Wednesday 25 August 2021

प्रश्न - शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों स्तर के संतुलन का सूत्र(फार्मूला) क्या है? यह संतुलन हमारे भीतर है या नहीं इनके मापदंड व संतुलन होने के लक्षण क्या है?

 प्रश्न - शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक तीनों स्तर के संतुलन का सूत्र(फार्मूला) क्या है? यह संतुलन हमारे भीतर है या नहीं इनके मापदंड व संतुलन होने के लक्षण क्या है?


उत्तर- आईए पहले समझते हैं कि शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य व आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने के उपक्रम क्या है? क्योंकि यही उपक्रम संतुलन के कारक हैं।


👉🏻शारीरिक स्वास्थ्य हेतु - अच्छा संतुलित पौष्टिक स्वास्थ्यकर आहार व व्यायाम


👉🏻मानसिक स्वास्थ्य हेतु - अच्छा संतुलित मन को पोषण देने वाले अच्छे विचार व उनका चिंतन, सत्संगति, योग व प्राणायाम


👉🏻 आध्यात्मिक स्वास्थ्य हेतु - ध्यान, अन्तरयोग, मन्त्र जप व विभिन्न अन्य यौगिक पद्धतियां व साधनाएं


उपरोक्त यदि दैनिक जीवन में शामिल है तो संतुलन की व्यवस्था होगी। स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मन का निवास होगा। स्वस्थ मन आध्यात्मिक साधनाओं में मददगार होगा।


जिस साधक के अंदर शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक संतुलन होगा, उसके अंदर निम्नलिखित कुछ मुख्य गुण व लक्षण दिखेंगे:-


1- वह सदा होशपूर्वक जियेगा व साक्षी भाव में रहता हुआ आनन्दित महसूस करेगा।

2- शरीर व मन ऊर्जावान होगा, बच्चों की तरह निश्छल होगा।

3- विपरीत परिस्थिति में विचलित नहीं होगा। स्थिर प्रज्ञ रहेगा।

4- समस्या गिनने वाला नहीं होगा, समस्या का समाधान ढूढने वाला होगा।

5- किसी से कोई द्वेष व ईर्ष्या नहीं होगी, कोई किसी से उम्मीद न होगी। तो उसके भीतर आवश्यक क्रोध नहीं होगा।

6- परिस्थिति जिसे नियंत्रित कर सकेगा उस पर नियंत्रण करेगा, जो उसके हाथ मे नहीँ उसे सहज स्वीकार लेगा।

7- निन्दा-गाली व प्रशंशा-स्तुति दोनो ही उसके लिए समान है।

8- कण कण मे आत्मवत सर्वभूतेषु अनुभव करेगा और उसका कोई शत्रु शेष नहीं होगा। वह पीड़ित मानवता का दुःख व सुखी मनुष्य का सुख दोनो अनुभव कर सकेगा, क्योंकि वह उनसे स्वयं को अलग न कर सकेगा। भाव संवेदना से लबालब होगा।

9- जब जहां वह होगा, बस वहीं उस क्षण व उस पल मे होगा। साधारण मनुष्यो की तरह भूतकाल के खंडहर व भविष्य के झूले झूलने की कल्पना से दूर होगा।

10- मैं आज जो हूँ जैसा हूँ जो भी भाग्य या प्रारब्ध है, उसके लिए एकमात्र मैं ही जिम्मेदार हूँ। मेरी किस्मत मैंने ही लिखी है। मनुष्य जो बोता है वही काटता है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। इस पर अटूट विश्वास होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...