मनुष्य शरीर जन्म से मिलता है, मग़र मनुष्य तभी कोई बनता जब उसमें मानवीय गुण विद्यमान हो, इंसानियत हो..
पशुवत खाना-पीना व प्रजनन बस यही कर रहे हो तो तुम एक उत्कृष्ट नर पशु हो..
आत्मकल्याण व लोककल्याण कर रहे हो तो ही तुम मनुष्य हो..
वह माता जी व पिताजी भी पशुवत ही है, जिनका दिया ज्ञान परिवार के पालन पोषण पर केवल ध्यान दो व समाज के प्रति कर्तव्यों की उपेक्षा करो, कमाओ खाओ एन्जॉय करो.. बस अपना उल्लू सीधा करो...निम्न चेतना युक्त माता पिता श्रेष्ठता का ज्ञान अपने बच्चों को देने में असमर्थ होते हैं..
बुद्धि अलग करती है पशु व मनुष्य के अंतर को..
आत्म उत्कृष्टता अलग करती है नरपशु व महामानव के अंतर को...
श्रेष्ठ कर्म करें, मनुष्य बने व उन्नति करें, स्वयं सुखी रहें व दुसरो को भी सुखी रहने दें..
दुसरो के सुख के निमित्त बने, मग़र जानबूझकर किसी के दुःख का निमित्त न बने..
याद रखें, जो बोयेंगे वही काटेंगे, श्रेष्ठ कर्म करेंगे तो श्रेष्ठता से जुड़ेंगे, खुशियां बांटेंगे तो ख़ुश रहेंगे...
~श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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