Tuesday, 20 February 2024

तू परमात्मा है, मैं शाश्वत आत्मा हूं, यही सत्य है, हां यही संबंध है अटूट.

 तू मेरा है, मैं तेरा हूं,

यही सत्य है, बाकी सब है झूठ,

तू परमात्मा है, मैं शाश्वत आत्मा हूं,

यही सत्य है, हां यही संबंध है अटूट...


मछली जल में, जल मछली में,

फिर मछली कैसे प्यासी हो सकती है?

परब्रह्म मुझमें, मैं परब्रह्म में,

फिर मैं उसकी अनुभूति से अभी भी वंचित क्यों हूं?


माया के परदे को गिराना है,

उसे स्वयं के भीतर ही पाना है,

जागना है स्व चेतना को जगाना है,

बूंद हूं अब उस सागर में ही मिल जाना है...


बाहर नश्वर है भ्रम का मायाजाल है,

भीतर शाश्वत है, सत चित आनंद का वास है,

नेत्र बंद कर ध्यान मुद्रा में बैठना,

सतत ध्यान अभ्यास से अब उसे स्वयं के भीतर ही पाना है...


**विचारक्रांति,  गायत्री परिवार गुरुग्राम

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