Sunday, 31 March 2024

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?


ॐ पंच *वक्राय* विद्महे, महाकालाय धीमहि,  तन्नो रुद्रः प्रचोदयात


या 


ॐ पंच *वक़्त्राय* विद्महे, महाकालाय धीमहि,  तन्नो रुद्रः प्रचोदयात


उत्तर -  


वक्र + आय =  वक्राय (अर्थात जो टेढ़ा है)

वक्ता + आय = वक्ताय (अर्थात जो बोलता है)


वक्र का अर्थ टेढ़ा होता है,  अतः रुद्र गायत्री  मन्त्र में वक्राय (vakray) न बोलें। अनर्थ बनता है पांच मुंह का टेढ़ा।


सही है वक़्त्राय (vaktray) अर्थात बोलने वाला, पञ्च वक़्त्राय अर्थात पांच मुंह से बोलने वाला। 


तो सही मन्त्र हुआ


ॐ पंच वक़्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि,  तन्नो रुद्रः प्रचोदयात


गायत्री महामंत्र से प्रेरित देव-गायत्री मंत्र किसी देवता विशेष को उनके सगुण रूप में अपनी बुद्धि में धारण कर हमें उनके विशिष्ट गुणों के वर्धन की प्रेरणा मिलती रहने का आग्रह है।


*विद्यमहे* शब्द *विद्य* तथा *महे* के संयोग से बना है, विद्य का अर्थ जो लब्ध है, प्राप्य अथवा सुलभ है; महे का अर्थ पूजन के योग्य, इससे विद्यमहे का अर्थ जिनकी पूर्वकथित रूप मे विद्यमान होने से महिमा है जैसे एकद्रंष्ट्राय विद्यमहे का अर्थ जो एकदन्त के पूजनीय रूप में विद्यमान (गणेशजी) हैं।


*विद्यमहे* का अन्य रूप विद्महे भी है, जिसका अर्थ विद् = जानें, महे = पूजनीय; जोकि पूजनीय जाने जाते हैं। अतः इस मन्त्र का यह रूप भी उचित है।


*धीमहि* में धी का अर्थ बुद्धि अथवा निश्चय है तथा धीमहि का अर्थ बुद्वि अथवा अपने स्वविवेक या आत्मा में धारण करना है।


*प्रचोदयात्* का अर्थ है अनुबोधन करना, पुकारना, प्रेरित करना।


अब अनिष्टों के निवारण और अभीष्ट संवर्धन के लिए इस मंत्र का भावार्थ:


ॐ पंच वक़्त्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि,  तन्नो रुद्रः प्रचोदयात


ॐ! पाँच मुखों से बोलने वाले पंचमुखी शिव रूप में जो विद्यमान हैं ऐसे कालो के काल महाकाल (श्री शिव शंकर) को और उनके सदगुणों को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करते हैं जिससे कि वह (हमारी) बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।


उम्मीद है आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा और किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है यह भी समझ आ गया होगा।


👏विचारक्रांति

गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा

प्रश्न - पूजा और ध्यान में मैं का भान और मन अस्थिर चलायमान भटकता क्यों रहता है? मन स्थिर हो ध्यान क्यों नहीं घट पाता? आनन्द ही आनन्द क्यों नहीं मिलता?

 प्रश्न - *पूजा और ध्यान में मैं का भान और मन अस्थिर चलायमान भटकता क्यों रहता है? मन स्थिर हो ध्यान क्यों नहीं घट पाता? आनन्द ही आनन्द क्यों नहीं मिलता?*


उत्तर-  ईच्छाएं जब तक कुछ पाने की जीवित रहेंगी, तब तक मन और मैं जीवित रहेंगे। मन को गति इच्छा (कामना/वासना) से मिलता है।


ध्यान की स्थिरता हेतु सांसारिक इच्छा तो छोड़ना पड़ेगा ही, साथ ही आध्यात्मिक इच्छा भी छोड़ना पड़ेगा। आनन्द पाने की इच्छा भी छोड़ना होगा, आत्मज्ञान पाने की इच्छा भी छोड़ना होगा।


बस समर्पण के साथ अपने इष्ट आराध्यय गुरु के प्रेम में निःस्वार्थ भक्ति में स्थिर चित्त हो बस यूं ही बैठ जाइए या दैनिक कार्य कीजिए, उनके ध्यान में खो जाइए।  प्रेम में उनका चिंतन ध्यान धारणा कीजिए।


जैसे एक मां अपने नवजात शिशु को प्रेम करती है, जैसे सच्चे प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के प्रेम में खोए रहते हैं। ऐसे ही आप बस ईश्वर के प्रेम में मन को खोने दीजिए। बदले में कुछ मत इच्छा कीजिए।


इच्छाएं छोड़ दो मन मिट जायेगा और आनन्द शेष बचेगा। बिना किसी इच्छा कामना के ध्यान एवं पूजन होगा तो ही मन भटकेगा ही नहीं, क्योंकि मन बिना इच्छा रूपी ईंधन के चलता नहीं। ठहर जाता है।ईश्वर से सच्चा प्रेम हुआ तो चित्त में ईश्वर का प्रेम चिपक जायेगा, ध्यान घट जाता है। आनन्द ही आनन्द से मन भर जाएगा।


🙏🏻 विचारक्रान्ति

गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा

Tuesday, 12 March 2024

प्रश्न - अभी हमारे यहाँ 108 कुंडीय यज्ञ 13 से 16 फरवरी तक संपन्न हुआ प्रयाज, याज का क्रम हो चुका अब अनुयाज का क्रम में क्या क्या कर सकते हैं मार्गदर्शन प्रदान कर दीजिए..

 प्रश्न - अभी हमारे यहाँ 108 कुंडीय यज्ञ 13 से 16 फरवरी तक संपन्न हुआ प्रयाज, याज का क्रम हो चुका 

अब अनुयाज का क्रम में क्या क्या कर सकते हैं मार्गदर्शन प्रदान कर दीजिए..


उत्तर - परम् पूज्य गुरुदेव के साहित्य में हमने पढ़ा था कि रावण मनुष्यों से प्रलोभन या भय से इंसान की इंसानियत छीन कर उन्हें राक्षस बना देता था। रावण बध के बाद इंसान से राक्षस बनाने की प्रक्रिया तो रुक गई। किंतु जो असुरता लोगों के चित्त में बस चुकी थी उसे हटाना जरूरी था। पुनः इंसान के भीतर प्रथम चरण में इंसानियत स्थापित करने की प्रक्रिया करना फिर उन्हें महामानव से देवमानव बनाने की प्रक्रिया ही राम राज्य स्थापना का कार्य भगवान राम जी को करना था। अतः वातावरण में व्याप्त असुरता को नष्ट करने हेतु उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया। मन के भीतर प्रविष्ट असुरता को नष्ट करने हेतु उन्होंने ऋषि गणों से जनसम्पर्क और जनजागृति करवाया। लोगों को दैनिक साधना से जोड़ा और सत्संग करवाये। राम की मर्यादा से ऋषियों ने जन जन को बताया और उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानने को कहा और वही मर्यादा जब जन जन स्वयं में स्थापित की और स्वयं सुधार और बदलाव से जुड़े तो राम राज्य स्थापित हो गया।


युगनिर्माण वस्तुतः राम राज्य स्थापना ही है, सतयुग वापसी ही है। लोगों के भीतर इंसानियत जगा कर भली सोच भली नीयत का मर्यादित बनाना ही है। इसी क्रम हेतु उन्हें सद्बुद्धि के मंत्र गायत्री जप तप से जोड़ना अनिवार्य है। अब तपस्वी ऋषियों का बड़ा समूह जगह जगह सम्पर्क नहीं कर सकता, इसलिए गुरुदेव ने क्रांतिकारी युगसाहित्य में सब लिख दिया है, हमें निमित्त बनकर उन्हें जन जन तक पहुंचाना है और उसे पढ़ने हेतु प्रेरित करना है।


108 कुंडीय यज्ञ अर्थात नए 108 परिवार का युगनिर्माण में जोड़ना और उन्हें गायत्री साधना से जोड़ना। आत्मकल्याण और लोककल्याण में लगाना। 108 परिवार में राम राज्य स्थापित करना।


आप निम्नलिखित कार्य संकल्प ले कर सकते हैं:-


 कम से कम 108 नए युवाओं जिनकी उम्र 13 वर्ष से 25 वर्ष के बीच की हो 

1- उन्हें एक माला नित्य गायत्री जप से जोड़ेंगे 

2- श्रीमद्भागवत गीता पूरी पढ़ने को प्रेरित करेंगे

3- पुस्तक "अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार", "आगे बढ़ने की तैयारी", "शक्ति संचय के पथ पर", "कलात्मक जीवन जियें" और "सफल जीवन की दिशा धारा" का स्वाध्याय पूरा करवाएंगे।

4- एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाये और उनसे पढ़ी पुस्तक की शार्ट नोट मुख्य बाते लिखने को बोलें।

5- महीने में एक बार कोई भी रचनात्मक कार्य वृक्षारोपण या बाल संस्कार का प्रारंभ करें

6- मंदिर उपेक्षित पड़े हैं, अन्य धर्म के लोग कम से कम सप्ताह में एक बार अपने धर्म स्थल जाते है और अपनी धर्म पुस्तक पढ़ते हैं। हमें भी 108 परिवार ऐसे जोड़ने हैं जो यदि प्रत्येक सप्ताह मंदिर न जा सकें तो महीने में एक बार तो सपरिवार अवश्य जाए और यज्ञ करें।

7- किसी भी नजदीकी मंदिर की सफाई और रखरखाव की योजना बनाएं, आसपास के लोगो के प्रेरित कर भजन कीर्तन स्वाध्याय सामूहिक जप इत्यादि सप्ताह में वहां एक बार करवाये।

8- गर्भवती महिलाओं तक युगसाहित्य पहुंचाए, उन्हें "आओ गढ़े संस्कार वान पीढ़ी" कार्यक्रम से जोड़े।

9- परम पूज्य गुरुदेव के बताए सत सूत्रीय कार्यक्रम और सप्त आंदोलन में से जो सम्भव हो उसमें लोगो को जोड़ें।

10 - बिना पद प्रतिष्ठा की चाह के नेतृत्व गुण विकसित करने की कला के वर्कशाप शुरू करें।

11- किसी सामाजिक समस्या पर नुक्कड़ नाटक युवा टीम तैयार करे व उसका जगह जगह प्रदर्शन करे। नशा मुक्ति के अभियान चलाए। योग की महिमा बताकर योग करने हेतु प्रेरित करें।

12- युवाओं को पढ़ना भी है अतः उनसे सप्ताह में दो से तीन घण्टे से अधिक समय ख़र्च न करवाएं, उनको प्रवचन देने की जगह उनसे सलाह लें उनका सहयोग लें।

13- नजदीकी स्कूल में सामूहिक जन्मदिन मनाने के कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु उन्हें ध्यान, गायत्री मंत्र जप, स्वाध्याय और मन्त्रलेखन से जोड़े।

14- वयोवृद्ध लोगों के समूह बनाएं और उन्हें साप्ताहिक स्वाध्याय और जप से जोड़े।

15- महिलाओं को प्रेरित करके उन्हें बलिवैश्वदेव यज्ञ, नैनो यज्ञ हेतु जोड़े। सबके घर बारी बारी से इकट्ठे हो सप्ताह में स्वाध्याय और दीपयज्ञ हेतू प्रेरित करें। जिसके घर जाएँ सब उस परिवार हेतु शुभकामनाएं दें और उसका दुःख दर्द सुने। लोग पागल होने से बच जाएंगे यदि वह  गायत्री परिजन रूपी मित्र से अपना दुःख दर्द कह पाएंगे, तो उनका मन हल्का होगा औऱ समाधान भी मिलेगा।


प्रत्येक व्यक्ति के पास आइडिया है, समस्या क्रियान्वयन की है। क्योंकि क्रियान्वयन हेतु सहयोग और संगठन चाहिए। सच्चे दिल से गुरु का नाम लेकर कार्य शुरू करो सफलता मिलेगी।


🙏🏻विचारक्रांति, 

गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा

प्रश्न - गायत्री चालीसा में श्वेताम्बर धारी शब्द है या सिताम्बर धारी है? इसका अर्थ क्या है।

 प्रश्न - गायत्री चालीसा में श्वेताम्बर धारी शब्द है या सिताम्बर धारी है? इसका अर्थ क्या है।


उत्तर - श्वेताम्बर ( श्वेत + अंबर) लिखा है। श्वेत अर्थात सफ़ेद, अंबर का अर्थ यहाँ कपड़ा है। धारी का अर्थ यहां धारण करना है।


चौपाई :-

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी।

अक्षर चौबीस परम पुनीता, इसमें बसे शास्त्र, श्रुति, गीता।

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा, सत्य सनातन सुधा अनूपा।

हंसारुढ़ *श्वेताम्बर* धारी, स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।


अर्थ - आप ही इस भूमि की जननी हैं और आपने यह कार्य ॐ के स्वरुप को रचने अर्थात परब्रह्म के साथ मिलकर किया है। आप ही कलियुग में पापों का दहन करने वाली हैं। आपके गायत्री मंत्र में कुल चौबीस अक्षर हैं और उन चौबीस अक्षरों में संपूर्ण शास्त्र, वेद व भगवत गीता बसती है। हमेशा से ही आपका रूप सद्गुणों को धारण किये हुए है और आप सनातन धर्म का सत्य हैं। आपने श्वेत रंग के वस्त्र पहने हुए हैं और आपकी सवारी हंस है। आपका तेज सोने के जैसा है और आप आकाश में भ्रमण करती हैं।


यदि आप श्वेताम्बर की जगह पिताम्बर बोलते हो तो वो भी सही होगा, पिताम्बर का अर्थ है पीला वस्त्र। रक्ताम्बर अर्थात लाल रंग का वस्त्र। माँ को किसी भी रंग के वस्त्र में ध्यान किया जा सकता है।


🙏🏻 विचारक्रांति

गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा

प्रश्न - साधक को दिव्य अनुभूति कब मिलती है

 प्रश्न - साधक को दिव्य अनुभूति कब मिलती है?

उत्तर - दिव्य अनुभूति पाना सरल है, मगर दिव्य अनुभूति की शर्त सरल हृदय बनना कठिन है। सरलता स्वयं के मैं को हटाए बिना नहीं मिल सकती।


जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं...


एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती , या तो मैं रहेगा या वो रहेगा..


बीज को वृक्ष तभी मिलेगा जब वह स्वयं गलने मिटने को तैयार होगा, स्वयं का अस्तित्व मिटाएगा तभी स्वयं में वृक्ष बनकर स्वयं को ही वृक्ष पायेगा।


इसी तरह साधक को "मैं" रूपी अहं को गलाना मिटाना पड़ेगा, तब ही स्वयं के भीतर ही रूपांतरित होकर दिव्य अनुभूति पायेगा।


राजसूय यज्ञ में भगवान श्री कृष्ण प्रथम पूज्य थे किंतु उन्होंने कार्य चुना अतिथियों की चरण सेवा और उनकी पादुका रखने का... जब ईश्वर इतना विनम्र है तो वह वही विनम्रता अपने भक्तों से भी चाहता है... उच्च पद योग्यता पात्रता आधारित सम्मान संसार में लीजिए, लेक़िन अध्यात्म क्षेत्र में राजा और रंक समान हैं। ईश्वरीय कार्य में राजा को जूते चप्पल रखने में भी नहीं हिचकना चाहिए...


जैसे जैसे साधक परिपक्व होता है पके फल वाली डाली की तरह झुकता जाता है... मान अपमान से परे हो जाता है क्योंकि वह दास भक्ति स्वीकार लेता है... कर्ता भाव त्याग के निमित्त भाव में जीने लगता है। मैं के अस्तित्व के दिखावे छलावे को छोड़ देता है, निमित्त बन सरल हृदय से दास भक्ति करता है तब दिव्य अनुभूतियों के अनुभव उसे होते हैं। ऐसे साधक के दर्शन मात्र से उसके साथ कुछ क्षण नेत्र बंद कर बैठने मात्र से आपको ऊर्जा महसूस होने लगती है। ऐसे स्वयं सुधरे और सरल हृदय के साधक के बोलने पर लोग बदलने लगते हैं। बदलाव दिखता है लोगो को दिशा धारा मिलती हैं।


~ विचारक्रांति, गायत्री परिवार गुरुग्राम हरियाणा


अपनी जिज्ञासा और प्रश्न 9810893335 पर व्हाट्सएप करें, गुरुप्रेरणा से यथासंभव उत्तर देने का निमित्त बन प्रयास युगसाहित्य और सत्संग से मिले ज्ञान से करने की कोशिश करेंगे।

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...