कविता - आनंदमय वृद्धावस्था का रहस्य
आनंदमय वृद्धावस्था का,
एक रहस्मय फार्मूला है,
पक्षियों की तरह चहचहाना,
पुष्पों की तरह मुस्कुराना है...
ध्यान करना नहीं है,
अपितु प्रकृति के कण कण पर ध्यान देना है,
आसपास की ध्वनियों को बस सुनना है,
प्रकृति को बस बरबस निहारना है।
स्वयं को प्रकृति का हिस्सा समझना है,
प्रकृति का अभिन्न अंग बनना है,
मन से 'मैं मेरा परिवार' का भाव त्याग कर,
'प्रभु सब तेरा और मैं भी तेरा' का भाव रखना है।
बच्चों की तरह निश्छल बनना है,
जो मिल जाय वह प्रभु प्रसाद समझ खाना है,
बस प्रकृति के साथ हंसना गुनगुनाना है,
पुष्प की तरह चेहरा खिला रखना है।
अनुरोध करती है 'श्वेता'
हम सबको भगवान कृष्ण के जीवन से सीखना है,
अच्छा समय हो तो भी मुस्कुराएं,
विपत्ति का समय हो तो भी मुस्कुराएं,
स्वस्थ हों तो भी मुस्कुराएं,
दर्द में हो तो भी मुस्कुराएं,
संसार के कीचड़ से थोड़ा ऊपर उठ जाएं,
कमल के पुष्प की तरह निर्मल हृदय बनाएं,
आनंदमय वृद्धावस्था का आनंद उठाएं,
ब्रह्मांड के कण कण से जुड़ जाएं।
🙏श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन
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