प्रश्न - "मेरी पढ़ाई कुछ दिन ठीक चलती है, फिर फ़ोकस हट के मन ईधर उधर डाइवर्ट हो जाता है। फिर बड़ी मुश्किल से फ़िर दुबारा लगाना पड़ता है। क्या करें कि मन पढ़ने में लगे और ऊबे नहीं..."
उत्तर - मन की गति है आनन्द का रस लेना, और किसी भी चीज़ के मिलने से ऊब भी जाना और फिर कुछ नया तलाश करना...
आइसक्रीम खाने का मन हो, तो कई दिन आइसक्रीम खानी पड़ जाए तो मन ऊब जाता है, वही यदि आइसक्रीम न मिले तो उसी ओर ललचाता रहेगा।
जिन बच्चों को पढ़ने का अवसर नहीं मिलता व गरीबी के कारण व फीस न भर पाने के कारण पढ़ाई से वंचित है। वह बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म और पुस्तको को देखकर ललचाते रहते हैं। पढ़ने के लिए बेकरार रहते हैं।
अब तुम्हें पुस्तक भी मिल गयी व यूनिफार्म भी, पेट में भोजन भी है और स्कूल की फीस की कोई टेंशन भी नहीं। जीवन में वर्तमान में जरूरत की सब व्यवस्था है, तो मन को पढ़ने की जरूरत महसूस नहीं हो रही व वह पढ़कर ऊब रहा है। ईधर उधर भटक रहा है।
मन मोटरसाइकिल की तरह दिखता तो है नहीं, उसे स्पर्श भी नहीं किया जा सकता। तो तुम्हारे मन को पकड़कर मैकेनिक के पास ले जाकर उसकी मरम्मत करवाना भी सम्भव नहीं।
तो फिर क्या करें? मन को कैसे सम्हालें?
मन को नियंत्रित करने का कुछ उपाय है ग़ायत्री मन्त्र जप, ध्यान, प्राणायाम और उसको नित्य समझाना-बुझाना।
अब प्रश्न यह उठता है कि तुम्हारे मन को समझायेगा व बुझायेगा कौन? तुम्हे ध्यान में लगाएगा कौन? तुम्हारे मन से प्राणायाम करवाएगा कौन? तुमसे ग़ायत्री मन्त्र जपवायेगा कौन?
यह तो वही बात हो गयी कि तुम्हारे लिए खायेगा कौन? तुम्हारे खाये भोजन का पाचन करेगा कौन? फिर उसे अंततः टॉयलेट में निकालने जाएगा कौन?
डियर, यह सब आपको स्वयं ही करना है। नित्य 21 बार गणेश योग और अनुलोम विलोम प्राणायाम आपको ही करने है। मन को साधने हेतु 15 मिनट उगते सूर्य का ध्यान और 15 मिनट ग़ायत्री मन्त्र जप आपको स्वयं करना होगा। नित्य दोनो हाथों से बारी बारी 5-5 लाइन ग़ायत्री मन्त्रलेखन भी करें, इससे मन का भटकाव कम होता है। अच्छी महापुरुषों के संघर्षमय जीवनी पढ़े इससे मनोबल बढ़ता है।
मन को निम्नलिखित बाते रोज आपको समझानी होगी:-
वर्तमान जीवन की सुख सुविधा मुझे मिली क्योंकि मेरे माता-पिता ने पढ़ाई की, पापा यदि न कमाते तो हम भूखों मरते। वृद्धावस्था में दादा-दादी नहीं कमा रहे, ऐसे ही माता-पिता वृद्ध होने के बाद नहीं कमाएंगे। फिर घर खर्च व अपने जीवन को हमे स्वयं सम्हालना है। जनसँख्या अधिक है व कम्पटीशन कठिन है। मुझे अच्छा कैरियर बनाना है तो सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। मुझे मेरे मन को पढ़ने में लगाना ही होगा। ज्ञान एक मात्र मेरे जीवन को सम्हालेगा, बिना ज्ञान मैं समाज मे स्वयं को प्रतिष्ठित नहीं कर पाऊंगा/पाऊंगी। मुझे सब तभी सम्मान देंगे जब मैं सफल बनूंगा/बनूंगी।मुझे मेहनत करनी है, मैं कर सकता हूँ/सकती हूँ।
मन बार बार भटकेगा, इसे पुनः सही राह पर हम लाएंगे, इसे पढ़ने में लगाएगें। मन को पढ़ने में लगाना हमारी जिम्मेदारी है। स्वयं को योग्य बनाना हमारी जिम्मेदारी है। हमें पढ़ना ही पड़ेगा, हम पढ़ेंगे और मन को पढ़ाई का महत्त्व समझाएंगे।
जब मन किसी सब्जेक्ट से ऊब जाए, तो लिखने लग जाये। जब लिखने से थक जाए तो दूसरा सब्जेक्ट पढ़ने लग जाये। बीच बीच मे 2 मिनट से 5 मिनट का प्रत्येक 40 मिनट बाद स्वयं को पढ़ाई से ब्रेक दें।
मन यदि पढ़ने में लगे तो उसे शाबाशी देने के लिए उसकी पसन्द का कुछ खाएं या कुछ खेल कर लें। यदि मन पढ़ने में न लगे तो उसे दण्ड देने हेतु नापसंद चीज़ करेले, नीम व मिर्च को कच्चा खाएं।
मन के टीचर/मालिक स्वयं बने, उपरोक्त विधियों से मन को सम्हाले समझाये और पढ़ाई में लगाये। मन आपका है तो इसे सही राह पर लाने की जिम्मेदारी भी आपकी है। यह जीवन आपका है तो इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती,
लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती।
जो अनवरत प्रयास करता है, वही सफलता का स्वाद चखता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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