प्रश्न - सतोगुण , रजोगुण और तमोगुण का क्या अर्थ है?? अत्यंत सरल शब्दों में समझाएं।
उत्तर - सबसे पहले समझते हैं कि मनुष्य की निजी विशेषता व स्वभाव से उतपन्न व्यवहारिक विशेषता को "गुण" कहते हैं।
अब मनुष्य के अंदर तो अनेकों गुण हैं, तो उन गुणों को तीन समूहों में विभाजित किया गया जिसे क्रमशः सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण कहा गया।
"सतोगुण" - सतोगुण समूह में उन गुणों को रखा गया जो मनुष्य को मानव से महामानव, देवमानव की ओर अग्रसर करता है। उदाहरण - दया, ममता, सम्वेदना, निःश्वार्थ सेवा-सहयोग, निःश्वार्थ दान, परोपकार, शांति इत्यादि। इन गुणों से मनुष्य प्रशन्नचित्त व आत्मसंतुष्टि रहता है। आत्मउर्जा से भरा रहता है।
"रजोगुण" - रजोगुण के अंतर्गत मनुष्य के उन गुणों के समूह को रखा जाता है जहाँ मनुष्य केवल अपना व अपने परिवार के भोग व विलास के लिए प्रयत्नशील रहता है, इस उपक्रम में उसके भीतर मन को चंचल करने वाले और उसमें काम,क्रोध,लोभ,द्वेश आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। स्वार्थपरता में पुण्यलाभ के लिए दान पुण्य किया जाता है। अधिकतर तो मानव ही रहता है और कुछ मानव से महामानव की ओर कुछ हद तक अग्रसर हो जाता है।
"तमोगुण" - तमोगुण के अंतर्गत वह गुण समूह आता है जो ज्ञान को आच्छादित करके प्रमाद में अर्थात् अंतःकरण की व्यर्थ चेष्टाओँ में लगाता है। नशीली वस्तु इत्यादि का सेवन, घण्टो टीवी देखना, चुगली व निंदा करना, आलस्य प्रमाद करना, झूठ बोलना, स्वयं को व दुसरो को नुकसान पहुंचाना। मानव से इनकी चेतना नीचे स्तर पर निम्नगामी मानवपशु से मानव पिशाच तक जा सकती है।
सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण प्रकृति से उत्पन्न हुए तीनों गुण ही इस अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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