अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार पुस्तक अनुसार :- ईश्वरीय सत्ता के चार स्वरूप
ब्रह्म निराकार है और मनुष्य के पूजन पाठ से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उसे केवल ध्यान से आकृष्ट किया जा सकता है। वह प्रकाशित ऊर्जा है। सृजन व प्राण प्रवाह इनका मुख्य कार्य है।इनकी सत्ता व प्रभाव सब जीवों के लिए समान है।
ईश्वर (पुरुष - शिव) न्यायाधीश है कर्म के अनुसार फल देता है। गलत कर्म से गलत परिणाम और अच्छे कर्म का अच्छा परिणाम सुनिश्चित करता है। तदनुसार हमारी नियति लिखता है। इनकी सत्ता व प्रभाव सब जीवों के लिए समान है।
विष्णु (प्रकृति) - संतुलन व पोषण के देवता। सृष्टि का संतुलन व पोषण करना इनका कार्य है। इनकी सत्ता व प्रभाव सब जीवों के लिए समान है।
भगवान - भगवान का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। भगवान साकार है। भगवान भक्त की तप, भक्ति, श्रद्धा व विश्वास से जुड़ा व निर्मित होता है। यह बीज रूप में प्रत्येक व्यक्ति के अंदर होता है, जिसे वृक्ष मनुष्य को अपने तप, भक्ति, श्रद्धा व विश्वास से बनाना पड़ता है। इसलिए इसका अस्तित्व व प्रभाव सबके लिए समान नहीं। इसलिए मीरा व सूर का कृष्ण पत्थर से जीवंत हो उठा व उनके साथ नृत्य करता है, अन्य लोगों के मंदिर में रखी कृष्ण की मूर्ति पत्थर ही है क्योंकि उनकी तप, भक्ति, श्रद्धा व विश्वास जीवंत नहीं। किसी की ग़ायत्री फलीभूत हो रही है और किसी अन्य की नहीं। एक ही कारण है, जिसकी जितनी तप,भक्ति, श्रद्धा व विश्वास है वह उतने ही अंशो में अपने भगवान से लाभ ले सकेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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