Monday, 30 August 2021

प्रश्न -1. आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञाशु और ज्ञानी भक्तों के आचरण में क्या विभेद है? 2. चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई की गिनती उपरोक्त किस category के भक्त में आते हैं?

 प्रश्न सूची:

प्रश्न -1. आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञाशु और ज्ञानी भक्तों के आचरण में क्या विभेद है?

2. चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई की गिनती उपरोक्त किस category के भक्त में आते हैं?

3.पतंजलि के अष्टांग योग का मार्ग अपनाने वाले किस केटेगरी में आयेंगे?

4- भक्त, ज्ञानी व योगी के आचरण में क्या भेद है?


उत्तर - यह विभिन्न मनोदशा एवं भक्ति के पीछे के लक्ष्य के आधार पर वर्गीकरण हैं।


1- *आर्त* - भक्ति लक्ष्य - दुःख दूर करने हेतु

जब कोई पीड़ित, व्यथित, असंतुष्ट, दुखित, आर्त होता है, तो अपने मात्र दुःख को दूर करने हेतु भगवान की शरण मे आता है व पूजन करता है। तब वह आर्त भक्ति कहलाती है।


2- *अर्थार्थी* - भक्ति लक्ष्य - धन प्राप्ति

जब कोई धन या वैभव , सुख सुविधा प्राप्ति हेतु भक्ति करता है तो उसे अर्थार्थी कहते हैं।


3- *जिज्ञासु* - भक्ति लक्ष्य - ज्ञान प्राप्ति 

जब कोई ज्ञान व जिज्ञासा शांति हेतु आध्यात्मिक पथ पर बढ़ता है उसे जिज्ञासु कहते हैं।


4- *मुमुक्षु* - भक्ति लक्ष्य - मोक्ष प्राप्ति

जब कोई संसार के भवबंधन से मुक्त होने हेतु भक्ति करता है उसे मुमुक्षु कहते हैं।

5- *दास भक्ति* - भक्ति लक्ष्य - भगवान की निःश्वार्थ सेवा, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।

तुलसीदास, सूरदास इत्यादि जितने भी भक्त है जो अपने नाम के आगे दास लिखते हैं, वह इस केटेगरी में आते हैं। 


6- *प्रेमाभक्ति* - भक्तिलक्ष्य - भगवान से प्रेमकरना व प्रेम पाना

मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु इत्यादि इस केटेगरी के भक्त है, जो भगवान के प्रेमी है। यह भक्ति मार्ग है, यहां कोई विधिविधान नियम बहुत मानने की आवश्यकता नहीं।


6- *योग मार्ग*- भगवान की भक्ति व आध्यात्मिक यात्रा के अनेक मार्ग है, उनमें से एक मार्ग है योग। योग में भी अनेक मार्ग है - हठयोग, क्रियायोग, सहजयोग, सुदर्शन क्रिया योग इत्यादि। योग का अर्थ है जुड़ना, इसमें योगी स्वयं के अस्तित्व को विभिन्न यौगिक क्रियाओं व साधनाओं द्वारा ईश्वर से जोड़ते हैं। योगी निराकार व साकार साधक में कुछ भी हो सकते हैं। पतंजलि का अष्टांग योग इसी केटेगरी में आएगा।


7- *ज्ञान मार्ग* वह होता है जो भगवान को पाने के लिए प्रेम के साथ ज्ञान मार्ग का सहारा लेता है। सत्संग, स्वाध्याय, वेदाध्ययन व अन्य विधियों से वह भगवान को जानना चाहता है। *ज्ञानी भक्त* इसी केटेगरी में आता है।


8- *कर्मकांड मार्ग* - विभिन्न धार्मिक कर्मकांड को करके व विभिन्न आध्यात्मिक प्रयोग ऊर्जा सृजन हेतु करके ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। इसमें यज्ञ व अनुष्ठान इत्यादि आते हैं।


9- *मांत्रिक मार्ग* - विभिन्न मन्त्र जप व अनुष्ठान से ईश्वर प्राप्ति लक्ष्य या मनोकामना पूर्ति लक्ष्य। 


10- *तांत्रिक मार्ग* - तंत्र अर्थात एक व्यवस्था।विभिन्न भिन्न भिन्न मन्त्र का भिन्न भिन्न ऊर्जाओं के मिश्रण व वस्तुओं के प्रयोग से अभीष्ट प्राप्ति करना। अघोर एवं तांत्रिक इसी केटेगरी में आते हैं।


11- *यांत्रिक मार्ग* - इस मार्ग के साधक वस्तुतः इंजीनियर ब्राह्मण के होते हैं।वह जानते हैं *यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे* - जो शरीर मे है वही ब्रह्मांड में है। नव ग्रह, बारह राशि और सत्ताईस नक्षत्र की आकाशीय स्थिति व ज्यामिति को समझ के यंत्र व मन्त्र के संयोजन से अभीष्ट प्राप्ति करते हैं।


भक्त, योगी व ज्ञानी अलग अलग साधना पद्धतियों व लक्ष्य के कारण अलग अलग आचरण करते हैं। भक्त केवल भगवान के जीवन लीला को पढ़कर रस लेगा। भक्ति गीत गायेगा व उनके ध्यान में डूबेगा। ज्ञानी को भगवान के जीवन लीला में रुचि कम होगी, अपितु भगवान ने अपने जीवन व कर्म व वाणी से जो आध्यात्मिक संदेश दिया वह उसका स्वाध्याय करेगा व ध्यान करेगा। योगी भगवान के विराट अस्तित्व को जोड़ने में व्यस्त होगा, उसे भगवान की लीला पढ़ने में व भक्ति गीत गाने में रुचि नहीं होगी।


*कृष्ण भक्त* - रूप, गुण व उनको प्रेम से रिझाने हेतु भक्ति गीत गायेगा व नाचेगा।


*कृष्ण का ज्ञानी भक्त* - भगवान के श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय व जीवन चरित्र के स्वाध्याय से ज्ञानार्जन करेगा। स्वयं की व लोगो के जीवन की समस्या का समाधान करेगा।


*कृष्ण का योगी भक्त* - विभिन्न यौगिक क्रियाओं द्वारा कृष्ण के अस्तित्व से स्वयं को जोड़ेगा। कृष्णमय बनेगा, दो से एक होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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