ज़रा विचार करो...
पब्लिक ओपिनियन,
बन गया है जीवन,
दूसरों के हाथ में,
हम सबने दे दिया है रिमोट...
स्व स्थिति का नहीं है भान,
पर स्थिति में भटक रहा है मन,
दूसरों के दिखाए मार्गपर,
अंधों की तरह चल रहा है यौवन...
नाम दूसरों ने दिया,
पहचान दूसरों ने बताई,
क्या करना है दुसरो ने सिखाया,
क्यों करना है दूसरों ने बताया...
बेतहाशा अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं,
दूसरों की नक़ल करने को,
अक्ल समझ रहे हैं,
दूसरे हमारे रहन सहन व्यहार को,
मनचाहा कंट्रोल कर रहे हैं..
टीवी, विज्ञापन एजेंसी,
और शोशल मीडिया के गुलाम हैं,
फिर भी हम सब मूर्ख,
स्वयं को आज़ाद समझ रहे हैं....
अरे मोह निंद्रा से जागो,
होश में आओ,
कौन हो तुम? क्या हो तुम?
इस खोज में जुट जाओ...
धन संपत्ति से,
सुविधा और आराम मिलता है,
आंनद नहीं मिल सकता...
स्कूली शिक्षा से,
धन कमाने का हुनर,
और रात के अंधकार को दूर करने का ज्ञान,
मिल सकता है,
मन के अंधकार को मिटाने का ज्ञान,
नहीं मिल सकता...
खुद को होश में लाओ,
ख़ुद को प्रकाशित करो,
आत्मज्ञान की लौ से,
मन के अंधकार को दूर करो...
अध्यात्म दृष्टि है,
विज्ञान शरीर है,
विज्ञान को अध्यात्म की दृष्टि से,
सही दिशा में चलाओ,
स्वयं के जीवन में पूर्णता लाओ...
नित्य दैनिक गायत्री उपासना-साधना-आराधना से,
स्वयं को आध्यात्मिक बनाओ,
अपने को जानो पहचानो,
स्वयं में देवत्व जगाओ...
💐श्वेता चक्रवर्ती
गायत्री परिवार
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