"विचित्र सन्त जो समस्त दु:खों का अंत करता था- आगे की कथा (कथा नम्बर -3)"
3- एक व्यक्ति बुरी नशे की लत से परेशान था, घर में कलह होता था, व्यक्ति अक्सर बीमार रहता था। वह व्यक्ति व उसकी स्त्री सन्त के पास आये और व्यथा सुनाई। व्यक्ति बोला नशे की लत में फंस गया हूँ, नशे की गिरफ्त में जकड़ गया हूँ। सन्त ने कहा तुम्हारी व्यथा दूर मैं कर दूंगा पहले तुम मेरे शिष्य की व्यथा दूर कर दो।
सन्त का शिष्य एक चने भरे मटके से हाथ में चने की मुट्ठी बनाकर निकालने की कोशिश कर रहा था, न निकलने पर हाथ डालकर रो रहा था कि हाथ निकल नहीं रहा, चने और घड़े ने मेरा हाथ पकड़ लिया, यह छोड़ नहीं रहे। व्यक्ति गया और शिष्य से बोला भाई हाथ तुमने डाला है तो निकाल भी तुम ही सकते हो। बोला बंदर इस विधि से फंसते है इंसान नहीं, बन्दर को नहीं पता कि हाथ निकालने के लिए चने का लालच छोड़ मुट्ठी खोलनी पड़ेगी, तुम तो इंसान हो तुम्हे इतना नहीं पता कि चने और मटके ने तुम्हें नहीं पकड़ा है, वो तो निर्जीव हैं, पकड़ा तुमने है तो छोड़ोगे भी तुम ही। मुट्ठी खोलो, शिष्य ने मुट्ठी खोली और हाथ बाहर हो गया।
सन्त व शिष्य दोनो मुस्कुराये, सन्त ने उस व्यक्ति से कहा यदि चना निर्जीव है तो नशे की वस्तु भी तो निर्जीव है। यदि घड़े में हाथ जैसे डला ठीक वैसे ही विपरीत विधि से हाथ खोलकर निकाला जा सकता, तो क्या जैसे नशा करना शुरू किया था ठीक विपरीत विधि अपनाने से नशा छूट नहीं सकता क्या? क्या तुम बन्दर से गए गुजरे हो कि इतनी बात समझ नहीं आती कि नशे ने तुम्हे नहीं पकड़ा है, अपितु तुमने नशे को पकड़ा है। पकड़ने वाले तुम हो तो छोड़ने वाले भी तुम ही होगे।
व्यक्ति को समझ आ गया था, वह सोच में पड़ गया।
सन्त बोले, बुरी संगति में नशा करना शुरू किया था, मानसिक रूप से कमज़ोर बन गए, नशे के गुलाम बन गए।
अब अच्छे लोगो की संगति करो, उनकी संगति में भजन, गायत्री मंत्रजप, मन्त्रलेखन व ध्यान शुरू करो। मन को मजबूत करो।
अंधेरे को दूर करने के लिए प्रकाश की व्यवस्था करो, बुरी आदत को छोड़ने के लिए उसके विपरीत की अच्छी आदत शुरू करो। मदहोशी-बेहोशी की इच्छा नशे की ओर आकृष्ट करती है, होशपूर्वक चैतन्यता से रहने की इच्छा मंत्रजप व ध्यान की ओर आकृष्ट करती है।
जो भी कार्य करो होशपूर्वक करो, जो भी भक्ष्य-अभक्ष्य खाने या पीने से पहले तनिक ठहरो, उससे पूर्व 11 बार प्राणायाम करो, 11 बार गायत्री मंत्रजप करो, व ठहरकर 11 मिनट चिंतन करो कि क्या जो खा रहे हो या पीने जा रहे हो वह उचित है या नहीं। यदि अंतरात्मा स्वीकार करे तो उसे खा-पी लो।
शारीरिक मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ाओ, तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा।
क्रमशः....
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