शरीर जिनका बूढ़ा,
और जिनकी इच्छाएं वासनाएं जवान हैं,
जो वर्तमान को अस्वीकारता है,
और अतीत के खंडहरों में जो भटकता है,
जिह्वा जिसकी लालच में गरिष्ठ का भक्षण करती है,
जिह्वा जिसकी कटु वचनों से किचकिच करती है,
जो बेवजह दूसरों के काम में टांग अड़ाता है,
बिन मांगे खीजकर सलाह देता रहता है,
जिनका पेट भारी व मन भारी रहता है,
कहती है 'श्वेता' वह जीवित प्रेत है,
मानती है 'श्वेता' वह जीवित नरक में है...
शरीर जिनका बूढ़ा,
और जिनकी इच्छाएं वासनाये मृत हैं,
जो वर्तमान के अस्तित्व को स्वीकारता है,
जो वर्तमान में ही संतोष से जीता है,
जिह्वा जिसकी वश में है व मन्त्र जपती है,
जिह्वा जिसकी मधुर वचनों को बोलती है,
जो बस अपने काम से काम रखता है,
बिन मांगे सलाह नहीं देता है,
मांगने पर अनुभवी सलाह देता है,
जिसका पेट हल्का व मन हल्का है,
कहती है 'श्वेता' वह जीवित योगी है,
मानती है 'श्वेता' वह जीवित मोक्ष में है...
हे मन! स्वर्ग व नरक यहीं इसी जीवन में है,
मनःस्थिति से यह निर्मित होता है,
देवत्व उभार लो तो स्वर्ग यहीं है,
असुरत्व उभार लो तो नरक यहीं है,
देवत्व उभारने में, हे मन! जुट जा,
स्वाध्याय सत्संग में, हे मन! लग जा,
हमें मुक्त योगी बना दे,
गुरु के दिखाए राह पर चला दे..
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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