विचित्र व्यवस्था है कन्या दान
क्षमा करना हम इस व्यवस्था का नहीं करते सम्मान।
वर-बधू वरण होना चाहिए, यदि कन्या ससुराल वालों को दान हुई तो वर भी अपने ससुराल को दान होना चाहिए।
समाज में जिस तरह लड़को को शिक्षित व कमाने योग्य बनाया जाता है, वैसे ही कन्या को शिक्षित व कमाने योग्य बनाना चाहिए।
जिस कन्या के जीवन में लक्ष्य नहीं, जिसके अंदर शिक्षा, सांसारिकता व आध्यात्मिकता का ज्ञान नहीं। उसका दूसरे मात्र वस्तु की तरह उपभोग करते हैं। उसे सम्मान नहीं देते।
एक अयोग्य होगा तो वह वस्तु की तरह दान ही होगा, व अयोग्यता में दहेज़ के जंजाल में भी फंसेगा।
जो माता-पिता पुत्री को संस्कार व शिक्षा साथ नहीं देते, उसमें वीरता साहस का संचार नहीं करते। वह पुत्री के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं।
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