प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?
ॐ पंच *वक्राय* विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
या
ॐ पंच *वक़्त्राय* विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
उत्तर -
वक्र + आय = वक्राय (अर्थात जो टेढ़ा है)
वक्ता + आय = वक्ताय (अर्थात जो बोलता है)
वक्र का अर्थ टेढ़ा होता है, अतः रुद्र गायत्री मन्त्र में वक्राय (vakray) न बोलें। अनर्थ बनता है पांच मुंह का टेढ़ा।
सही है वक़्त्राय (vaktray) अर्थात बोलने वाला, पञ्च वक़्त्राय अर्थात पांच मुंह से बोलने वाला।
तो सही मन्त्र हुआ
ॐ पंच वक़्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
गायत्री महामंत्र से प्रेरित देव-गायत्री मंत्र किसी देवता विशेष को उनके सगुण रूप में अपनी बुद्धि में धारण कर हमें उनके विशिष्ट गुणों के वर्धन की प्रेरणा मिलती रहने का आग्रह है।
*विद्यमहे* शब्द *विद्य* तथा *महे* के संयोग से बना है, विद्य का अर्थ जो लब्ध है, प्राप्य अथवा सुलभ है; महे का अर्थ पूजन के योग्य, इससे विद्यमहे का अर्थ जिनकी पूर्वकथित रूप मे विद्यमान होने से महिमा है जैसे एकद्रंष्ट्राय विद्यमहे का अर्थ जो एकदन्त के पूजनीय रूप में विद्यमान (गणेशजी) हैं।
*विद्यमहे* का अन्य रूप विद्महे भी है, जिसका अर्थ विद् = जानें, महे = पूजनीय; जोकि पूजनीय जाने जाते हैं। अतः इस मन्त्र का यह रूप भी उचित है।
*धीमहि* में धी का अर्थ बुद्धि अथवा निश्चय है तथा धीमहि का अर्थ बुद्वि अथवा अपने स्वविवेक या आत्मा में धारण करना है।
*प्रचोदयात्* का अर्थ है अनुबोधन करना, पुकारना, प्रेरित करना।
अब अनिष्टों के निवारण और अभीष्ट संवर्धन के लिए इस मंत्र का भावार्थ:
ॐ पंच वक़्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
ॐ! पाँच मुखों से बोलने वाले पंचमुखी शिव रूप में जो विद्यमान हैं ऐसे कालो के काल महाकाल (श्री शिव शंकर) को और उनके सदगुणों को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करते हैं जिससे कि वह (हमारी) बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
उम्मीद है आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा और किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है यह भी समझ आ गया होगा।
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