हे मन, तू सुधर जाए तो,
मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,
हे नज़र, तू बदल जाये तो,
मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...
इच्छाओं वासनाओं के जंजीरों से,
हे मन, तूने हमें बांध रखा है,
आशा अपेक्षाओं के मकड़जाल में,
हे मन, तूने हमें उलझा रखा है...
हे मन, तू इच्छाओं वासनाओं से मुक्त हो जाए तो,
मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,
हे मन, तू देवता बन जाये तो,
मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...
यह शरीर गर्भ से जन्मा हैं,
अन्न जल से पोषित हुआ हैं,
पुनः शरीर एक मुट्ठी राख में बदल जाएगा,
जब चिता में मृत्यु पर्यंत जलाया जाएगा...
हे मन, यह शरीर मेरी सराय है,
इसके मोह में मत उलझना,
मैं अजर अमर अनन्त आत्मा हूँ,
तू सदा यह याद रखना....
हे मन, तू मेरा सेवक है,
हे शरीर, तू मेरा वाहन है,
इस संसार की यात्रा में,
तुम दोनों मेरा साथ देना...
हे मन, तू सुधर जाए तो,
मुझे मुक्ति इस जन्म में ही मिल जाये,
हे नज़र, तू बदल जाये तो,
मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग नज़र आये...
💐विचारक्रांति , गुरुग्राम गायत्री परिवार
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