प्रश्न- कर्म के सिद्धांतों को समझने के लिए मेरा यह प्रश्न है।
अगर हम निर्भया केस लें या फिर पुलवामा की घटना लें जिसमें terorist अटैक से 40 से ज्यादा जवानों की मौत हो गई, तो ईन घटनाओं के ऊपर मेरा निम्न प्रश्न है।
अगर दुर्घटनाग्रस्त लोगों की दर्दनाक मौत उनकी नियति और प्रारब्ध था, पर अपराध करने वाले लोगों का अपराध करना उनकी नियति नही थी, यह उन्होंने अपने free will का दुरुपयोग कर किया। अगर वे वैसा नही करतें तो फिर दोनो cases में victims अपने प्रारब्ध को कैसे प्राप्त होते?
उत्तर- मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है, मग़र उसके परिणाम के फल पर उसका अधिकार नहीं।
👉🏻निर्भया केस - अकेली लड़की रात को देखकर उसकी रक्षा करना व सकुशल घर पहुंचाना भी कर्म है, जो मानवता का धर्म है। उसके साथ दुष्कर्म करना भी एक कर्म है, मानवता विरुद्ध अधर्म है। कर्म अनुसार फल मिलेगा।
तीन कर्म एक साथ मिले, तीनों के पास चयन का अधिकार था -
1- लड़की का कर्म
2- साथी मित्र लड़के का कर्म
3- बस में बैठे दुष्कर्म करने वाले लड़कों का कर्म
लड़की व मित्र लड़का - भारत की वर्तमान परिस्थिति व आये दिनों हो रहे रेप केसों को देखते हुए सुरक्षा बरतते हुए अर्ध रात्रि को पार्टी व फ़िल्म का प्रोग्राम या तो स्थगित कर सकते थे, या अपनी गाड़ी या पर्सनल कैब कर सकते थे। दूसरा लापरवाही बरतते हुए जो उन्होंने किया अर्द्ध रात्रि को बस लेना।
बस में बैठे बस कर्मचारी समूह के लड़के - मन यदि चंचल था तो बस उन यात्रियों के लिए रोकते ही नहीं आगे बढ़ जाते। दूसरा वह किया जो नृशंश हत्या व दुष्कर्म था।
हमारा चयन ही हमारी नियति है। हमारा कर्म ही हमारा भाग्य या प्रारब्ध बनाता है।
विवेक का प्रयोग जो करने से चूकेगा वह विनाश को निमंत्रण देगा। विवेकहीनता ही विनाश का कारक है। ग़लती सबकी है, किसी की थोड़ी तो किसी की अधिक। प्रत्येक ने जो कर्म किये तदनुसार फल भुगते। कुछ इस जन्म में भुगता व कुछ अगले जन्म में भुगतेंगे।
धर्मराज यदि पत्नी सहित जुआ खेलेंगे तो केवल ग़लती दुर्योधन की नहीं है। दुर्योधन ने विवेक का उपयोग किया, स्वयं न खेलकर शकुनि से पासे फिंकवाये, धर्मराज भी स्वयं न खेलकर भगवान कृष्ण को ले जा सकते थे। अगर कृष्ण सभा मे होते तो क्या द्रौपदी चीरहरण होता?
बुद्धि जो लगाएगा वह विजयी होगा, दुर्योधन व शकुनि बुद्धिमान थे, एवं धर्मराज उस समय नहीं थे इसलिए पराजित हुए व षड्यन्त्र के शिकार हुए। धर्म हो या अधर्म हो, जीतेगा वही जो उस समय सही बुद्धि व रणनीति अपनाएगा। कर्म फल का यही विधान है।
धर्मशील का अर्थ बुद्ध होना है, बुद्धू बनना नहीं। धर्म के रक्षण के लिए बुद्धि, बल व योजना तीनो जरूरी है।
👉🏻 पुलवामा की घटना - कोई भी वृक्ष तब तक नहीं कटता जब तक कुल्हाड़ी में अपने ही कुल की लकड़ी न लगी हो। वैसे ही पुलवामा की घटना बिना लोकल कश्मीरियों के हेल्प के सम्भव नहीं थी। प्रत्येक आतंकी हो या सैनिक दोनो ही कर्म करने के लिए स्वतंत्र है।
युद्ध आमने सामने हो, या युद्ध छद्म हो। तबाही दोनो तरफ निश्चित है। एक्शन का रिएक्शन होगा ही।
दुर्योधन की सेना एवं युधिष्ठिर की सेना के सदस्य का आपस मे कोई वैर नहीं था। भारतीय सैनिक व आतंकी सैनिक का, आम जनता का आपस मे कोई व्यक्तिगत वैर नहीं। दोनो सेना ने चयन युद्ध का किया है। भारतीय सेना ने धर्म व देश की रक्षा के लिए हथियार उठाये हैं, आतंकी सेना ने आतंकी आकाओं से प्रेरित होकर हथियार उठाये हैं। यहां दोनो तरफ कर्म में पार्टी स्वतन्त्र है, कर्मफ़ल भी तद्नुसार मिलेगा।
चयन ही नियति तय करेगा, कर्म के पीछे छुपा कर्म का उद्देश्य व भाव कर्मफ़ल को प्रभावित करेगा।
धन लूटने के लिए मर्डर या आत्मरक्षा में हुआ मर्डर यदि सांसारिक जज के पास जाएगा तो वह दोनो को एक नहीं मानेगा। एक को फांसी तो दूसरे को बरी करेगा। तो भला ऊपरवाला भी तो सर्वोत्तम न्यायकारी जज है, वह भी तो न्याय ही करेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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