हम पैसे को अहमियत दें या न दें,
कलियुगी समाज में हमारी हैसियत पैसा ही तय करता है,
भौतिक सुख साधन भी पैसे से मिलता है,
ज़रूरत का इलाज़ और दवा भी पैसे से ही मिलता है।
कलियुग में यज्ञ और पूजन में भी पैसा लगता है,
परोकार का कार्य भी बिन पैसे नहीं होता है,
पैसे का तिरस्कार न करें,
अपितु सदबुद्धि अपनाकर पैसे का सदुपयोग करें।
संतों ने पैसे का तिरस्कार किया,
तो पैसा दुर्जनों के पास चला गया,
दुर्जनों ने उसी पैसे के बल पर,
संतों पर अत्याचार किया।
स्वावलंबी लोकसेवी साधक बनें,
पैसे खूब कमाएं और लोकहित खर्च करें,
सनातन संस्कृति के रक्षार्थ,
अध्यात्म और आधुनिक शिक्षा वाले,
युगानुकूल गुरुकुल खोलें।
भारत को विश्वगुरु बनाना है तो,
भारत को आर्थिक सुदृढ़ता भी देनी होगी,
भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाना होगा,
भारत में पुनः सनातन संस्कृति लौटाना होगा।
💐श्वेता चक्रवर्ती
गायत्री परिवार, गुड़गांव, हरियाणा, भारत
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