Thursday, 24 June 2021

प्रश्न - *मुर्दा गाड़ने या जलाने में क्या फर्क है? कौन सी विधि अंतिम क्रिया हेतु आध्यात्मिक वैज्ञानिक तथ्य व प्रमाण में उचित है? प्रकृति व मृतक दोनों के लिए लाभप्रद है।*

 प्रश्न - *मुर्दा गाड़ने या जलाने में क्या फर्क है? कौन सी विधि अंतिम क्रिया हेतु आध्यात्मिक वैज्ञानिक तथ्य व प्रमाण में उचित है? प्रकृति व मृतक दोनों के लिए लाभप्रद है।*


उत्तर- मुर्दा गाड़ने की जगह जलाना ही श्रेयस्कर है।


*आध्यात्मिक कारण* - मृत्यु के अवसर पर उसका छाया शरीर (सूक्ष्म आवरण) लिए बाहर निकलता है। इससे मनुष्य की छाया कृति एक तरह से शरीर की व इंद्रियों की फोटो कॉपी होता है। वह देख सुन व समझ तो सकता है, लेकिन कर्मेन्द्रियाँ न होने का कारण कर्म फल अपने सुधार नहीं सकता।


कई घरों में मृत्यु के पश्चात मृतक के छाया शरीर को देखने की घटनाएं सामने आती हैं।


यदि घर में भक्ति पूर्ण व उस मृतक की शांति हेतु ज्ञान चर्चा न हो तो वह छाया शरीर धारी मृतक की प्रेतात्मा क्रुद्ध होती है। लेकिन जब उसकी मुक्ति व सद्गति के लिए परिजन प्रयास करते हैं तो वह संतुष्ट व शांत होती है।


ऋषियों द्वारा ऐसा अनुमान किया गया है कि मरने के प्रायः 36 घण्टे बाद जीव छायामय शरीर को भी प्रायः छोड़ देता है। तब छाया शरीर स्थूल शरीर के पास रहकर धीरे धीरे नष्ट हो जाता है। 


स्थूल शरीर के प्रति छाया शरीर का लगाव व आकर्षण रहता है।


जो मुर्दे गाड़े जाते हैं, उनके छाया शरीर तब तक नष्ट नहीं होते जब तक उनका शरीर क्रमशः मिट्टी में कीटाणुओं द्वारा स्वतः नष्ट न करके मिट्टी में मिला दिया जाय।


जो मुर्दे जलाए जाते हैं उनके छाया शरीर जल्दी नष्ट हो जाते हैं क्योंकि स्थूल शरीर के अभाव में उनका नष्ट होने का क्रम तीव्रता से होता है। 


यह एक प्रमुख कारण है मुर्दा गाड़ने की अपेक्षा जलाना श्रेयस्कर है।


*चिकित्सीय कारण* - शरीर बीमारियों का चलता फिरता गृह होता है। अग्नि रोगाणुओं को जलाने में सक्षम है। मुर्दे जलाने से रोगाणु भी मर जाते हैं व उनका विस्तार रुक जाता है।

मुर्दे गाड़ने से रोगाणुओं को और अधिक पनपने का सड़ते शरीर मे अवसर मिलता है और वह मिट्टी व नमी के कारण विस्तारित होते हैं। जीव वनस्पतियों तक पहुंच कर और पर्यावरण में मिलकर अधिक से अधिक लोगो को रोगी बनाते हैं।


*प्राकृतिक कारण* - मुर्दों को गाड़ने की प्रक्रिया में पृथ्वी जगह घेरती है। यदि सवा सौ करोड़ के लिए कब्रो का निर्माण होगा तो पृथ्वी कब्रो से पट जाएगी फिर लोग रहेंगे कहाँ? खेती कहाँ होगी? लोग भूखे मरेंगे? इतनी ज्यादा सड़ती लाशें पृथ्वी की मिट्टी को  रोगाणुओं से जहरिला बना देंगी। 


गोमय समिधा (गोबर के उपले), घी, हवन सामग्री और थोड़ी मात्रा में तुलसी काष्ठ से चिताग्नि देकर मुर्दा जलाना सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार औषधियों के साथ जलाने से एक प्रकार का यज्ञ होगा इससे पर्यावरण शुद्ध होगा व मृतक शरीर नष्ट होगा। छाया शरीर नष्ट होगा।


विद्युत शवगृह भी सही उपाय है, मुर्दे शरीर को नष्ट करके मुक्त करने का, इससे रोगाणु व शरीर दोनो नष्ट हो जाएंगे।


संदर्भ पुस्तक - मरणोत्तर जीवन, तथ्य एवं सत्य 3.67


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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