समय नदी के जल की तरह है,
वह कभी अच्छा और कभी बुरा नहीं होता,
वह तो बस अनवरत बहता है,
कभी एक जगह टिकता नहीं है...
समय अच्छा हो या बुरा,
टिकेगा तो दोनो नहीं,
अच्छे पल में अहंकार मत करो,
बुरे पल में विषाद मत करो,
बस धैर्य रखो, पल तो दोनों ही ठहरेंगे नहीं...
स्थित प्रज्ञ बनो और जीवन साक्षी भाव से जियो,
निमित्त बनो और कर्ता भाव का त्याग कर दो,
जो ठीक कर सकते हो वह ठीक कर दो,
जो तुम्हारे बस का नहीं उसे सहजता से स्वीकार कर लो...
समय की नदीं में साधक कभी डूबता नहीं,
क्योंकि "मैं" डुबोता है और "तू ही तू" तिरा देता है,
कर्ता भाव रुलाता है, निमित्त भाव विषाद मुक्त करता है,
स्वयं को मालिक की कुर्सी से उतार दो,
उसमें ईश्वर को बिठा दो,
उसकी ईच्छा को स्वीकार लो,
आनन्द परमानन्द की नाव में बैठकर,
समय का भव सागर पार कर लो....
💐श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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