मरना तो एक न एक दिन सबको है, बस चयन करो कायरता में डरकर मरना है या बहादुरी से लड़कर मरना है?
मुगलों के आतंक का वक्त था, ग्रामीण स्त्रियों की सुरक्षा हेतु पुरुष पहरा देते थे, स्त्रियों को मुंह ढक कर रखना पड़ता था और आदेश था यदि संकट दिखे तो जौहर कर लेना अर्थात जलकर मरना। क्योंकि मुग़ल मृत स्त्रियों के साथ भी दुराचार करते थे क्योंकि यह उनके धर्म में स्वीकार्य था। जो धर्म ही उन्हें दूसरे धर्म की स्त्रियों को लूटने, बलात्कार करने, हत्या करने और यदि जीवित न मिले तो मृत लाश के साथ सहवास व दुष्कर्म करने की इजाज़त देता हो तो ऐसे विधर्मी लोगों से निपटने का यही उपक्रम उस नगर के स्त्री पुरुषों को दिखा।
उसी ग्राम में एक कन्या का जन्म हुआ, जब वह 14 वर्ष की हुई तो उसे भी यही शिक्षा दी गयी। उसने पिता से पूंछा आप मुझे कायरों की तरह मरने की शिक्षा क्यों दे रहे हैं? जिस तरह भाइयों को हथियार चलाना सिखाया मुझे भी सिखाइए जिससे मैं स्वयं की रक्षा के साथ साथ दूसरों की रक्षा कर सकूं। पिता ने कहा बेटी वो लाशों के साथ दुष्कर्म करते है यदि तू शहीद हुई तो भी तेरी देह को अपवित्र कर देंगे। उसने कहा पिताजी मेरे पास उसका भी उपाय है। मैं विषधर सर्प के ज़हर को अपने पास रखूंगी व मृत्यु की आशंका या पकड़े जाने के वक्त उसे खाकर ज़हर से नीली हो जाऊंगी, आप सब भी तरकश में विष बुझे यह नन्हे तीर रखें यदि कोई स्त्री सैनिक पर खतरा दिखे तो चला दें, तब कोई मुगल आततायी मुझे और उन जहर से सनी स्त्री स्पर्श करने से भी डरेगा।
फ़िर क्या ग्राम का नियम ही बदल गया, स्त्रियों को पुरुषों के समान सैन्य प्रशिक्षण मिला। अब ग्राम की शक्ति दोगुनी हो गयी। मुगल आतताई के सामने स्त्रियां मुख ढकने की जगह आंख के अंगारों व हाथ लिए हथियारों से उनका अंत करने लगी। शिकार हिरणियों का आसान है शेरनियों के झुंड का नहीं। मुगलों को जब बहुत जानमाल का नुक्सान हुआ तो उन्होंने उस ग्राम को तंग करना छोड़ दिया। उधर कभी न गए।
कायरता की रणनीति से जान बचाने की न सोचें, अपितु बहादुरी से लड़कर जब तक जियें शान से जियें व मरकर शहीद होने की रणनीति बनाएं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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