प्रश्न - 1- गायत्री मंत्र कितने प्रकार के होते हैं?
2- जो गायत्री मंत्र प्रचलन में है वो किस देवता का हैं? किसको समर्पित है व किस देव का ग़ायत्री मन्त्र कहा जायेगा?
उत्तर - गायत्री मूल मंत्र जिसे विश्वामित्र जी ने जागृत किया व जनसामान्य के लिए उपलब्ध करवाया वह निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है।
वह मूल 24 अक्षर का मन्त्र था - "तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।"
ऋषियों की ब्रह्म संसद ने मन्त्र में तीन व्याहृतियाँ जोड़ी - "ॐ भूर्भुवः स्व:"
👉🏼 *गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*
भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
*यह सार्वभौम मन्त्र है, इसे किसी भी ईष्ट की शक्ति का दोहन करके स्वयं में धारण किया जा सकता है। वह शक्ति स्वयं में जागृत किया जा सकता है। यह निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है।*
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बाद में ऋषियों की संसद ने इस निराकार मन्त्र को किसी विशेष देवता से संयुक्त कर साकार मन्त्र बनाने हेतु विधि व्यवस्था दी - मन्त्र का फॉर्मूला दिया।
👉🏻 *निराकार ग़ायत्री मन्त्र को किसी देवता का साकार ग़ायत्री मन्त्र बनाने का नियम(फार्मूला)* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु
अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात
या
ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि,
तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात
👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद् अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो* - वह हमारे लिए
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।
*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। नारायण हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग को बढ़ाने हेतु उसका पथ प्रदर्शन करें।
ऐसे ही समस्त देवताओं के मन्त्रों का अर्थ होगा।
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👉🏻 👉🏼 *बीज मंन्त्र* - जैसा की इसके नाम से स्पष्ट है कि यह बड़े मंन्त्र का बीज (सूक्ष्म) स्वरूप है। यदि खाना हो तो हम सेव का फल खरीद कर खाते हैं, लेक़िन यदि खेती करनी हो तो हम बीज लेकर आएंगे और उसे बोएंगे।
इसी तरह नित्य साधना हेतु, मनोकामना और कृपा प्रप्ति के लिए मंन्त्र जपे जातें हैं। लेक़िन यदि सम्बन्धित देवता के देवत्व को स्वयं में एकाकार करना हो तो उनके बीज मंन्त्र की जरूरत पड़ती है। इनके मंन्त्र जप में सावधानी खेती की तरह बरतनी पड़ती है। निश्चित समय औऱ संख्या में अनुष्ठान करने पर ही इनका फल मिलता है। बीज बिना मिट्टी और अन्य सहायता के पनप नहीं सकता। इसी तरह बीज मंन्त्र किसी मंन्त्र की सहायता से ही जपे जा सकते हैं। बीज का वही अर्थ है जो उस देवता का है जिस देवता का बीज मंन्त्र है।
उदाहरण -
*माँ महाकाली का बीज मंत्र* :-
जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्लीं ” |
*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः *क्लीं क्लीं क्लीं* तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *क्लीं क्लीं क्लीं* ॐ
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अतः संक्षेप में यह समझे मूल ग़ायत्री मंत्र निराकार ब्रह्म शक्ति को समर्पित है। लेकिन इस निराकार मन्त्र से साकार देवताओं के मन्त्र निर्मित किये जा सकते हैं। साथ ही मूल ग़ायत्री मंत्र में बीज मंत्र प्रयोग कर इसे उस बीज मन्त्रयुक्त कर जपा जा सकता है। ग़ायत्री मन्त्र को महामृत्युंजय मंत्र के संयोजन करके मृतसञ्जीवनी मन्त्र बनाकर भी जपा सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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