प्रश्न - *मृतक परिजनों के श्राद्ध करने या उनके नाम पर स्मारक बनाने से क्या मृतक परिजनों को पुण्य लाभ होता है? उनके कर्मबन्धन कटते हैं? स्वर्ग लाभ मिलता है?*
उत्तर- जिस प्रकार भोजन जो करता है पेट उसी का पहले भरता है। इसी तरह श्राद्ध करने या स्मारक बनाने का पुण्यफल उसे मिलता है जो सन्तान श्राद्ध करता या स्मारक बनवाता है। यह दान पुण्य से मृतक परिजन के कर्मबन्धन व प्रारब्ध नहीं काटे जा सकते व उनके लिये स्वर्ग लाभ की व्यवस्था नहीं की जा सकती।
यह तो निश्चित सत्य है कि सन्तान के शुभ कर्मों तप दान से पितरों को शांति व संतुष्टि मिलती है, पितृ ऋण उतरता है। लेक़िन इन सब कर्मो से पुत्र का समस्त पुण्य मृतक पितर को नहीं मिलता। अदला बदली नहीं होती। जो कर्म जो करता है उसका फल वही भरता है। जो बोयेंगे वही काटेंगे।
मृतक आत्माएं जब यह देखती है कि उनके पूर्व सम्बन्धी उनकी कुशलता व उनकी आत्मा की शांति, तुष्टि व तृप्ति के लिए प्रार्थना , तप, दान व पुण्य कर रहे हैं तो उन्हें संतोष होता है व अच्छा महसूस होता है। वह अपना आशीर्वाद देती हैं, व अदृश्य सहायता करती हैं जो सम्भव हो वह लाभ पहुचाने की कोशिश करते हैं। पितर जब हमारे अदृश्य सहायक बनते है तो परिवार में सुख शांति आती है।
मृतक आत्मा के सम्बन्धी जब उन्हें याद करके रोना-धोना करते हैं, शोक प्रदर्शन करने से मृतक को दुःख होता है उनकी शांति में बाधा पहुंचती है।
उचित यह है कि मृतक परिजन के साथ मोह बन्धन शीघ्रातिशीघ्र तोड़ लेना चाहिए। केवल मृतक आत्मा की शांति मुक्ति की उच्च प्रार्थना किया जाय। उनके नाम पर जप, दान व पुण्य किया जाय।
मृतक परिजन के नाम पर वृक्षारोपण बहुत शुभ फल देता है। मृतक परिजनों को उनके नाम पर लगाये वृक्ष को देखकर उन्हें सुकून व शांति मिलती है।
संदर्भ पुस्तक - मरणोत्तर जीवन , तथ्य एवं सत्य 3.66
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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