Tuesday, 27 July 2021

श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या का जीवन परिचय

 प्रखर प्रज्ञा के प्रखर शिष्य - श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या


कहते हैं, प्रत्येक आत्मा पूर्व जन्म के संस्कार और ज्ञान लेकर जन्म लेती है। पूर्व जन्म का गुरु वर्तमान जन्म में भी उत्तराधिकारी शिष्य को स्वयंमेव ढूढ़ता है, पुनः तराशता निखारता है।


महाअवतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को, ठाकुर रामकृष्ण ने विवेकानंद को और दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द ने युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को स्वयंमेव सम्पर्क किया था। इसी क्रम में बालक अवस्था में श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या को परम् पूज्य गुरुदेव ने स्वयं बचपन से सम्पर्क किया व उनकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ की। उन्हें प्राण दीक्षा दी, उन्हें भावी युगनिर्माण को सम्हालने हेतु गढ़ा।


कार्डियोलॉजी चिकित्सक से आध्यात्मिक चिकित्सक बनने हेतु आदेश दिया। सांसारिक सुख सुविधा युक्त जीवन छोड़कर आध्यात्मिक संघर्ष से भरा जीवन जीने हेतु दिशा निर्देश दिए। 


अपनी पुत्री श्रद्धेया शैल जीजी का विवाह श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी से करवाया और उन दोनों को मिशन हेतु जीवन समर्पित करने हेतु आदेश किया। दोनो ने गुरु आदेश शिरोधार्य किया। निज पुत्र आदरणीय डॉक्टर चिन्मय भैया को भी मिशन हेतु जीवन समर्पित करने हेतु निर्देश दिया।


अर्जुन की तरह "करिष्ये वचनम तव" कह के स्वयं के जीवन का सारथी परम पूज्य गुरुदेव को बना लिया। जो गुरु का आदेश वही मेरा जीवन लक्ष्य कहकर  युगनिर्माण में, सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम को जन जन तक पहुंचाने में जुट गए।


जब श्रद्धेय शांतिकुंज में रहने के लिए गुरु आदेश से आये तो उन्हें लेने आये कुछ भाइयों को उनके व्यक्तित्व और गुरुदेव का अपने प्रिय शिष्य डॉक्टर प्रणव पर स्नेह पसन्द नहीं आया। उन भाइयों ने डॉक्टर प्रणव पंड्या से कहा आ तो गए हो लेक़िन हम तुम्हे यहां टिकने नहीं देंगे। क्योंकि जैसे दो भाई आपस मे पिता के प्रेम हेतु लड़ते हैं वही अक्सर शिष्यों के बीच भी गुरु के प्रेम हेतु युद्ध होता है। उन गुरु भाइयों ने तब से लेकर अब तक अनवरत षड्यंत्र कर प्रयास किये, तरह तरह के व्यवधान व रोड़े अटकाए। लेक़िन श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या अनवरत गुरुमार्ग पर चलते रहे व गुरु अनुशासन को पालते रहे।


जब एक बार उनका भयंकर एक्सीडेंट हुआ व उनके बचने की सम्भवना न थी, तो डॉक्टर प्रणव पंड्या जी के जीवनदान की प्रार्थना लेकर श्रद्धेया शैल जीजी गुरु एवं माता पिता युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव के समक्ष पहुंची। तब माता जी व गुरुदेव ने कहा बेटी तेरे पति की आयु समाप्त हो चुकी है, अब यदि इसे पुनः जीवनदान मिलेगा तो यह गृहस्थ नहीं रह सकेगा, इसे गृहस्थ आश्रम में सन्यास लेना होगा और अब इसका जीवन मिशन व ईश्वरीय कार्य हेतु ही होगा। तब जीजी ने वहां सूक्ष्म शरीर धारी दिव्य ऋषियों की उपस्थिति वहां अनुभव की । श्रद्धेया जीजी ने सहमति जताई, मुझे स्वीकार है कि मेरे पति आज से केवल आपके शिष्य व मिशन हेतु समर्पित हों। वही हुआ नए जीवनदान के बाद श्रद्धेय डॉक्टर साहब मिशन हेतु समर्पित हो गए।


एक बार देवरहा बाबा जी से सम्वाद के समय उन्होंने कहा था कि श्रीराम (परम् पूज्य गुरुदेव) स्वयं राम है, और डॉक्टर प्रणव जिन्हें हिमालय की ऋषि संसद ने चुनकर युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव के सहयोगी बनने के लिए भेजा है। वह मेरा भी दामाद है जैसा कि युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी का है। शैल बाला मेरी पुत्री है जैसा कि युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी की है।


जन्म - 8 नवम्बर 1950 (रूप चतुर्दशी)

पिता - पूर्व न्यायाधीश स्व. श्री सत्यनारायण पंड्या

माता - स्व. श्रीमती सरस्वती देवी पंड्या

धर्मपत्नी - श्रीमती शैलबाला पण्ड्या (सुपुत्री वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य)

शिक्षा - एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेज, इन्दौर से जनवरी 1972 में एम.बी.बी.एस. उत्तीर्ण किया। इसी संस्था से दिसम्बर 1975 में मेडीसिन में एम.डी. की उपाधि तथा स्वर्ण प्रदक प्राप्त किया। अमेरिका से आकर्षक पद का प्रस्ताव आया, किन्तु भारत में ही रहकर सेवा करना उचित समझा।

विद्यार्थी जीवन में न्यूरोलॉजी तथा कार्डियोलॉजी के प्रख्यात विशेषज्ञों से जुड़कर मार्गदर्शन प्राप्त किया। अनुसंधान-पत्र प्रकाशित हुए तथा सायकोसोमेटिक व्याधियों के उपचार में विशेष रुचि ली।

जनू 1976 से सितम्बर 1978 तक भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स, लिमिटेड हरिद्वार तथा भोपाल के अस्पतालों में इन्टेंसिव केयर यूनिट के प्रभारी रहे। भारतीय चिकित्सक संघ (ए.पी.आय.) के सदस्य बने। समय-समय पर रिसर्च पेपर्स पढ़े व कई वर्कशॉप सेमीनार्स का संचालन किया।

युग निर्माण योजना मिशन से 1963 में सम्पर्क में आये। सन् 1969 से 1977 के बीच गायत्री तपोभूमि मथुरा तथा शंतिकुंज हरिद्वार में लगे कई शिविरों में भाग लिया। सितम्बर 1978 में नौकरी त्याग पत्र देकर स्थायी रूप से हरिद्वार आ गये।

परम पूज्य गुरुदेव पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी के मार्गदर्शन एवं संरक्षण में अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय हेतु ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान हरिद्वार की स्थापना जून 1978 में की। तब से इस संस्थान के निदेशक हैं। इस संस्था की आधुनिक प्रयोगशाला में पूज्य गरुदेव के मार्गदर्शन में साधना के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रयोग किये जा रहे हैं। अभी तक शांतिकुंज आए हुए अस्सी हजार से अधिक साधकों पर यह प्रयोग-परीक्षण किये जा चुके हैं। संस्थान सभी आवश्यक विषयों पर पचास हजार से अधिक पुस्तकों के पुस्तकालय से सुसज्जित है।


सम्मान एवं पुरस्कारसंपादित करें


ज्ञान भारती सम्मान से 1998 में सम्मानित।


हिन्दू ऑफ दि ईयर पुरस्कार से एफ.आई.ए., एफ.एच.ए.द्वारा 1999 में सम्मानित।


अमेरिका की विश्वविख्यात अंतरिक्ष इकाई 'नासा' द्वारा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार-प्रसार हेतु संस्तुति एवं विशेष सम्मान।


"भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार राष्ट्र सेवा सम्मान" पुरस्कार से 2000 में सम्मानित।

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