क्या तुम जीवंत हो? प्राणवान हो?
जीवित रहने और जीवंत रहने का,
क्या तुम फ़र्क समझते हो,
प्राण रहने का और प्राणवान बनने का,
क्या तुम हुनर जानते हो?
बिस्तर पर बीमार व्यक्ति भी जीवित है,
उदासी और चिंता में डूबा व्यक्ति भी जीवित है,
मुंह लटकाए ऑफिस जाता व्यक्ति भी जीवित है,
बेमन से गृहकार्य करती स्त्री भी जीवित है..
पर ये जीवंत और प्राणवान नहीं है,
क्योंकि इनमें कुछ कर गुजरने की चाह नहीं है,
इनके चेहरे पर सच्ची मुस्कान नहीं है...
इन्हें खुद के जीवन और अस्तित्व की पहचान नहीं है..
जिसके अंदर उत्साह उमंग है,
कुछ कर गुज़रने की चाह है,
जो किसी न किसी समस्या के समाधान में जुटा है,
जो चुनौतियों के सामने सीना तान के खड़ा है,
वही जीवंत है, वही प्राणवान है...
जीवन है तो समस्या रहेगी ही,
बरसात है तो कीचड़ होगा ही,
समस्याओं से जो जूझे,
वही तो वीर है, वही जीवंत है,
कीचड़ में जो कमल की तरह खिले,
वही तो योद्धा है, वही प्राणवान है...
विपत्तियों में भी मुस्कुराओ,
दर्द में भी वीररस के गीत गाओ,
टूटे दिल की मरम्मत करो,
उसे और बेहतर, मजबूत और महान बनाओ...
तुम महान हो, प्राणवान हो,
जीवन ऊर्जा से ओतप्रोत हो,
ख़ुद को पहचानो, खुद को जानो,
तुम वीर हो, महावीर हो, जीवंत प्राणवान हो..
💐श्वेता चक्रवर्ती
गायत्री परिवार , गुरुग्राम
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