Friday 22 April 2022

प्रश्न - क्या हमें सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सऐप व शोशल मीडिया में गुरु के संदेशों को सरल शब्दों में प्रेषित कर अपने कर्तव्यों को पूर्ण समझ लेना चाहिए? कोई उन संदेशों से कोई बदल रहा है या नहीं यह उसकी इच्छा पर छोड़ देना चाहिए?

 प्रश्न - क्या हमें सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सऐप व शोशल मीडिया में गुरु के संदेशों को सरल शब्दों में प्रेषित कर अपने कर्तव्यों को पूर्ण समझ लेना चाहिए? कोई उन संदेशों से कोई बदल रहा है या नहीं यह उसकी इच्छा पर छोड़ देना चाहिए?


उत्तर - बेटे, संदेश ऋषियों का देने वाले की योग्यता व पात्रता पर निर्भर करता है, यदि उस पर जनता का विश्वास व जनता का उसके प्रति हृदय में सम्मान न हो तो उसके द्वारा दिया ज्ञान कोई ग्रहण नहीं करता।


शिष्य गुरु का विजिटिंग कार्ड होता है, यदि शिष्य योग्य नहीं व यदि उसकी कथनी-करनी भिन्न हुई तो उसका गुरु कितना ही महान क्यों न हो व उस गुरु के संदेश लोगो के हृदय में नहीं उतार पायेगा।


तुम्हारी योग्यता तय करेगी कि तुम्हारे द्वारा भेजी पोस्ट को कोई कितनी गम्भीरता से पढ़ेगा? यदि लिखते समय तुम्हारे तप बल व श्रेष्ठ कर्मो का अंश उस पोस्ट में नहीं लगा तो वह पोस्ट कोई असर नहीं दिखाएगी।


शिष्य द्वारा मात्र गुरु के साहित्यिक शब्दो का सरल शब्दों में ट्रांसलेशन करने से कोई  असर नहीं होता, अपितु असर तब होगा  जब गुरु के महान तेज का कुछ अंश शिष्य में दिखेगा उसकी तप की व व्यक्तित्व की रौशनी में परिवर्तन होगा।


 बेटे, थोड़ी साधना व ध्यान बढ़ाओ, थोड़ी जनसेवा करो। तुम्हारी पोस्ट में गहराई व सम्प्रेषण तब तक नहीं होगा जब तक वह तुम्हारे आचरण में न होगा। तुम जिस गुरु के शिष्य हो उसकी चेतना से जुडो तब बात बनेगी।


यदि भाषण व पोस्ट से परिवर्तन होना होता तो नेता कबके युगनिर्माण कर चुके होते। 


स्वयं पर बहुत काम करने की आवश्यकता है, अन्यथा दिल से दिल तक बात नहीं पहुंचेगी। बुझा दिया दुसरे दिए को रौशन न कर सकेगा। 


क्षमा करना यदि मेरे बात बुरी लगी हो।


 तुम्हारी प्रत्येक पोस्ट की  टैग लाइन है - सच्चाई को स्वीकार करना शुरू कर दो सारे डर स्वतः खत्म हो जाएंगे


बेटे, सूर्य ने कभी अंधकार नहीं देखा। साहस ने कभी भय नहीं देखा। सत्य ने कभी असत्य नहीं देखा। दो तलवार एक म्यान में नहीं रहती। यदि सत्य है भय नहीं, यदि भय है तो सत्य नहीं।


सत्य व असत्य के नाम पर लड़ने वाले लोगों का भेद ऐसा है मानो दो चींटी सफेद दानों को बिना चखे दृष्टि के आधार पर चीनी साबित करने की कोशिश करें।


जो चखेगा वही जान सकेगा, कौन मीठा और कौन नमकीन है। इसी तरह अध्यात्म में अनुभव को ज्यादा महत्त्व दिया गया है, शब्दो को कम महत्त्व दिया गया है। शब्द तो मात्र अनुभव की ओर बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करने का माध्यम है।


मात्र गुरु के योग्य व महान होने से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा व तुम्हारे द्वारा पोस्ट से जन जन को लाभ न होगा। लाभ तब होगा जब महान गुरु चेतना तुममें झलकेगी, लोगो के हृदय में तुम्हारे लिए सम्मान होगा, तब असर होगा बात बनेगी।


💐तुम्हारी बहन

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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