शिष्य गुरु का परिचय पत्र है,
परिचय पत्र कमज़ोर न हो,
यह हमेशा ध्यान रखो,
इसलिए शशक्त साधक बनो,
व्यक्तित्व व मनोबल ऊंचा रखो।
तुम्हारे गुरु के आगे,
अनजान नतमस्तक होगा,
जब शिष्य विवेकानंद की तरह,
अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से,
गुरु का परिचय देगा।
गुरु मन्त्र जपने को,
अनजान व्यक्ति तैयार होगा,
जब उस मन्त्र का प्रभाव,
तुम्हारे जीवन में परिलक्षित होगा।
तुम्हारे गुरु से जुड़ने को,
अनजान व्यक्ति तैयार होगा,
जब गुरु से जुड़कर,
तुम्हारे भीतर देवत्व का उदय होगा।
गुरु व मिशन के प्रचार प्रसार का,
शिष्य का व्यक्तित्व व कृतित्व ही माध्यम है,
कुछ समझाने हेतु,
वाणी से अधिक आचरण ही कारगर है।
गुरु की सच्ची गुरुदक्षिणा यह होगी,
जब शिष्य के व्यक्तित्व में,
शिष्य के कृतित्व में,
गुरु के ज्ञान की अभिव्यक्ति होगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment