Tuesday, 2 January 2024

मैं स्वार्थी बन गया हूँ, स्व के अर्थ को ढूंढने में लग गया हूँ,

 मैं स्वार्थी बन गया हूँ,

स्व के अर्थ को ढूंढने में लग गया हूँ,

मैं स्वाध्यायी हो गया हूँ,

स्व के अध्ययन में लग गया हूँ...


मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ,

यह सवाल हल कर रहा हूँ,

स्व के अध्ययन में इस कदर खो गया हूँ,

कि अब मैं पुनः विद्यार्थी हो गया हूँ...


मन की कंदराओं में बैठ गया हूँ,

बाहरी दुनियां से कट गया हूँ,

खुद में इस कदर खो गया हूँ,

कि मैं मेरी पहचान ही भूल गया हूँ...


अब कोई शिकवा गिला किससे करूं?

अब कुछ पाने की आस क्यों करूं?

जब *मैं* ही मर गया तो,

अब मान-सम्मान की आस किसके लिए करूँ?


पहले ब्रह्म समुद्र को अपने छुद्र पात्र में भरने निकला था,

दोबारा स्वयं को ब्रह्म समुद्र में विसर्जित होने को निकला था,

दोनों ही बार मैं ग़लती कर रहा था,

अरे क्योंकि मैं तो ब्रह्म समुद्र के भीतर ही रह रहा था...


मछली की तरह ही तो मैं भी हूँ,

मछली जल के अंदर और जल भी मछली के अंदर...

मैं ब्रह्म जल के अंदर और ब्रह्म जल भी मेरे अंदर,

मुझे ब्रह्म को ढूढ़ना नहीं है अरे मुझे तो बस उसे जानना है,


अब ब्रह्म को अनुभूति करने की साधना में लग गया हूँ,

हाँ अब मैं साधक बनने की साधना में लग गया हूँ,

अंतर्मन की यात्रा करने लग गया हूँ,

हाँ मैं शायद शरीर से संसार में हूँ मगर से बहुत दूर निकल गया हूँ...


💐विचारक्रांति, गुरुग्राम गायत्री परिवार

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