प्रश्न - *मृत्यु पश्चात देहदान की उपयोगिता अनुपयोगिता पर भी शास्त्रीय और वैज्ञानिक विवेचन करें।*
उत्तर- हमारे धर्मग्रन्थ लोककल्याण के लिए देहदान/अंगदान को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। इसकी इजाजत देते हैं।
देहदान का अर्थ है "देह का दान" अर्थात किसी उत्तम कार्य अपना जीवन ही दे देना। राजकुमार "सत्त्व" ने साथ सावकों को भूख से मरने से बचाने के लिए अपने "शरीर का त्याग कर दिया" था। "दधीचि" ने अपना "शरीर इसलिए त्याग दिया था ताकि उनकी हड्डियों से धनुष बनाया जा सके" जिससे दैत्यों का संहार हो सके। "राजा शिवि" ने "कपोत" को बचाने के लिए अपने शरीर को प्रस्तुत कर दिया था।
अनेक समुदायों में देह को नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है, ताकि पानी में रहने वाले विभिन्न जीवों को आहार उपलब्ध हो सके।
पारसी समुदाय में मृत्यु के उपरांत देह को एक 'कुएं' में रखने की परंपरा है, ताकि पक्षी उस देह को आहार बना सकें।
अंत्येष्टि क्रिया तो मात्र देह से आत्मा का मोह भंग करके मुक्त व शान्त करने की प्रक्रिया है। यदि जो जीवित रहते देह के मोह को भंग कर देहदान/अंगदान कर दे, तो उसे अंत्येष्टि द्वारा मोह भंग की आवश्यकता नहीं रहती। वह पुराने वस्त्र दान की तरह आत्मा के देह रूपी वस्त्र का दान कर मुक्त हो जाता है।
*क्या है वर्तमान समय मे अंगदान व देहदान?*
भारतीय चिकित्सा संघ के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि यह वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जैविक ऊतकों या अंगों को एक मृत या जीवित व्यक्ति से निकालकर उन्हें किसी दूसरे के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को हार्वेस्टिंग के रूप में जाना जाता है। इसे ही सरल शब्दों में अंगदान कहा जाता है। समस्त मानव देह उपयोगी है, इसका कई तरह से उपयोग कर एक देह से आठ लोगो को जीवन दान मिल सकता है।
सही मायनों में देखा जाए तो अंगदान करना बड़े पुण्य का काम है, क्योंकि आप एक मरते हुए शख्स को जिंदगी दे रहे हैं। धर्म से संबंधित सभी मान्यताएं, जो अंगदान न करने की बात करती हैं, महज अंधविश्वास है, जिन्हें नजरअंदाज कर हर किसी को अंगदान के लिए आगे आना चाहिए।
कहां करें अंगदान
अंगदान के लिए दो तरीके हो सकते हैं। कई एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से जुड़ा काम होता है। इनमें से कहीं भी जाकर आप फॉर्म भरकर दे सकते हैं कि आप मरने के बाद अपने कौन-से अंग दान करना चाहते हैं। संस्था की ओर से आपको एक डोनर कार्ड मिल जाएगा। फॉर्म बिना भरे भी आप अंगदान कर सकते हैं।
*एक सावधानी बरतें* - स्वेच्छा से अंगदान व देहदान उत्तम है। यदि स्वेच्छा से हुआ तो दान के बाद शरीर से मोहबन्धन टूट जाता है। व आत्मा मुक्त हो चली जाती है।
लेकिन व स्वार्थी और सांसारिक मनुष्य जिनका देह से अत्यंत मोह है, उनकी बिना अनुमति के उनका देहदान समस्या खड़ी कर सकता है। वह मृत्यु के बाद छाया शरीर मे अपने शरीर के आसपास मंडराती रहती हैं, यदि उनकी सम्मान सहित अर्थी व अंत्येष्टि क्रिया, श्राद्ध तर्पण न हो तो क्रुद्ध हो जाती हैं। अतः देहदान अनुमति लेकर स्वेच्छा से होना चाहिए।
परमार्थी लोग वस्त्र की तरह शरीर का त्याग करते हैं, जिस प्रकार पुराने वस्त्र किसी को दान देने पर मोह नहीं करते वैसे ही वह देह रूपी वस्त्र दान देकर उसका मोह नहीं करते।
जीवन(देह रूपी वस्त्र धारण) व मरण(देह रूपी वस्त्र का त्याग) मात्र है। हमने भी अंगदान/देहदान करने का सङ्कल्प लिया है, यदि मरकर भी किन्ही आठ लोगो के जीवन को बचा सकूँ तो इसे बड़ा पुण्य व श्रेष्ठ कार्य मानूंगी व स्वयं को धन्य समझूंगी।
हमने जीवित रहते हुए ही अपना श्राद्ध एवं तर्पण शांतिकुंज में कर लिया है, जब भी अवसर मिलता है पुनः कर लेती हूँ। हमारे शास्त्र में स्वयं के श्राद्ध व तर्पण की व्यवस्था है। अतः जीने के साथ साथ मेरी मरने के बाद वाली तैयारी भी पूरी है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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