Sunday, 3 April 2022

बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें

 *बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें*


कुछ रोज पहले,

चाचा जी गुज़र गए,

उनके के लिए,

नजदीकी श्मशान में,

कफ़न इत्यादि ख़रीदने गया,

अंतिम क्रिया का सामान,

भारी मन से ख़रीदने गया।


एक वृद्ध बहन जी,

दुकान पर बैठी थीं,

जाते ही मुझसे पूँछा,

मरने वाला पुरुष है? या महिला?

उसकी कद काठी क्या थी?

उन्हें न कोई मृतक के प्रति सम्वेदना थी,

न ही कोई उनके चेहरे पर प्रतिक्रिया थी।


मैंने जानकारी दी कि,

मरने वाला पुरुष था,

बस फ़िर क्या सहजता से उन्होंने,

सारा समान ऐसे दे दिया,

मानो वह पहले से सेट बनाकर रखा था,

अन्य किराने वाले जैसे सामान देते हैं,

बस वैसे ही सहजता से वो सामान मुझे थमा दिया था।


मैंने उन वृद्ध बहन से पूँछा,

आप यह अंतिम क्रिया की दुकान,

कब से चला रही हो?

उन्होंने मेरी ओर देखकर कहा,

बेटा, बहुत वर्ष हो गए,

कब से यहां हूँ,

यह तो याद नहीं,

हाँ, यह हमारी पुस्तैनी दुकान है,

पति के परलोक गमन के बाद से,

मैं ही इसे चला रही हूँ।


मैंने पुनः हिम्मत कर,

उनसे प्रश्न पूंछा,

क्या आपको यहाँ भय नहीं लगता,

जलती लाशें देखकर दुःख नहीं लगता,

हरियाणा में तो स्त्रियां श्मशान नहीं जाती,

आप स्त्री होकर,

यहाँ अंतिम क्रिया की दुकान कैसे चलाती हो?


वह हँसी और मेरी ओर देखा,

बोली जिंदा इंसान हानिकारक हैं,

मुर्दा इंसान नहीं,

जो ख़ुद दूसरों के कंधे पर आ रहा हो,

जो स्वयं जलकर खाक होने आ रहा हो,

वो भला किसी को क्या नुकसान पहुंचाएगा?

जलती लाशों को देख दुःख किस बात का?

यह तो ब्रह्म सत्य है जो जन्मा है व मरेगा भी...


जी वह तो सत्य है,

लेक़िन लोग कहते हैं कि,

श्मशान में भूत होते हैं,

तो क्या आपको उससे डर नहीं लगता,

क्या आपको कभी हकीकत में,

या कभी स्वप्न में यह सब नहीं दिखता?


वह हँसी और पुनः मेरी ओर देखा,

बोली बेटा,

क्या तुम भगवान का  बही-खाता समझते हो,

कोई भी आत्मा किसी को बेवज़ह सता नहीं सकता है,

कोई न कोई कर्मफ़ल का जब तक टकराव न हो,

तो कोई आत्मा किसी को नज़र भी नहीं आ सकता है,

शिव आज्ञा लेकर ही,

लेनदेन हेतु ही आत्मा किसी जीवित से सम्पर्क करता है,

ऋणानुबंध अनुसार मदद या नुकसान पहुंचा सकता है...


श्मशान में आने वाली,

इन हज़ारों-लाखों आत्माओं से,

जब मेरा इनसे कोई लेन-देन शेष नहीं है,

जब इनके कर्मफ़ल और मेरे कर्मफ़ल का कोई अनुबंध नहीं है,

तब यह भला मुझे क्यों दिखेंगी?

यह भला मुझे क्यों सताएंगी?

अतः इनसे मुझे कोई भय नहीं है,

तुम्हें भी इनसे भय करने की जरूरत नहीं है।


मैंने अंत्येष्टि का सामान लिया,

गहन सोच सोचते हुए,

जब श्मशान से वापस आ रहा था,

दोनों तरफ़ कई ढेर सारी लाशें जल रही थी,

उनकी लपटें व तपन महसूस कर रहा था,

उन सबके स्वजनों के भीतर,

जगता वैराग्य भाव देख रहा था।


फ़िर पुनः सन्त कबीर की बात याद आ गयी,

चेहरे पर व्यंग्य मिश्रित मुस्कान छा गयी,

इनकी तरह मुझमें भी,

अभी इस वक्त वैराग्य जगा हुआ है,

आत्मा अमर और शरीर नश्वर का,

अश्रुपूरित अहसास जगा हुआ है,

मग़र अफ़सोस यह वैराग्य क्षणिक सा है,

क्योंकि यह इस स्थान का प्रभाव है,

परफ्यूम की तरह यह वैराग्य भी उड़ जाएगा,

यह लोग और मैं पुनः संसार में लौट कर,

बीस से तीस दिनों में सब भूल जाएंगे,

पुनः आत्मा का अहसास मिट जाएगा,

मात्र देहाभिमान और देह से जुड़े कर्म ही,

बस याद रह जायेगा।


मैं पुनः जुट जाऊँगा,

समाज में धौस ज़माने और वर्चस्व लहराने में,

ऐसे धन एकत्र करूंगा मानो हमेशा अमर रहूँगा,

या यह सब साथ ले जाऊँगा,

सब भूलकर पुनः मूवी का टिकट लूंगा,

परिवार सहित पॉपकॉर्न के साथ फ़िल्म देखूँगा,

यह वैराग्य पुनः तब ही जगेगा,

जब या तो मैं स्वयं मर रहा होऊंगा,

या पुनः किसी की अंतिम यात्रा देखूँगा।


घोर आश्चर्य है न,

मृत पूर्वजों की टँगी तस्वीरें भी,

हममें वैराग्य नहीं जगाती,

नित्य मरते हुए लोग देखते व सुनते हैं,

फ़िर भी कुछ नहीं चेताती,

भगवान बुद्ध ने तो सिर्फ,

एक रोगी वृद्ध और एक लाश देखी,

बुद्धत्व पाने में जुट गए,

हम तो कैंसर में मरते रोगियों से भरा,

कोई अस्पताल घूम आएं,

या हज़ारो जलती हो जहां लाशें,

वह श्मशान घूम आयें,

हम बुद्धुओं को कोई फ़र्क़ न पड़ेगा,

हममें ज्ञान व वैराग्य का भाव कभी स्थिर न रहेगा।


क्योंकि हम बुद्धू से बुद्ध बनना ही नहीं चाहते,

हम मदहोशी में जीने वाले जगना ही नहीं चाहते,

जीवन को समझना ही नहीं चाहते,

ज्ञानामृत पीना ही नहीं चाहते,

अपने कर्मो को सुधारना ही नहीं चाहते,

लोभ मोह तृष्णा से पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते।


हम बुद्धू हैं बुद्ध क्यों बनना नहीं चाहते,

पैसे, मान, सम्मान की हवस में ही क्यों जीना चाहते हैं,

रिश्तों को स्वार्थ में क्यों निचोड़ना चाहते हैं,

हम बुद्धू की तरह ही क्यों जीना चाहते हैं,

हम बुद्धु तरह ही क्यों मरना चाहते हैं?


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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