धार्मिकता के नाम पर विक्षिप्तता-पागलपन से बचें:-
अध्यात्म स्वयं को जानने, आत्मनिर्भर बनने व स्वयं के मूल स्रोत से जुड़ने का नाम है। गुरुदीक्षा में गुरुदेव इसी अध्यात्म से हमें जोड़ते हैं। प्रत्येक नए साधक को पुस्तक "अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार", "सफलता के सात सूत्र साधन" और "मानसिक संतुलन" सबसे पहले पढ़नी चाहिए और जीवन में अमल में लानी चाहिए।
याद रखें - प्रार्थना व पुरुषार्थ दोनो का संतुलन जीवन मे जरूरी है। प्रत्येक अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ेगा, आवश्यकता पड़ी तो अनीति के विरुद्ध अपनों के विरुद्ध भी लड़ना पड़ सकता। मोह सभी समस्या की जड़ है।
नेक्स्ट पुस्तक - सपने सच्चे भी झूठे भी अवश्य पढ़नी चाहिए, व शिष्य संजीवनी पुस्तक भी उसके बाद पढ़े।
गुरुजी स्वप्न में आये अमुक कहे, गुरूदेव को देखकर बहुत रोना आता है। गुरु जी ही सब ठीक करेंगे, हम कुछ नहीं करेंगे। परिस्थिति का रोना रोना। डिप्रेशन व चिंता का समुद्र तभी है जब मन को यह क्लियर नहीं है कि प्रत्येक आत्मा अकेली जन्मी है और अकेली ही शरीर को त्यागकर जाएगी।
इस जीवन यात्रा में सभी अलग अलग आत्माएं पूर्व जन्म के फल अनुसार सुख या दुःख देने हमारे माता पिता, सन्तान, रिश्तेदार के रूप आएंगी। हमें उन्हें हैंडल करना पड़ेगा। जीवन मे आने वाले सुख व दुख को बहादुरी से हैंडल करना पड़ेगा। बीमारी में इलाज करवाना पड़ेगा।
यदि आप धर्म मार्ग में है तो बरसात व ठंड आपके लिए न होगी ऐसा नहीं है। बीमारी आपको नहीं होगी ऐसा भी नहीं है। भूख आपको नहीं लगेगी ऐसा भी नहीं होगा।
भगवान कृष्ण के साथ जो सैनिक युद्ध मे थे वह भी मरे थे, जो उनके विरोध में थे वह भी मरे थे। भगवान की बहन का पुत्र भी मृत्यु को प्राप्त हुआ। संसार के समस्त नियम भगवान हो या इंसान सबको पालने पड़ते हैं।
जन्म से लेकर मृत्यु तक भगवान कृष्ण के जीवन मे संकट ही संकट था क्या किसी ने भगवान कृष्ण को डिप्रेशन में देखा? वह सदैव मुस्कुराते रहे। भगवान राम भी संकट में भी शांत व स्थिर रहे। माता सीता हो या माता राधा संकटमय जीवन मे भी हमेशा स्थिरचित्त रही। बड़े बड़े महापुरुष संकट में भी डटे रहते हैं। अध्यात्म जीवन के संकट से भागना नहीं है, अपितु संकटो का स्थिरचित्त होकर सामना करना है।
संसार मे जिस प्रकार गाड़ी चलाने का हुनर ड्राईविंग ट्रेनर सिखाता है, वह आपके लिए न रोड बनाता है और न ही आपको उम्रभर पेट्रोल खरीद के देता है। न ही उम्रभर आपकी गाड़ी चलाता है। वह बस आपको रास्ते पर गाड़ी चलाने योग्य बनाता है। कैसी भी रोड हो गाड़ी चला सको। अध्यात्म के सद्गुरु भी आपको जीवनपथ पर जीवन की गाड़ी चलाना सिखाते हैं। ईंधन कैसे जुटेगा वह बताते हैं। आपके जीवनपथ को वह नहीं बना सकते, क्योंकि वह पथ आपके पूर्वजन्म के फल अनुसार बना है। उसके गड्ढे आपको ही भरने पड़ेंगे। अपनी जीवन गाड़ी के लिए ईंधन आपको ही पुरुषार्थ से जुटाना पड़ेगा।
प्रार्थना व पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं। अतः धर्म के नाम पर विक्षिप्त मत बनिये, अपितु जीवन के संकटो से निपटने के लिए जीवन जीने की कला सीखिए। बहादुरी से जीवन के संकटो का सामना कीजिये।
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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