Sunday 24 April 2022

माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला, भाग - 2, प्रश्नोत्तरी

 माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला, भाग - 2, प्रश्नोत्तरी

लेखिका श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(गृह प्रवेश यज्ञ के बाद सभी लोग अध्यात्म चर्चा कर रहे थे, रवि और दिव्या भावी माता पिता बनने और श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति के लिए यज्ञ पुरोहित श्वेता जी जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर, समाजसेवी और अखिल विश्व ग़ायत्री परिवार की कार्यकर्ता है उन से मार्गदर्शन ले रहे हैं। तभी रवि के मैनेजर व ऑफिस कर्मियों ने रवि को इशारा करके बुलाया और उससे कहा क्या वो अपने प्रश्न श्वेता जी से पूंछ सकते हैं।)

रवि - श्वेता दी, हमारे मैनेजर गुप्ता जी आपसे प्रश्न पूंछना चाहते हैं?

श्वेता - जी कहिए सर, आपकी क्या जिज्ञासा है?

मैनेजर गुप्ता जी - मैं विदेशों में पढ़ा हूँ, और मुझे कोई शर्म यह कहने में नहीं कि मैं नास्तिक हूँ। गृह प्रवेश यज्ञ में मैं मात्र पार्टी के उद्देश्य से आया था, मग़र यज्ञ पूजा पाठ देखकर बस रवि के कारण मौन रहा। किंतु अब और मौन नहीं रह सकता। जो ईश्वर दिखता नहीं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं, जिसे वैज्ञानिक विधि से प्रमाणित नहीं किया जा सकता, उस पर हम कैसे भरोसा करें? उसकी हम पूजा क्यों करें? उसका ध्यान क्यों करें? उसके भरोसे श्रेष्ठ सन्तान पाने की इच्छा क्यों करें? आप इंजीनियर है तो प्रमाणिकता के साथ उत्तर दें।

(सभी लोग ऐसे प्रश्न सुनकर स्तब्ध रह गए, कुछ आस्तिक मन ही मन बोले पाश्चात्य के प्रभाव में पागल हो गया है, भगवान नहीं मानता नरक में जायेगा। कुछ नास्तिक व बुद्धिजीवी इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्साह से भर गए...श्वेता मुस्कुराई व सहज भाव से कहा)

श्वेता - सर, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मुझे कुछ चीजों की जरूरत है, कृपया कुछ समय दें। दिव्या आप तीन कांच की ग्लास में एक जैसी मात्रा में जल भर दो। एक ग्लास में सादा जल, दूसरे में थोड़ी चीनी व तीसरे ग्लास में नमक घोल कर लाये। इतना बेहतरीन घोलें की वह घुल जाए, कोई कण शेष न हो... साथ ही एक ग्लास दुध लेकर आओ...

(सभी आश्चर्यचकित थे, अब आगे क्या होगा जानने को इच्छुक थे। तभी दिव्या तीनो ग्लास जल लेकर आई व श्वेता के सामने रख दिया)

दिव्या- श्वेता दी, यह लीजिए तीन ग्लास जल इसमें, एक मीठा,वेक नमकीन व एक सादा जल है।

श्वेता - सर आपकी कम्पनी में कोई कार्य करता है तो वह सैलरी लेता है, आपकी कम्पनी भी उसी को सैलरी देती है जो कार्य करता है। अर्थात बिना लेन-देन कोई कार्य नहीं होता।

गुप्ता जी - हाँजी सही कहा..

श्वेता - हम आपके प्रश्नों का उत्तर देंगे यदि आप संतुष्ट हो तो आपको भी मुझे इस सेवा के बदले कुछ देना चाहिए...है न...

(गुप्ता जी सहित सब परेशान आखिर क्या मांगना चाहती हैं, या इस बहाने प्रश्न का उत्तर देने से श्वेता बचना चाहती हैं..)

गुप्ता जी - कहिए, आपको क्या चाहिए?

श्वेता - एक वचन चाहिए, यदि हमने आपकी जिज्ञासा का समाधान कर दिया तो आप शान्तिकुंज हरिद्वार रवि के साथ सपरिवार जाएंगे व गुरु दीक्षा लेंगे? कहिए यह वचन देंगे..

गुप्ता जी - ठीक है, यदि मुझे आपसे मेरे प्रश्न का समाधान मिलता है तो मैं वचन देता हूँ कि मैं शान्तिकुंज जाऊंगा गुरु दीक्षा लूंगा। साथ ही ईश्वर को मानूंगा और सनातन धर्म को मानूंगा। लेकिन यदि आप मेरे प्रश्न का समाधान न दे सकीं तो मैं फेसबुक पर आपके विरोध व आडंबर पर पोस्ट लिखूंगा।

श्वेता - स्वीकार है, आपको अनुमति मेरे खिलाफ लिखने की यदि हम आपकी जिज्ञासा शांत नहीं कर पाए।

दिव्या - श्वेता जी बात बढ़ रही है, मुझे भय लग रहा है..

श्वेता - दिव्या आप चिंतित न हो, सब ठीक होगा। लेन-देन संसार का नियम है।

आगे श्वेता ने गुप्ता ही से कहा आआप तो विज्ञान के छात्र है व विदेशों से पढ़कर आये हैं, इन ग्लास को देखिए व बताईए कौन सा मीठा, कौन सा सादा व कौन सा नमकीन है? तर्क से प्रमाणित कीजिये...

गुप्ता जी - चीनी व नमक घुल चुका है, नमक व चीनी दिखाई नहीं दे रहा। अतः मात्र तर्क के सहारे या देखकर मैं अंतर नहीं बता सकता। हाँ यदि आप चाहें तो मैं चखकर अंतर बता सकता हूँ..

श्वेता - अभी थोड़ी देर पहले आपने कहा जो दिखाई नहीं देता उसे आप नहीं मानते। फ़िर आप चीनी व नमक के दिखाई न देने पर उसे क्यों मान रहे हैं। कह दीजिये सभी जल सादा है...

गुप्ता जी - दुनियां में बहुत सी चीज है जो दिखाई नहीं देता मग़र उनका अस्तित्व होता है जैसे हवा... अनुभव में है दिखती नहीं.. ऐसे ही चीनी नमक दिख नहीं रहा मग़र चखकर अनुभव करके बताया जा सकता है...

श्वेता - गुप्ता जी आपने अपने पहले प्रश्न का उत्तर स्वयं दे दिया कि न दिखने वाली चीज का भी अस्तित्व होता है। ईश्वर दिखता नहीं फिर भी उसका अस्तित्व है। जिसने उसे अनुभव किया जा सकता...

ईश्वर भी कण कण में समाया है, उसे भी अनुभव किया जा सकता है...

(गुप्ता जी ने बेमन से सहमति से सर हिलाया)

श्वेता - गुप्ता जी, क्या आप बता सकते हैं यज्ञ में जो हमने घी डाला वह किससे बनता है?

गुप्ता जी - दूध से घी बनता है, इस डिब्बे में गाय का घी लिखा है तो यह गाय के दूध से बना है।

श्वेता - यह ग्लास में गाय का दूध है, कृपया घी कहाँ है निकाल कर दिखाये..

गुप्ता जी - देखिए श्वेता जी,  दूध से क्रीम इसे उबालकर व जमाकर , पुनः इसे मथकर मख्खन निकालकर, फिर उसे गर्म करके उससे घी मिलता है। ऐसे कैसे तुरंत इससे घी निकाले के दिखा दूँ..

श्वेता - गुप्ता जी क्या कभी आपने स्वयं गाय के दूध से इस तरह घी निकाला है? आपको यह विधि कैसे पता है?

गुप्ता जी - मैंने कहीं पढा था..

श्वेता - आपने अपने दूसरे प्रश्न का भी स्वयं उत्तर दे दिया, कि दूसरों द्वारा बताई बातों को पढ़कर आप जानते हैं कि दूध से घी निकलता है , लेकिन जिसने यह बताया या लिखा होगा उसने तो अनुभव किया होगा न...

गुप्ता जी - हाँजी आप सही कह रही हैं..

श्वेता - सर जी, इसी तरह हमने आपने भले ईश्वर का साक्षात्कार न किया हो, मग़र जिन ऋषियों ने ईश्वर के सम्बन्ध में वेद पुराणों व उपनिषदों में कहा, उन्होंने तो अनुभव किया होगा न... क्या आप इस बात को मानते हैं... आप दूध के ग्लास से तुरंत घी तर्क से नहीं निकाल सकते और आप चाहते हैं कि मैं इस यज्ञ पूजन से भगवान निकाल के दिखा दूँ... दूध से भी घी निकलने में इतनी लंबी चौड़ी प्रोसेस है तो भगवान के अनुभव के लिए भी तो कुछ प्रोसेस होगी.. हो सकता है थोड़ी कठिन भी हो...

गुप्ता जी - जी ठीक कह रही है..

श्वेता - विद्युत जल से बनता है, लेकिन क्या इस जल के ग्लास से आप विद्युत निकाल सकते हैं अभी...?

गुप्ता जी -  समझ गया और मान गया कि ईश्वर है.. लेकिन मेरे एक और प्रश्न का उत्तर दीजिये कि उन गाड़ियों का एक्सीडेंट क्यों होता है जिसमे भगवान की तस्वीर होती हैं? 

श्वेता - गुप्ता जी जिस घर मे आपकी तस्वीर हो क्या वहां चोरी नहीं होगी? जिस गाड़ी में आपकी तस्वीर हो तो क्या उसका एक्सीडेंट न होगा?

श्वेता - गुप्ता जी जिस तरह आपकी तस्वीर आप की तस्वीर होते हुए भी आपकी तरह कुछ कर नहीं सकती। मग़र यदि कोई आपकी तस्वीर का पूजा करे तो आपको अच्छा लगेगा और यदि कोई उस पर थूके तो आपको बुरा लगेगा। इसी तरह लोग भगवान को प्रशन्न करने के लिए उनकी तस्वीर की पूजा करते हैं।

गुप्ता जी - समझा नहीं... मुझे बताइए ईश्वर की पूजा करने से क्या गड्ढे में गिरी गाड़ी स्वतः निकल जायेगी..

श्वेता - गुप्ता जी आप अध्यात्म(ईश्वर के ध्यान, चिंतन, योग व पूजन) को ईंधन समझिए और पुरुषार्थ को गाड़ी। आपके पास ईंधन हो तो भी बिना गाड़ी के आप कहीं पहुंच नहीं सकते। गाड़ी हो और ईंधन न हो तो भी आप कहीं नहीं पहुंच सकते।

इस घर में विद्युत हो मगर बल्ब न हो तो रौशनी नहीं होगी, बल्ब हो और विद्युत न हो तो भी रौशनी नहीं होगी। विद्युत को बल्ब चाहिए। हममें से किसी ने वस्तुतः विद्युत को नहीं देखा केवल बल्ब को जलते देखा है। बल्ब बुझा है तो विद्युत नहीं है।

इसीतरह भगवान को विद्युत की तरह इंसान के मन का माध्यम चाहिए होता है। आनंदमय प्राणवान व ऊर्जावान व्यक्ति जलते हुए बल्ब की तरह है जिससे पता चलता है कि इसने स्वयं में ईश्वरीय चेतना को धारण किया है। 

मान लीजिए कि दो व्यक्तियों की गाड़ी गड्ढे में फंस गई। दोनो ने प्रयास किया विफल रहे। एक दारू पीने लगा और दूसरा व्यक्ति हनुमान चालीसा या ग़ायत्री मन्त्र जपने लगा। अब न दारू पीने से गड्ढे से गाड़ी स्वतः निकलेगी और न ही अध्यात्म की शरण मे जाने से स्वत: गाड़ी गड्ढे से निकलेगी। 

मनुष्य की चेतना के क्रमशः पांच स्तर होते हैं - देव मानव, महामानव, मानव, पशु मानव, पिशाच मानव

जब कोई नशा या गलत कार्य करता है तो उसकी चेतना मानव से नीचे तक पशु व पिशाच की ओर उतरती है। तब उसे समस्या का बॉटम व्यू से दिखती है व बहुत बड़ी लगती है। वह तनावग्रस्त हो जाता है।

जब कोई आध्यात्मिक अभ्यास करता है तो चेतना ऊपर की ओर उठती है क्रमशः महामानव व देव मानव की ओर उठती है, उसे समस्या को टॉप व्यू/बर्ड व्यू मिलता है। उसे समस्या पूरी समझ आती है व उसके समाधान का आइडिया उसके दिमाग मे आता है। ईश्वर के ध्यान से उसमें विश्वास बढ़ता है हिम्मत आती है। ईश्वरीय चेतना उसके भीतर उतरती है व उसे गड्ढे से गाड़ी निकालने में मार्गदर्शन करती है।

महाभारत हो या कलियुग सभी अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ता है। ईश्वर केवल मार्गदर्शन देता है, उसे मन के भीतर ध्यानस्थ हो सुनना पड़ता है।

(गुप्ता जी व अन्य सभी गहन चिंतन में पड़ गए, सहमति में सर हिलाए)

श्वेता - आप को देखकर लगता है आप सनातन धर्म ग्रंथो पर भी भरोसा नहीं करते। आपको एक और डेमो दिखा सकती हूँ यदि आप को अपना जन्म समय, जन्म दिनांक व जन्म स्थान पता हो। साथ ही अपना व्हाट्सएप नम्बर हमे शेयर करें..

गुप्ता जी - जी पता है.. आपको व्हाट्सएप कर दिया है कृपया चेक करें..

(श्वेता अपना लेपटॉप खोलती है, ज्योतिष सॉफ्टवेयर में डिटेल डालती है, उनकी कुंडली बनाती है। उसको एनालिसिस करके गुप्ता जी को कुछ बाते व्हाट्सएप पर लिखकर भेजती है। जिसे पढ़कर गुप्ता जी का मुंह ढलते सूर्य की तरह लाल हो जाता है, उनका मुंह मानो मिर्च खा लिया हो ऐसी आवाज़ में उफ कहते है।)

गुप्ता जी - आप मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती है। मेरी सन्तान नहीं है व पत्नी से अनबन है आपको कैसे पता। मेरी परेशानी के बारे में आप कैसे जानती है? हम आज ही मिले है, मेरी इतनी पर्सनल बात मेरे ऑफिस वालो को नहीं पता आप कैसे जानती हैं? शर्मा जी की आंखे नम हो गयी..

श्वेता - शांत हो जाइए गुप्ता जी, आपको हमने व्हाट्सएप इसलिए किया था कि आपके बारे में हम सार्वजनिक कुछ नहीं बोलना चाहते थे। हम तो मात्र आपको हमारे ऋषियों पराशर व जैमिनी के वेदों के अंग ज्योतिष शास्त्र के रिसर्च की कुछ झलक झांकी दिखाना चाहते थे। हमारा उद्देश्य आपको दुःखी करना नहीं था... जो आपके वैज्ञानिक मित्र नहीं बता सकते वह हमने इसी प्राचीन वैदिक विधि से कुछ मिनटों में बता दिया...

गुप्ता जी - मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ, एवं शान्तिकुंज जाकर गुरु दीक्षा लेने जाऊंगा। अपने फेसबुक पेज में आपकी  प्रशंशा लिखूंगा। मुझे आपसे अकेले में बात करनी है, जो यहां सार्वजनिक नही कर सकता। क्या मैं आपको फोन कर सकता हूँ।

श्वेता - गुप्ता जी, पहले थोड़ा शांत होइए आपके जीवन की समस्या समाधान के लिए मुझे कल सुबह फोन कीजियेगा। फेसबुक में अपने मेरे बारे में नहीं हमारे वर्तमान गुरु और आपके भावी गुरु के बारे में लिखियेगा। 

यदि आप सब अपना थोड़ा समय दें तो आध्यात्म की एक अनुभूति का भी डेमो कर लें..

(सबने उत्साहित हो सहमति में सर हिलाया)

श्वेता - आप सभी नेत्र बन्द कर लें कमर सीधी करें। दिव्या यहाँ आओ ध्यान मुद्रा में बैठ कर सबको दिखाओ। 

(दिव्या ध्यान हेतु बैठती है, श्वेता दिव्या को दिखाते हुए सबको ध्यान के नियम समझाती है। सबको सबसे पहले ग़ायत्री मन्त्र और उसके बाद मात्र ॐ को दीर्घ स्वर में एक साथ लगातार ग्यारह बार बोलने को कहती हैं। ॐ की समूहिक ध्वनि व गुंजन से एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। फिर सबको मौन होकर मात्र आती जाती श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए साक्षी भाव से देखने को कहती है। गहरी श्वांस लेने को कहती है। विचारों से लड़े नही बस होशपूर्वक एक चौकीदार की तरह देखें, श्वांस को देखे महसूस करें। अब हमारे साथ साथ यह प्रार्थना मन ही मन  दोहराएं

हे ईश्वर, हे ग़ायत्री माँ! हमें अपनी दिव्य अनुभूति करवाइए। हमें अपनी शरण मे ले। हम आपका आह्वान अपने मन, बुद्धि, चित्त व हृदय में करते हैं। हमारी बुद्धि को हमे बलपूर्वक अध्यात्म की ओर ले चलो। हमे संसारी अंधेरे से अध्यात्मिक उजाले की ओर ले चलो। हमे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। हमे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो। हमे अपनी शरण मे लो, जिस प्रकार अर्जुन के आप सारथी थे, हमारे जीवन के सारथी भी बन जाइये। हमारे बुद्धि रथ को थाम लीजिए। आर्त स्वर में दिल से प्रार्थना कीजिये। वह 5 मिनट बस मौन ईश्वर के संग रहिए। संसार भूल जाइए। जब हम ग़ायत्री मन्त्र बोलेंगे तब दोनो हाथ रगड़े व जैसे क्रीम लगाते है वैसे समस्त चेहरे पर लगाना है।

इस तरह सबने ध्यान पूर्ण किया व शांति पाठ हुआ, सभी बहुत अच्छा व हल्का महसूस कर रहे थे। गुप्ता जी व सब बहुत अच्छा महसूस कर रहे थे। गुप्ता जी ने रवि को यज्ञ में बुलाने के लिए धन्यवाद दिया। )

गुप्ता जी - श्वेता जी आपका धन्यवाद, आपने हमारे प्रश्नों का उत्तर दिया। मार्गदर्शन किया। मुझे हारना पसन्द नहीं फिर भी आज मैं हारकर भी बहुत खुश हूँ। शान्तिकुंज जाने को उत्साहित हूं।मुझे बताए मैं अपनी अध्यात्म की यात्रा कैसे शुरू करूँ..

श्वेता - यह पुस्तक -  *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* है इसे पढ़िए, यह मन्त्रलेखन है इसमें रोज मन्त्रलेखन बारी बारी से दोनो हाथ से करिए। यह मन्त्रलेखन पुस्तिका तकिए के नीचे रखकर 40 दिन तक सोईये। बाकी मार्गदर्शन हम आपको फोन पर करेंगे। जितनी जल्दी सम्भव हो गुरु दीक्षा ले लीजिए।

गुप्ता जी - धन्यवाद, मैं जरूर इसे पढूंगा व मन्त्रलेखन करूंगा। कल आपको सुबह दस बजे फोन करूंगा। बहुत प्रश्न है उनके उत्तर चाहिए।

श्वेता - चिंता मत कीजिए, सभी प्रश्न के गुरु कृपा से हम उत्तर देने हेतु निमित्त हम अवश्य बनेंगे। हमारे गुरु की सेवा सौभाग्य अर्थात उनके भावी शिष्य आपकी जिज्ञासा के समाधान हेतु प्रयास करेंगे।

ॐ शांति... क्रमशः

यह लेख हमारी आने वाली पुस्तक - "माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला" से है। 


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