*मन को साधना कठिन है, किंतु असम्भव नहीं।*
मन बुद्धू है,
मक्खी की तरह रस लेता है,
गंदगी भी रस देती है,
गुड़ भी रस देता है।
मन को बिना रस नहीं रख सकते,
इसलिए तो,
संत भक्ति में रस लेते हैं,
चोर चोरी में रस लेते हैं,
पुरुषार्थी पुरुषार्थ में रस लेते हैं,
आलसी आलस्य में रस लेते हैं।
मन जिस पर रस लेता है,
जीवन उस ओर गति करता है,
इसलिए रस लेने से पूर्व,
विवेक की कसौटी पर उसे कसो,
मन पर विवेक बुद्धि से लगाम कसो..
आसक्त मन को,
विवेक की सँगति में रखो,
मन को सही ग़लत का निरंतर अभ्यास करवाओ,
चालीस दिन मन को चालीसा सुनाओ,
बलपूर्वक उसे सही राह पर लाओ...
चित्त में जमी वासना की गंदगी सफ़ाई करो,
किसी नए शुभ सङ्कल्प की चित्त में स्थापना करो,
बुद्धि रूपी द्वारपाल से मन पर निगरानी रखो,
मन को बार बार नए संकल्पों से बांधो,
निरंतर ज्ञान-वैराग्य के अभ्यास से,
मन एक दिन सुधर जाएगा,
शुभ सङ्कल्प से वह निखर जाएगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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