Wednesday, 8 November 2023

ख़ुद को तलाशने में व्यस्त हूँ।

 मदहोशी में जी रहा था,

क्योंकि दुसरो को देखने मे व्यस्त था,

होश में जब से आया हूँ,

तब से ख़ुद को तलाशने में व्यस्त हूँ।


मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? 

अन्न से बने इस शरीर में कैसे समाया हूँ?

घटते बढ़ते, जवान से बूढ़े होते इस नश्वर शरीर में,

कितने समय के लिये रहने आया हूँ?


यह नश्वर शरीर मैँ नहीं हूँ,

मगर यह शरीर मुझसे ही जीवित है,

यह मन मैं नहीं हूँ,

पर यह मन मेरी ही ऊर्जा से चलित है।


बड़ा आश्चर्य है कि मुझे मेरा ही परिचय पता नहीं है,

शरीर रूपी वस्त्र के नामकरण से जाना जाता हूँ,

जब तक मेरा नामकरण नहीं हुआ था,

तब भी मेरा अस्तित्व था और नामकरण के बाद भी है...


हाँ अब मैं खुद की तलाश में हूँ,

अब मैं ख़ुद को ही शरीर से परे देख रहा हूँ,

शरीर से भिन्न अपनी सत्ता महसूस कर रहा हूँ,

हाँ मैं मेरा परिचय जानने में धीरे धीरे कुछ सफ़ल हो रहा हूँ..


💐श्वेता चक्रवर्ती, 

गायत्री परिवार, गुरुग्राम, हरियाणा, भारत

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