Thursday 26 August 2021

प्रश्न - ध्यान की उपयोगिता क्या है?

 प्रश्न - ध्यान की उपयोगिता क्या है?


उत्तर- *ईश्वरीय उपासना और ईश्वरीय चेतना से जुड़ने के दो माध्यम है, जप और ध्यान। यहां केवल ध्यान पर चर्चा करेंगे।*


जप के साथ ध्यान जरुरी है, और ध्यान बिना किसी माध्यम या विचार के  निर्विचार भी किया जा सकता है। अब जैसे निराकार उपासना से साकार उपासना सहज़ होती है। वैसे ही मुख्य ध्यान तक पहुंचने के लिए धारणा के जरिये आसान होता है।

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👉🏼 *धारणा* - एक प्रकार का बीजारोपण है, जिसे आप नेत्र बन्द करके शरीर स्थिर करके कल्पना करते हुए सोचते हैं।


👉🏼 *ध्यान* - ध्यान एक तरह से बीज से पौधा निकलने की तरह है, बीज से आप जबरजस्ती पौधा बाहर नहीं निकाल सकते, लेकिन मिट्टी में बोकर समय समय पर खाद पानी देते रहेंगे तो बीज से पौधा स्वतः निकलेगा। ध्यान स्वतः होता है किया नहीं जाता।


👉🏼 *समाधि* - पौधे से फ़ल निकलना ही समाधि है। यह भी स्वतः होगी।


आपके हाथ में न ध्यान करना है और न ही समाधि। केवल धारणा में एक लक्ष्य पर आप कल्पना करते हुये एकाग्र हो सकते है। बाकी स्वतः होगा।


*दही जमाने के लिए जामन डालकर छोड़ देना होता है। इसी तरह एक विचार लक्ष्य पर एकाग्र हो स्वयं को स्थिर कर देना होता है।*


👉🏼 प्रश्न - *कौन से व्यक्ति के लिए कौन सा ध्यान उपयुक्त रहेगा?*


उत्तर - ध्यान व्यक्ति के हिसाब से नहीं बल्कि रुचि या उसकी समस्या के अनुसार किया जाता है, जैसे किसके किचन में क्या पकेगा यह उसकी रुचि पर निर्भर करता है और उसकी समस्या पर निर्भर करता है।


*स्वास्थ्य लाभ के लिए* - जैसे किचन में स्वास्थ्यकर भोजन पकता है, वैसे ही स्वास्थ्य लाभ के लिए प्राणशक्ति वर्धक (रेकी) वाले ध्यान करते हैं, उदाहरण - चक्रों पर ध्यान, ऊर्जा शरीर की सफाई का ध्यान, आकाश-धरती-वायु-अग्नि-जल से ऊर्जा लेने का ध्यान, रोग मुक्ति के भाव और उसमें प्राणशक्ति ब्रह्माण्ड से संचार का ध्यान।


*चेतना की शिखर यात्रा के लिये और भीतर के ख़ज़ानों की खोज के लिए* - पंचकोश जागरण ध्यान, प्राणाकर्षण ध्यान, उगते हुए सूर्य में समाने का ध्यान, ईष्ट देवता या गुरु से जुड़ने का ध्यान।


*Where attention goes, Energy flows* - आप जिधर विचारों को केन्द्रीभूत करेंगे उसी ओर ऊर्जा प्रवाहित भी होती है और उस ऊर्जा की ग्रहणशीलता भी बढ़ती है। *उदाहरण* - सूर्य की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, तेज़, प्रखरता, गति और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। यदि चन्द्र की धारणा युक्त ध्यान करने पर सूर्य की शक्तियां, शीतलता, स्थिरता और गुण आपमें प्रवेश करेंगे। साधारण शब्दो मे जिसका ध्यान करोगे वैसे हो जाओगे।


👉🏼 प्रश्न - *कौन से वक्त ध्यान करना चाहिए?*


उत्तर - जैसे उत्तम नियम के अनुसार किचन में कम से कम सुबह शाम दो वक्त भोजन बनना ही चाहिए। नहीं तो एक वक्त ही सही बने जरूर। इसी तरह कम से कम दो वक्त सुबह- शाम ध्यान करना चाहिए। न बन पड़े तो एक वक्त जरूर करें। किचन में दोपहर या किसी भी वक्त भोजन तो बन ही सकता है, जब भी बनेगा भूख मिटाएगा। इसी तरह ध्यान भी किसी भी वक्त किया जा सकता है, जब भी करोगे लाभ तो मिलेगा ही।


👉🏼 प्रश्न - *कितने समय तक ध्यान करना अनिवार्य है?*


उत्तर - जिस तरह भोजन में कितनी कैलोरी चाहिए, ये मनुष्य की उम्र, मनुष्य की भूख और उसके वज़न पर निर्भर करता है। इसी तरह ध्यान कम से कम कितनी देर करना आवश्यक है - यह मनुष्य की उम्र, शरीर के वज़न, शरीर का स्वास्थ्य पर निर्भर करेगा। *साधारणतया जो भी आपकी उम्र हो उतनी मिनट का ध्यान दो वक्त अनिवार्य है।*


👉🏼 प्रश्न - *ध्यान किस आसन और शारीरिक स्थिति में करना चाहिए?*


उत्तर - ध्यान हमेशा ढीले और आरामदायक वस्त्र पहन कर करना चाहिए। आसन में ऊनि वस्त्र बिछाकर करना चाहिए। दिशा पूर्व और उत्तर सर्वोत्तम है। बैठकर नेत्र बन्द, कमर सीधी और सुखासन या पद्मासन सर्वोत्तम है। दोनों हाथ एक के ऊपर एक गोदी में या ध्यान मुद्रा दोनों अच्छा है।


 लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है। बस कमर सीधी और मुंह आसमान की ओर होना चाहिए।


ध्यान में हथेली हमेशा आकाश की ओर होनी चाहिए।


ध्यान हल्के पेट मे होना चाहिए, कम से कम ध्यान से पूर्व एक घण्टे तक कुछ गरिष्ठ न खायें। जितना हल्का पेट होगा उतना बढ़िया ध्यान लगेगा।


ध्यान की जगह शांत होनी चाहिए, शांत जगह न मिले तो कान में ईयर प्लग या हेडफोन लगा के ध्यान कर लें।


अभ्यस्त हो जाने पर चलते फिरते भी ध्यान होने लगता है, चलते फिरते ध्यान शुरू करने के लिए तीन बार गहरी श्वांस के साथ *सो$हम* बोलते हैं। फिर स्वयं से कहते हैं शरीर चैतन्य है और मन चैतन्य है। मन स्थिर है और शांत है। मैं अवेयर/जागरूक हूँ। अब जिसकी चाहे उसकी धारणा/कल्पना करते हुए ध्यान ऑफिस/यात्रा कहीं भी कर सकते है।


दुनियाँ का कोई भी धर्म हो, उसकी साधना की जड़ ध्यान ही है। सूक्ष्म अंतर्जगत में प्रवेश केवल ध्यान के वाहन द्वारा ही किया जा सकता है। गुह्य से गुह्य दिव्यचेतना युक्त साधनाएं, प्राणस्वरूप उच्चस्तरीय साधनाएं, रेकी, ज़ेन योगा, जैन-बौद्ध-क्रिश्चन-सूफ़ी सबका केंद्र ध्यान ही तो है।

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