*अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनो*
माता पिता की कामयाबी को,
जब हम शान से कहते हैं,
या माता पिता की नाकामयाबी को,
जब हम क्रोध में गिनते हैं,
दोनों ही में हम स्वयं के,
अहंकार में रहते हैं।
माता पिता ने क्या किया,
यह उनका कर्म था,
हम जो करेंगे,
वो हमारा कर्म होगा।
माता पिता का चयन,
तुम नहीं कर सकते हो,
अमीर व सफल गर्भ व घर,
तुम नहीं चुन सकते हो।
तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मानुसार,
पूर्व जन्म के ऋणानुबंध अनुसार,
माता पिता तुम्हें मिले हैं,
वो जो हैं जैसे हैं, अमीर हैं या गरीब,
तुम्हारे लिए तो पूजनीय हैं।
उनके जीवन की उपलब्धियों को,
तुम जज करके समय व्यर्थ मत करो,
अपने जीवन को उनके आशीर्वाद और,
स्वयं की योग्यता से बेहतरीन बुनो।
एक ही विषम परिस्थिति,
किसी को तोड़ कर बिखेर देती है,
वही परिस्थिति किसी को,
जीवन संवारने की प्रेरणा देती है।
तुम भाग्यशाली हो,
यदि उत्तराधिकार में माता पिता ने तुम्हे कर्मठ बनाया,
शुभ संस्कारो से तुम्हारा जीवन भरा।
तुम भाग्यहीन व अभागे हो,
यदि उत्तराधिकार में माता पिता ने तुम्हे अकर्मण्य बनाया,
दुर्गुण व कुसंस्कारो से तुम्हारा जीवन भरा।
तुम यदि सुपुत्र/सुपुत्री हो,
तो भी उत्तराधिकार में धन की तुम्हे आवश्यकता नहीं,
क्योंकि निज योग्यता व कर्म से तुम कमा ही लोगे,
तुम यदि कुपुत्र/कुपुत्री हो,
तो भी उत्तराधिकार में धन की तुम्हे आवश्यकता नहीं,
क्योंकि निज अयोग्यता व कुकर्मों से तुम उसे गंवा ही दोगे।
किस्मत की लकीरें जानते हो,
हाथों में क्यों होती है?
जिससे तुम उसे मनचाहा,
अपने कर्म से बदल सको।
अपने जीवन के विधाता स्वयं बनो,
सही दिशा में पुरुषार्थ करो,
निज योग्यता को पहचानों,
स्वयं का जीवन उज्ज्वल गढ़ो।
कर्मफ़ल के अकाट्य सिद्धांत को समझो,
विनयी व पुरुषार्थी बनो,
जो बोवोगे वही काटोगे,
यह सदा याद रखो,
अपने विचार व कर्मबीज पर पैनी नजर रखो,
अपने भविष्य के निर्माता स्वयं बनो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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