Monday 14 March 2022

प्रश्न - मृत्यु भोज क्या कुप्रथा-कुरीति है? या कुछ आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ भी है?

 प्रश्न - मृत्यु भोज क्या कुप्रथा-कुरीति है? या कुछ आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ भी है?


उत्तर- 

*आध्यात्मिक लाभ एवं उचित रीति रिवाज* - श्राद्ध तर्पण एवं तपस्वी अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मण से यज्ञ करवाना और उसके बाद उनको भोजन करवाना - यह उचित रीति रिवाज है। जिनके पास तप की पूंजी है उन तपस्वियों के आशीर्वाद से आत्मा को शांति मिलती है।


*रूढ़िवादी कुरीति - कुप्रथा* :- सारे आस पास के गांव और रिश्तेदार-नातेदार भैवाद को मृत्यु भोज करवाना। आम जन जिनके पास तप की पूंजी नहीं उन्हें भोजन करवा के कोई लाभ नहीं। जो मृतक के प्रति संवेदनशील नहीं औऱ जिनके हृदय में मृतक के लिए सच्चा प्रेम व निष्ठा नहीं, उन्हें मात्र दिखावे व रूढ़िवादी परंपरा के निर्वहन के लिए भोजन करवाना कुप्रथा है।


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देवतुल्य और तपस्वी ब्राह्मणों के अभाव में 12 वर्ष की कम उम्र की कन्याओं को भोजन करवा दें। या किसी विवाह योग्य गरीब कन्या के विवाह हेतु या पढ़ाई की इच्छुक कन्या के पढ़ाई हेतु धन खर्च करें। पुण्यलाभ होगा।


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मृतक के नाम पर वृक्षारोपण अक्षय पुण्य देता है। यह पशु पक्षियों को भोजन और घर दान करता है और इंसानों को सतत ऑक्सीजन दान करता है। अक्षय पुण्य हेतु मृतक के नाम पर वृक्ष लगाएं।


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गौ सेवा व गौ दान और श्रीमद्भागवत के सातवें अध्याय का पाठ भी मृतक की आत्मा को शांति देता है।


🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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