Tuesday 10 May 2022

मृत्यु के शोक

 सन्त जो समस्त दुःखों का अंत करता था।


एक विचित्र सन्त था, लोगों की भीड़ आती समस्या लेकर तो वह कहता, प्रकृति लेन-देन पर टिकी है। पहले कुछ दो फिर बदले में मिलेगा।


1- एक पुत्र की मृत्यु के शोक में संतप्त स्त्री आयी, बोली मेरे पुत्र को जीवित कर दो बाबा। सन्त ने कहा माँ उस घर की मिट्टी लाकर मुझे दे दे जिस घर मे कभी मृत्यु न हुई हो। स्त्री भागी घर घर गयी, निराश होकर लौटी क्योंकि प्रत्येक घर में कभी न कभी मृत्यु हुई थी। वह मृत्यु का अटल सत्य उसे समझ आ गया और वह सन्त के चरणों मे गिरकर बोली तुमने मेरे समस्त शोक का अंत कर दिया,  मुझे वह सत्य समझा दिया जो शायद कठिन तप से भी न समझ पाती। मैं जिस पुत्र की मृत्यु पर रो रही हूँ उसे तो एक न एक दिन मरना ही था, मुझे भी एक न एक दिन मरना ही है। फ़िर शोक क्यों? सन्त ने कहा, माई न तू मरेगी न तेरा बच्चा मरा है। केवल शरीर मरता है, तू व तेरा पुत्र वस्तुतः आत्मा है, जो अमर है।


2- सन्त के पास एक व्यक्ति बहुत दुःखी था आया, बोला मेरे समस्त दुःख दूर कर दो। सन्त बोला जा उस घर से एक मुट्ठी अनाज लाकर दे दे, जिस घर में सब सुखी हों। यदि इस संसार मे तुझे सुखी व्यक्ति के हाथ का अनाज मिल गया तो मैं तेरे समस्त दुःख दूर कर दूंगा। वह व्यक्ति भी पूरे नगर में भटका कोई सुखी न मिला। सबके दुःख सुनते सुनते उसे अहसास हुआ कि दुनियाँ में लोग कितने दुःखी हैं। मैं ही इनसे ज्यादा सुखी हूँ। वह सन्त के पास शान्त चित्त मग़र खाली हाथ लौटा। सन्त ने कहा - अरे तू तो बंधन मुक्त हो गया, तेरी इच्छाएं ही दुःख का कारण थी। दुसरो को सुनते सुनते स्वयं की सुख की इच्छा ही छोड़ दी, अब तू तो सुख व दुःख दोनो से परे हो गया।


इस संसार में न कुछ पाने को है, न ही कुछ खोने को है। सुख व दुःख तो तेरी इच्छाओं का माया जाल है। इन्हें समझ व इनसे परे देख। इन इच्छाओं की जड़ को समझ। व्यक्ति समझ चुका था कि इस संसार में सुख व दुःख वस्तुतः अस्तित्वहीन हैं एक माया है। एक ही परिस्थिति किसी के लिए सुख तो किसी के लिए दुःख लाती है प्रतीत होती है, जबकि परिस्थिति तो बस परिस्थिति है जिसका उससे जैसी इच्छा आकांक्षा होगी तद्नुसार सुख या दुःख उसे प्रतीत होगा, अनुभूत होगा।


क्रमशः...

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