कविता - सास बहू अब होश में आओ
सास बहू का झगड़ा,
रोज़ रोज़ का रगड़ा,
जानते हो कारण क्या है?
पहचानते हो इसकी जड़ क्या है?
जब पहचान मात्र,
अमुक की पत्नी,
अमुक की खानदान की बहू,
जब सास का भी हो,
और बहू का भी हो,
तो झगड़ा तय है,
अस्तित्व लफ़ड़ा तय है...
उद्देश्य विहीन सास हो,
उद्देश्य विहीन बहु हो,
किचन व घर के अतिरिक्त,
कोई और चिंतन नहीं हो,
तो छोटी छोटी बातों पर,
लफ़ड़ा तय है,
घर की सत्ता हथियाने की,
सुनिश्चित जंग तय है...
सास बहू यदि दोनों समझदार हो,
स्वयं की उनकी अलग स्वतंत्र पहचान हो,
दोनों के पास अपने,
कुछ विशेष जीवन लक्ष्य हों,
तो कोई झगड़ा नहीं होगा,
तब कोई लफ़ड़ा नहीं होगा..
साईकिल के लिए वही लड़ेंगे,
जिनके पास बाईक या कार नहीं होगी,
किचन व घर की सत्ता के लिए वही सास बहू लड़ेंगी,
जिनके पास अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं होगी,
पराधीनता और आत्महीनता ही,
असली झगड़े की जड़ है,
उम्र भर अपमानित हुए बहु बनकर,
कम से कम सास बनकर तो बहु पर शासन का सुख तो मिले,
कम से कम किसी एक से तो ऊपर होने की खुशी तो मिले...
जो बहु कभी अपमानित न होगी,
वह सास बनकर अपनी बहु को अपमानित न करेगी,
अक्सर वही सास अपनी बहू को अधिक कष्ट देती हैं,
जो उम्रभर वही दर्द व पीड़ा को सहकर,
बहु से सास का सफ़र तय करती हैं।
अनुरोध करती है 'श्वेता',
हे सास - बहू!
अब तो चेत जाओ, होश में आओ,
मदहोशी और अज्ञानता से बाहर आओ,
मित्रवत चैन से जियो,
और चैन से एक दूसरे को जीने दो,
अपने अनमोल जीवन को,
व्यर्थ लड़ाई झगड़े में यूं नष्ट मत होने दो..
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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