*अहंकार किस बात का?*
हे मन! अहंकार मत करना..
सदा हनुमानजी सा निरहंकारी रहना...
अहंकार के वृक्ष हमने बहुत देखे,
विनाश के फलों से उन्हें भरे देखे,
जब जब जहां जहां अहंकार दिखा,
तब तब वहां वहां विनाश का मंजर दिखा...
अहंकार किस बात का..
क्यों लोग करते हैं?
शरीर माता पिता से मिला,
शिक्षा गुरु जनों से मिला,
श्वांस वृक्षों वनस्पति से मिला,
अन्न जल धरती से मिला,
जब जीवन ही पूरा..
किसी न किसी के सहारे चला...
फ़िर अहंकार दिखाने का..
क्या कोई मतलब रहा..
मरने के बाद...
चिता में जलो..
या कब्र में सड़ो..
शरीर तो नष्ट होकर रहेगा,
हमारा मृत शरीर को छूकर..
हमारा अपना भी हाथ धोएगा...
फ़िर इस शरीर पर..
घमंड करने का क्या फ़ायदा...
धन के संग्रह में..
जीवन खपा दोगे..
तो भी मरने पर..
कुछ साथ ले जा न सकोगे..
कितना भी शानो शौकत कर लो..
सफ़ेद कफ़न से ही अंत में लिपटोगे..
ऐ मन! सम्हल जा..
जब अहंकारी रावण..
मृत्यु को बांध कर भी..
अपनी मृत्यु टाल न सका..
अपने अतुलित बल के बाद भी..
लंका का विनाश टाल न सका..
तब तू रावण के अहंकार मार्ग पर मत चल..
तू तो हनुमानजी की भक्ति की राह पर चल..
हे मन! निरहंकारी हनुमान जी से बनो,
निर्मल भाव से श्रीराम की भक्ति करो,
सुख चैन से आनन्द में जियो,
मरने के बाद प्रभु चेतना में मन को लीन करो...
🙏🏻लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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