प्रश्न - *मान अपमान से परे आनन्दमय जीवन कैसे जियें?*
उत्तर - जौहरी व धोबी अपनी योग्यता अनुसार रूबी रत्न की कीमत लगाएंगे व उस पर प्रतिक्रिया देंगे।
सुख व दुःख दोनो एक दूसरे से जुड़े हैं,
मान व अपमान दोनो एक दूसरे से जुड़े हैं,
स्वयं के लिए मान, अपमान, सुख व दुःख सबकी सृष्टि मनुष्य स्वयं निज मन वचन कर्म व व्यवहार से करता है। अपनी सोच से करता है। उसी तरह किसी दूसरे पर अपनी प्रतिक्रिया भी अपनी योग्यता अनुसार ही देगा।
कर्मो का कर्मफ़ल मात्र लोगों से प्रतिक्रिया दिलवाता है, कोई इसे मान अपमान से जोड़ता है तो कोई इसे मात्र प्रतिक्रिया समझता है। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारना संत ही कर सकते हैं। इंसान तो अपने दृष्टिकोण के चश्मे से व निज योग्यता के अनुसार प्रतिक्रिया आंकता है।
उदाहरण - एक संसारी साधारण व्यक्ति ने शौक से ड्रेस किसी रँग की खरीदी व पहनी। उसे देखकर..
एक साधारण व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी - वाह सुंदर है
दूसरे साधारण व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी- वाहियात है बकवास है
तीसरा जो कपड़े का कार्य करता है व योग्यता रखता है, वह कपड़े की गुणवत्ता व फैशन अनुसार सटीक प्रतिक्रिया देगा
ड्रेस पहनने वाला व्यक्ति पहले की प्रतिक्रिया सुनकर सम्मानित और दूसरे की प्रतिक्रिया सुनकर अपमानित होता है। बस समस्या यहीं है।
उसे केवल तीसरा जो कि कपड़े का एक्सपर्ट है उसकी प्रतिक्रिया पर भी निज विवेक से निर्णय लेना चाहिए, उसे भी मान अपमान से नहीं जोड़ना चाहिए।
वह संसारी साधारण मनुष्य ड्रेस के मोह में स्वयं व ड्रेस को एक समझ बैठा है, कपड़े के मान-अपमान को निज की सत्ता व व्यक्तित्व के मान-अपमान से जोड़ बैठा है। इसलिए क्रमशः वह सुखी या दुःखी होगा।
यदि वह तनिक भी आध्यात्मिक हो और कपड़े व स्वयं को अलग अस्तित्व समझे, तो न उसे सम्मान अनुभव होगा और न ही अपमान अनुभव होगा। सुख दुःख की अनुभूति भी न होगी।
यही व्यक्ति के शरीर रूपी वस्त्र, आर्थिक स्टेट्स, कार्य, वस्तुएं, घर, गाड़ी इत्यादि से भी सम्बंधित है। क्योंकि संसारी मनुष्य इन सबसे मोह से जुड़ा है। अतः इन पर घटित प्रतिक्रिया से मान व अपमान महसूस करता है।
आध्यात्मिक मनुष्य जानता है, न मैं शरीर हूँ न मैं मन हूँ। मैं एक ईश्वर का अंश अविनाशी आत्मा हूँ। मैं शरीर नहीं हूँ। अतः कोई इसे सुंदर कहे या असुंदर, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। मेरे घर, मकान, आर्थिक स्टेटस, कार्य इत्यादि का मैं उपयोगकर्ता हूँ, यह मैं नहीं हूँ। इनके आधार पर कोई प्रतिक्रिया दे, निंदा या स्तुति करे तो मुझे अप्रभावित ही रहना चाहिए। उसे सुख दुःख से न जोड़कर, मात्र प्रतिक्रिया समझ कर उसे विवेक के अनुसार हैंडल करना चाहिए। मान अपमान से परे रहकर आनन्दमय जीवन जीना आसान हो जाएगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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