क्लास -1 :- जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
युगानुकूल गुरुकुल - बालसंस्कार शाला - जो नज़रिया पढ़ाता है।
(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)
पैरेंट्स टीचर मीटिंग थी व सभी माता पिता व बच्चों को रँग बिरंगे चश्मे पहनने को दिए गए। यह ध्यान रखा गया कि माता पिता व सन्तान अलग अलग रँग के चश्में पहने।
ऑडिटोरियम में एक बच्ची को सफ़ेद रंग की फ्रॉक पहना कर स्टेज में बुलाया गया। फ़िर सबसे कहा गया कि रँग पहचानों कि किस रँग की फ्रॉक है। जिस रँग का जिसने जो चश्मा पहना था सबको वही रँग का ड्रेस दिख रहा था। काले चश्मे वालो ने काला कहा और हरे वालो ने हरा कहा। बच्चे भी अपने अपने चश्मे अनुसार रँग देख रहे थे। झगड़े होने लगे व सब अपनी बात को सिद्ध करने लगे।
फिर प्रिंसीपल आई व उन्होंने चश्मा उतारने को कहा व बोला अब देखो, सब हतप्रभ थे। अरे यह तो सफ़ेद रंग का ड्रेस है।
प्रिंसिपल मैडम ने कहा - जिसकी जैसी दृष्टि उसकी वैसी सृष्टि, जैसा नजरिया वैसा नज़ारे।
हम यदि ख़ुश होते हैं तो ख़ुशी का चश्मा लगा होता है तो हम बच्चे की गलती इग्नोर कर देते हैं। लेकिन वही जब हम दुःखी होते हैं तो और आंखों में दुःख का चश्मा होता है, तब बच्चे की छोटी सी गलती पर भी बड़ी प्रतिक्रिया दे देते हैं।
वही बारिश प्रेमी युगल के लिए प्रेम का संदेश है, तो तलाकशुदा के लिए वही बारिश तेजाब से कम कष्टकर नहीं। बारिश तो वही मग़र अनुभव अलग...
अपने अपने पूर्वाग्रह के चश्मे से दुनियां देख रहे हैं, अपने बचपन से मिले संस्कारो के चश्मे से दुनियां देख रहे हैं। यह दुनियां तो इस बच्ची की फ्रॉक की तरह है सबके लिए एक जैसी है, लेकिन आप लोगों की आंख में लगे चश्मे की वजह से सबको अलग अलग महसूस हो रही है।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व, किसी पर भी प्रतिक्रिया देने से पूर्व यह जरूर सोचे कि कहीं यह मेरे पूर्वाग्रह से प्रेरित तो नहीं.. जो जैसा है वह वैसा समझ के बिना पक्षपात के ही निर्णय ले रहे हैं न... तब जो निर्णय होगा सही होगा।
क्रमशः...
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