प्रश्न - हमारा existence शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर है जो आपस में जुड़े हैं और उन्हें isolation में नहीं देखा जाना चाहिए। एक संतुलित जीवन के लिए तीनों स्तरों पर समन्वय रख कर जीवन जीने की जरूरत है। क्या आप उपरोक्त विचारों से सहमत हैं?
उत्तर- जी, हम उपरोक्त कथन से सहमत हैं।
शरीर बिना आत्मा शव है, आत्मा बिना शरीर प्रेतात्मा है जो अक्रिय हो जाती है। केवल वही उच्च स्तर की आत्मा बिना शरीर के सक्रिय हो सकती है जिसका सूक्ष्म शरीर तप द्वारा पूर्णतया निर्मित हो।
अतः संसार मे अस्तित्व के लिए शरीर व आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं। अतः शारीरिक स्तर अनिवार्य है।
मनुष्य जीवन पशु से भिन्न मात्र मानसिक विशेषताओं - मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार के कारण ही है। पाषाण युग से वर्तमान टेक्नोलॉजी युग तक का सफ़र इन्ही मानसिक विशेषताओं के कारण है। अन्य पशु पक्षी व जीव पाषाण युग मे जैसे थे आज भी वैसे ही है। पदार्थ का ज्ञान व उपयोग बुद्धि प्रयोग से ही सम्भव है। अतः सांसारिक सफलता हेतु मानसिक स्तर का विकास अनिवार्य है।
आत्मा का अध्ययन , स्व की खोज ही अध्यात्म है। मैं क्या हूँ? क्यों हूँ? मेरी असली शक्ति व सामर्थ्य क्या है? इत्यादि का ज्ञान अध्यात्म द्वारा ही सम्भव है। चेतना का ज्ञान व चेतना का प्रयोग अध्यात्म से ही सम्भव है।
मन के वैसे तो कई भाग है, हम यहां मोटे स्तर पर दो में विभाजित कर रहे हैं। बहिर्मन व अंतर्मन। अध्यात्म की यात्रा का प्रारम्भ मन से ही शुरू होता है जो मन से परे जाकर खत्म होता है। जिज्ञासा ब्रह्म व आत्मा को जानने की मन में ही उपजती है, प्रयास मन से ही प्रारम्भ होता है।
वैसे जीवन जिया तो पशुवत केवल शारीरिक स्तर पर भी जा सकता है। लेकिन मानसिक क्षमता के प्रयोग से पशु से ऊपर उठकर मनुष्य श्रेणी में आया जाता है। जिया तो केवल मनुष्य रहकर भी जा सकता है, लेकिन आध्यात्मिक क्षमता के प्रयोग से देवमानव की श्रेणी में आया जा सकता है। व क्रमिक साधना से आत्मज्ञान व परमात्मा का साक्षात्कार भी स्वयं में ही किया जा सकता है।
🙏🏻 अतः शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्तर तीनो एक दूसरे के पूरक है। इनका अलग से कोई अस्तित्व नहीं। इनकेबीच संतुलन अनिवार्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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