Friday, 6 August 2021

बालसंस्कारशाला क्लास: 5 - क्या भगवान है? जिसे देखा नहीं जा सकता उसे क्यों माने?

 क्लास: 5 - क्या भगवान है? जिसे देखा नहीं जा सकता उसे क्यों माने?

(युगानुकूल गुरुकुल  - बालसंस्कार शाला)


अध्यापिका महोदया ने ब्लैक बोर्ड पर लिखा - "क्या भगवान हैं? यदि हाँ तो साबित करो और यदि नहीं है तो साबित करो..."


(दो ग्रुप में बच्चे बंट गए, एक जो भगवान के अस्तित्व के समर्थक थे व दूसरा ग्रुप जो भगवान नहीं है मानता है)


आस्तिक ग्रुप - हमारे माता पिता व घर के सभी सदस्य भगवान को मानते हैं, इसलिए हम सब भगवान के अस्तित्व को स्वीकारते हैं।


नास्तिक ग्रुप - हममें से किसी ने भगवान नहीं देखा, फ़िर हम भगवान के अस्तित्व को क्यों माने?


आस्तिक ग्रुप - देखा तो तुमने हवा को भी नहीं और सूक्ष्म रोगाणुओं और जीवाणुओं को भी नहीं। हवा से सांस लेते हो, रोगाणुओं से बीमार पड़ते हो और जीवाणु तुम्हारा भोजन पचाते हैं।


नास्तिक ग्रुप - लेक़िन हवा, रोगाणु व जीवाणु का अस्तित्व वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में सिद्ध किया है.. भगवान को किस वैज्ञानिक ने सिद्ध किया है?


आस्तिक ग्रुप - भगवान के अस्तित्व को आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषियों ने सिद्ध किया है, उन्हें विभिन्न शास्त्र में भी लिखा है। जिस तरह रोगाणु व कीटाणु तुम आंख से नहीं देख सकते, वैसे ही भगवान इन स्थूल नेत्र से देखे नही जा सकते। उसके लिए आत्मदृष्टि चाहिए ऐसा मेरी मम्मी कहती हैं। शंकर भगवान के तृतीय नेत्र की तरह हम सबके भीतर भी एक अंतर्दृष्टि है जो जन्म से बंद होती है, उसे तप साधना के माध्यम से खोलना पड़ता है। मैडम क्या इसे आप हमें अच्छे से समझा दीजिये।


(अध्यापिका मैडम ने स्कूल गार्ड से दूध, दही व मख्खन मंगवाया, साथ ही थोड़ा चीनी पावडर,  कांच की ग्लास, पानी और चम्मच मंगवाया।)


अध्यापिका महोदया - बच्चों इस ग्लास में तुम्हें क्या दिख रहा है? क्या तुम्हें इसमें मक्खन दिख रहा है?


विद्यार्थी - मैडम, इसमें तो केवल दूध दिख रहा है, मख्खन नहीं..


अध्यापिका महोदया - लेक़िन इस दूध में मुझे तो मख्खन भी दिख रहा है.. क्या तुम बता सकते हो यह दही और मख्खन किससे बना है?


विद्यार्थी - हाँजी मैडम, यह तो दूध से ही बना है। पहले दूध उबलेगा, फिर मलाई जमेगी। दूध से दही बनाकर भी मथकर मख्खन निकाल सकते हैं। और केवल मलाई निकालकर भी मख्खन बनता है।


अध्यापिका महोदय - तो क्या मख्खन दूध में से निकला या बाहर से आया?


विद्यार्थी - मख्खन तो दूध से ही निकला


अध्यापिका महोदय - दूध के कण कण में जैसे मख्खन मौजूद है, लेकिन उसी मख्खन को प्राप्त करने के लिए दूध को उबालने से लेकर मलाई से मख्खन निकालने का उपक्रम अपनाना पड़ता है। वैसे ही भगवान हम सब के अस्तित्व में घुला हुआ है। अपने भीतर के ईश्वर को प्रकट करने व अनुभूत करने के लिए हमें भी तप-साधना करनी पड़ती है। तभी हम स्वयं के भीतर उस परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।

😊

चलो एक दूसरे प्रयोग से समझते हैं, यह ग्लास पानी है और इसमें मैंने चीनी पावडर घोल दिया। अब यह बताओ क्या चीनी दिख रही है?


विद्यार्थी - नहीं, चीनी नहीं दिख रही


अध्यापिका महोदया- तो जो दिख नहीं रहा उस चीनी का पता लगाने के लिए कि वह इस ग्लास में है या नहीं? हमको क्या करना पड़ेगा?


विद्यार्थी - मैडम हमें पानी पीकर चखना पड़ेगा, यदि मीठा हुआ तो इसमें चीनी है। मिठास अनुभव करनी पड़ेगी।


अध्यापिका महोदया - सही कहा, ऐसे ही ईश्वर जो दिख नहीं रहा और प्रकृति के कण कण में समाया है। उसे हम मन्त्र जप, प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से अनुभूत कर सकते हैं। 


यह सृष्टि है तो इसे बनाने व चलाने वाली सत्ता भी है, जिसे हम भले स्थूल नेत्रों से देख न सकें, उसे किसी भी नाम से पुकारे, मग़र वह भगवान है। हम उसे अनुभव आध्यात्मिक प्रयास के द्वारा कर सकते हैं।


सभी विद्यार्थियों ने सहमति में सर हिलाया।


(यह मेरे स्वप्न का गुरुकुल है जो एक न एक दिन जब ईश्वर साथ देंगे व गुरुकृपा होगी तब खोलूँगी - लेखक - श्वेता चक्रवर्ती)


क्रमशः....

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