गर्भ सम्वाद - परिवार के बंधन का महत्त्व (बाल निर्माण की कहानियां)
लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती, DIYA
मेरे प्यारे बच्चे, आज हम बात करेंगे परिवार में प्यार के बंधन से इंसान कैसे सफल बनता है?
यह झाड़ू देख रहे हो, यदि रस्सी से बंधी हो तो कोई भी कचरा साफ कर सकती है। यदि यह रस्सी खुल जाए तो यह झाड़ू स्वयं कचरा बन जाता है।
इसी तरह जब परिवार प्यार,सहकार और विश्वास के बंधन में बंधा होता है तो मिलकर बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझा देता है। जब वही परिवार में प्यार, सहकार व विश्वास का बंधन टूट जाता है तो वह परिवार ही स्वयं समस्या बन जाता है और प्रत्येक परिवारजन समस्या ग्रस्त -तनाव ग्रस्त हो जाते हैं।
कितना भी स्वादिष्ट भोजन हो, यदि नमक न डले तो वह फ़ीका हो जाएगा। लेक़िन यदि अधिक डल जाए तो खाने योग्य न रहेगा।
परिवार का बंधन भी नमक की तरह बेहद जरूरी है मगर अत्यधिक हो तो जीवन बर्बाद कर देता है।
मेरी माता कहती थी मनुष्य का जीवन वाद्य यंत्र की तरह है, अधिक ढील दिया तो बेसुरा हो जाएगा और अधिक कस दिया तो टूट जाएगा। मनुष्य का जीवन हो या परिवार संतुलन जरूरी है।
आओ इस सम्बंध में तुम्हें एक कहानी सुनाते हैं, एक उद्योगपति ने किन्ही कारणों से विवाह नहीं किया था। बहुत धन संपदा थी। वह किसी योग्य बच्चे को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे साथ ही उस बच्चे को उसके परिवार से दूर भी नहीं रखना चाहते थे। अतः पूरे परिवार को वह अपने पास रखना चाहते थे। मग़र वह अपने जीवन मे कोई अशांति नहीं चाहते थे अतः एक प्यार सहकार से भरा परिवार ढूढ़ना उनका उद्देश्य था, बुद्धिमान भी चाहिए था जो बिजनेस सम्हाल सके।
उन्होंने ने शोशल मीडिया और न्यूज पेपर में घोषणा कर दी कि हम एक प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं जिनमे विजेता परिवार को 50 लाख रुपये पुरस्कार में दिए जाएंगे, प्रतियोगिता में समस्त परिवार को बच्चे के साथ आना होगा। बालक या बालिका की उम्र 10 से 12 के बीच होनी चाहिए। चुनाव हमारे पैतृक गांव में होगा, जहां रास्ता खराब है व किन्हीं कारणों से हमारे पैतृक गांव तक पहुंचने के लिए दस किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी।
उद्योगपति ने रास्ते के सभी पेड़ो पर डिवाइस लगा रखी थी जिससे कौन सा परिवार क्या कर रहा है देखा व सुना जा सके।
जिन लोगों के बालक 10 से 12 वर्ष के थे वह खुश हो गए, व उद्योगपति के गांव सपरिवार निकल पड़े।
कई कसौटी पर बच्चों की बुद्धि टेस्ट लेने के बाद दो परिवार राम व मोहन के फाइनल राउंड के लिए चयनित हुए..
प्रत्येक परिवार को अलग अलग समय मे उन रास्तों से गांव पहुंचना था.. रास्ते मे कई चुनौतियों की व्यवस्था थी..
चिलचिलाती धूप और पीने के लिए पानी हेतु एक कुंआ था। वहां रस्सी तो रखी थीं मग़र छोटे छोटे टुकड़े में.. एक छोटी सी बाल्टी भी थी मगर उसमें एक छोटा सा छेद भी था..
मोहन के परिवार वाले तो आपस मे लड़ पड़े और बोले, क्या जरूरत थी यहाँ आकर मरने के लिए.. पानी भी खत्म हो गया व यहां रस्सी भी टूटी है। चलो आगे बढ़ते है शायद आगे कुछ पानी पीने की व्यवस्था हो..
राम व उसका परिवार भी प्यासा था, राम के पिता ने कहा प्रत्येक समस्या का समाधान जरूर होता है। माँ ने कहा यदि हम समस्या की ओर दृष्टि रखेंगे तो चिंता होगी और समस्या का समाधान ढूढने में जुटेंगे तो समाधान अवश्य मिलेगा..
राम के पिता ने छोटी छोटी रस्सियों को आपस में गांठ बांधना शुरू किया व इसमें राम ने मदद की.. राम की माँ ने अपनी चुनरी में से कपड़ा फाड़ा और उसमें एक तरफ गाँठ लगाया और दूसरी तरफ से छेद में डालकर खींचा.. दूसरी तरफ भी गाँठ बांध दी.. बेटी ने बाल्टी को साफ कर दिया.. रस्सी बाल्टी तैयार हो गयी.. परिवार ने कुएं से पानी निकाला व अच्छे से हाथ मुंह धोया और ठीक से पानी पिया और आगे बढ़ गए...
प्रत्येक परिवार को भूख लग रही थी, मग़र कोई भोजन की व्यवस्था कहीं दिख नहीं रही थी.. बीच मे एक खेत था जहाँ कच्चे भुट्टे थे.. मोहन व उसकी बहन खुशी से चिल्ला पड़े..पापा मम्मी देखो.. कॉर्न भुट्टा.. खेत मे एक बूढ़ा किसान बैठा था..
मोहन की मम्मी भड़क गई, अब कच्चा भुट्टा खाएं क्या? मोहन के पापा ने कहा क्या इसमें भी मेरी गलती है? मोहन ने कहा भूख लगी है, मोहन की बहन तो रो पड़ी.. बहस हुई लड़ाई हुई.. मोहन के पापा बोले आगे बढ़ो शायद कुछ मिल जाये... मोहन के पिता ने बूढ़े किसान से पूँछा गांव कितनी दूरी पर है..किसान ने कहा अभी 6 किलोमीटर आगे है...
राम का परिवार भी भुट्टे को देखा, भूख तो उन्हें भी लगी थी.. सभी सोचने लगे कि भुट्टा कैसे खाया जाए.. राम ने कहा यदि भुट्टे हम आग में सेंक सके तो टेस्टी बन जायेगा। राम के पापा ने कहा आइडिया अच्छा है। किसान से पूंछा भाई भुट्टे चाहिए व माचिस भी मिलेगी क्या? किसान ने दे दिया और उन्होंने ने किसान को पैसे दे दिए..
सूखे पत्ते व लकड़ी इकट्ठी करो इसे जलाकर भुट्टे सेंकते हैं। सारा परिवार पत्ते व लकड़ी इकट्ठी करते हैं वह किसान भी मदद करता है, सब टेस्टी भुट्टे खाते हैं व किसान को भी खिलाते है। रास्ते मे आगे बढ़ते है।
जैसे तैसे भूखा प्यासा मोहन का परिवार गांव पहुंच जाता है लेकिन रास्ते में खड़े एक नुकीले पत्थर से मोहन की मां को चोट लग जाती है। वह गांव वालों और वहां के प्रशासन को गाली देते है, और आगे बढ़ जाते हैं।
राम का परिवार जब उसी पत्थर के पास पहुंचा तो राम की मां ने कहा सम्हलकर नुकीला पत्थर है। देखो यहां खून भी गिरा है लगता है अभी कुछ देर पहले किसी को चोट लगी है। राम कहता है पापा चलो इस पत्थर को निकालकर यहां से हटा देते हैं, ताकि किसी और को चोट न लगे। राम की बहन कहती है, जिसे चोट लगी होगी उसको बहुत दर्द हुआ होगा। सारा परिवार ईधर उधर नज़र दौड़ाता है, तभी उनकी नजर दूर खेत मे काम करते मजदूर पर पड़ती है, उससे गंडासा मांग कर लाते है व सब मिलकर उस नुकीले पत्थर को मध्य मार्ग से निकाल कर हटा देते हैं।
राम का परिवार भी गांव के भीतर पहुंच जाता है।
उद्योगपति राम व उसके परिवार को प्रतियोगिता का विजयी बताता है तो मोहन व परिवार के सदस्य विरोध करते हैं। कि कोई एग्जाम आपने तो लिया ही नहीं व विजेता कैसे राम व उसके परिवार को घोषित कर दिया?
उद्योगपति मुस्कुराए व बोले, रास्ते मे तीन प्रतियोगिता थी -
1- पहला कुंआ, छोटे छोटे रस्सी के टुकड़े व छेद वाली बाल्टी
2- दूसरा भुट्टा व किसान -
3- रास्ते के बीचों बीच रखा नुकीला पत्थर
जो क्रमशः आप के परिवार के बीच का तालमेल, आपके समस्या को लेकर दृष्टिकोण, आपकी सतर्कता, आपके बीच की रास्ते भर की बातचीत, साथ ही संवेदनशीलता का एग्जाम था।
मोहन का परिवार आपस मे दोषारोपण में व्यस्त था, सतर्क नहीं था व समस्या के समाधान करने की नहीं सोचा। मोहन की मां चलते वक्त पहले तो सतर्क नहीं थी, दूसरा चोट लगने पर मोहन के पापा उसके प्रति संवेदनशील नहीं हुए। मोहन ने पत्थर को निकालने का पापा से आग्रह नहीं किया जिससे दुसरो को चोट न लगे। अर्थात समाज के प्रति उत्तरदायित्व व दुसरो के कष्ट के प्रति संवेदनशील नहीं है। ऐसे परिवार के हाथ मे अपना बिजनेस दूंगा तो वह डूब जाएगा और साथ रखूंगा तो आप सब अपनी अशांति मुझे दे देंगे। मेरी कम्पनी के मजदूरों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे तो मेरी कम्पनी की तरक्की रुक जाएगी।
राम का परिवार पूरे रास्ते हंसते बाते करते हुए आया, एक दूसरे के लिए संवेदनशील था। दिमाग लगाकर पानी पिया व भुट्टा खाया। यह इतने सतर्क रास्ते में चलते वक्त थे कि चोट नहीं लगी। इतने समाज के प्रति संवेदनशील थे कि दूसरे को चोट न लगे इसलिए पत्थर उखाड़ कर हटा दिया। यह परिवार इतना खुशहाल है कि इनके साथ जुड़ने पर यह मुझे भी खुशहाल कर देंगे। मेरी कम्पनी के मजदूरों के प्रति संवेदनशील होंगे तो मेरा काम और बढ़ेगा। इनमें बुद्धि है तो बिजनेस के उतार चढ़ाव को सम्हाल लेंगे। यह परिवार प्यार-सहकार और विश्वास की डोर से बंधा है इसलिए यह किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम है। परिवार में मिले अच्छे संस्कार से राम स्वयं भी तरक्की करेगा और बिजनेस को भी नई ऊंचाइयां देगा।
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