Tuesday 11 May 2021

प्रश्न - *बहुत से लोग सुधरना तो चाहते है लेकिन उनके मन में हमेशा ग्लानि बनी रहती है कि पहले हम बहुत पाप कर चुके है क्या अब हम सुधरने के लायक है?*

 प्रश्न - *बहुत से लोग सुधरना तो चाहते है लेकिन उनके मन में हमेशा ग्लानि बनी रहती है कि पहले हम बहुत पाप कर चुके है क्या अब हम सुधरने के लायक है?*

*जैसे बहुत से लोग बोलते भी है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज/तीर्थयात्रा को चली।*


उत्तर - हमारी ऋषि परंपरा कहती है, जिस दिन बोध हो कि हम गलत जीवन मार्ग पर हैं और हमें सुधरने-बदलने की आवश्यकता है। तो उसी क्षण यू टर्न ले लो, आध्यात्मिक सच्चाई का मार्ग अपना लो। आगे बढ़ो।


अंगुलीमाल दस्यु हो या आम्रपाली वैश्या या रत्नाकर डाकू या राजा विश्वरथ हो, जिस दिन इन्हें बोध हुआ उन्होंने अच्छाई की ओर यू टर्न ले लिया क्रमशः भिक्षु अहिंसक, भिक्षुणी,   ऋषि बाल्मीकि, महर्षि विश्वामित्र बन गए।


अतः यह सोचना कि बहुत पाप कर लिए, अब अध्यात्म साधना का क्या लाभ? यह भ्रांति धारणा है। ग्लानि मात्र करते रहने से कुछ लाभ न होगा।  सुधरने व बदलने हेतु प्रयास-पुरुषार्थ करना होगा, क्या कहेंगे लोग इसकी परवाह मत कीजिये। अध्यात्म पथ पर समर्पण के साथ बढिये ईश्वर पतित को भी शरण मे लेते हैं, उनका उद्धार करते हैं।


जिस दिन माता रत्नावली ने तुलसीदास को वासना के दलदल का बोध करवाया उन्होंने यू टर्न भक्ति की ओर ले लिया। स्वयं के जीवन के साथ साथ लाखो के जीवन में भक्ति की प्रेरणा दी।


गलत रास्ते पर हो, तो यू टर्न ले लो। सुधरने-बदलने व साधक बनने के लिए यू टर्न ले लो। अवश्य मेहनत दोगुनी लगेगी लेकिन मंजिल एक न एक दिन सच्चाई व ईश्वरीय अनुकम्पा की अवश्य मिलेगी।


अतः सौ चूहे खाने वाली बिल्ली को जिस दिन बोध हो जाये कि मांसाहार गलत है तो यू टर्न ले ले। दूध व शाकाहार लेते हुए जीवन व आत्मा के उत्थान के लिए साधना मार्ग की तीर्थयात्रा पर चलना प्रारम्भ कर दे, सैकड़ो चूहों की जान की रक्षा कर दे। पुण्य करे। लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह मत करे, उसके पाप धुलेंगे व उसका कल्याण निश्चित होगा। आध्यात्मिक उपलब्धियों से जीवन भर उठेगा, आत्म संतुष्टि व आत्मा में शांति अनुभव होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


अखण्डज्योति व दीवार पर सदवाक्य लेखन पढ़कर, गायत्री परिजनों के बोध करवाने पर कई डाकुओं ने आत्मसमर्पण सरकार के पास किया। जेलों में गायत्री परिवार के परिजनों के प्रयास से कई खूंखार कैदी बदल गए। यह सब साधक बने और कई बन रहे हैं। संसार की मुख्यधारा में जुड़कर जेल से निकलकर एक साधारण साधक की तरह लोककल्याण और आत्म कल्याण का कार्य कर रहे हैं।

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