देना चाहिए।
40 दिन तक शाम को सरसों के तेल में चार बाती वाला दिया जलाएं। एक गायत्री चालीसा एवं बजरंगबाण का पाठ कर लें। रोगी हेतु सुबह या शाम को एक बार गायत्री न्यास अवश्य करें।
जब भी रोगी सोए तो उसकी तकिया के नीचे गायत्री मन्त्रलेखन की हुई पुस्तिका रख दें। साथ ही उसे गायत्रीमंत्र का दुपट्टा ओढ़ने को दे दें।
उसे मन्त्रलेखन करने के लिए प्रेरित करें, व अच्छी पुस्तक पढ़ने को दें।
मन्त्र
गायत्रीमंत्र -
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात ॐ
क्लीं बीज मंत्र युक्त महाकाली गायत्रीमंत्र -
ॐ भूर्भुवः स्व: क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ
महामृत्युंजय मंत्र -
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
नित्य रक्षा विधान में सुबह शाम निम्नलिखित मन्त्र अवश्य बोलें
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भूमि संस्थिताः ॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ।
तांबे के लोटे में यज्ञ के समय जल भरकर रखें, यज्ञ पूर्णाहुति के बाद लोटे के जल को गायत्रीमंत्र जपते हुए यज्ञाग्नि से हल्का गर्म करें। फ़िर इस जल में थोड़ी यज्ञ भष्म मिलाकर पीड़ित रोगी के माथे व हृदय में लगाएं व साथ ही उसे वह जल अवश्य पिलाएं।
No comments:
Post a Comment