प्रश्न - परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य मे एक तरफ *अनीति से लोहा लेना* लिखा है, और दूसरी जगह *सहनशीलता के गुणों व उनके लाभ पर* लिखा है। कृपया बताएं यदि किसी जगह हमारे सम्मान को कोई ठेस पहुंचाए तो अनीति से लोहा लें या सहनशील बनकर चुपचाप सह लें?
उत्तर - गाड़ी में रेस, ब्रेक व गियर बदलना सबकुछ होता है, ड्राइविंग स्कूल वाला सबकुछ सिखाएगा। इसीतरह जीवन की गाड़ी व जीवन की कला सिखाने वाले *परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी* ने भी हमें समस्त गुणों की उपयोगिता सिखाएंगे।
कब लोहा लेना है(रेस दबाना है) और कब शहनशीलता(ब्रेक दबाना है) यह निर्णय कब कहाँ किस परिस्थिति में है उसका आंकलन करके निर्णय लेना होता है। उसके लिए विवेक की आवश्यकता पड़ती है।
*विवेक का जागरण सतत ग़ायत्री मन्त्र जप, स्वाध्याय व ध्यान से सम्भव होता है।*
गाड़ी पार्क करनी है अर्थात घर के नित्य के छोटे मोटे झगड़ो को निपटाने में ब्रेक(सहनशीलता) का आश्रय लो। लेकिन यदि आप किसी सही कार्य को करने जा रहे हैं व परिवार बाधक बन रहा है तो रेस(अनीति से लोहा) लेना पड़ेगा।
*लोहा लेने का उदाहरण* - दहेज़ लेने को परिवार विवश करे तो उनसे लोहा लेकर दहेजमुक्त शादी करो। यदि बहु- बेटी को जॉब करना है आगे पढ़ना है, परिवार विरोध करे तो उनके विरुद्ध जाकर लोहा लो। समाजसेवा में परिवार बाधक बने तो उनसे लोहा लो। यदि कोई आपके अस्तित्व पर व आपके माता-पिता को अपमानित करे तो आक्रोश दिखाएं।
ऑफिस- कार्यक्षेत्र में - खेल में सभी जगह लोग आपको लोग आउट करने के लिये प्रयास करेंगे, तो आप भी खेल भावना व ऑफिस भावना का परिचय देते हुए लोहा लें। जीतने के लिए प्रयासरत रहें, मग़र किसी को हराने या नीचा दिखाने में समय व्यर्थ न करें। वह आपको आउट करने के लिए बॉल फेंकेंगे लेकिन आपको उसी गेंद में रन बनाने हैं। चारो तरफ लोग कैच करने के लिए तैयार है आपको उनके बीच से गेंद निकालनी है। गंदी ईमेल व ब्लेम गेम वह बॉल है जो आपको क्रोधित कर आपको आउट करने की मंशा से फेंकी गई है। लेकिन आपको आउट नहीं होना, अपितु उसका रिप्लाई इस ढंग से करना है कि सांप मरे मग़र लाठी न टूटे।
*सहनशीलता का उदाहरण* - सास व ननद ताने दें, क्योंकि इनसे व्यर्थ में उलझकर कुछ हासिल नहीं होने वाला सहनशीलता(ब्रेक) का सहारा लें। आपके भोजन पकाने पर कोई उसकी बुराई जानबूझकर करे तो सहनशीलता(ब्रेक) का सहारा लें। जिस युद्ध मे केवल हानि हो व कुछ निर्णय नहीं निकलने वाला उस युद्ध मे पड़ने से कोई फायदा नहीं।
ऑफिस- कार्यक्षेत्र में - कोई आपके कार्य मे मीन मेख निकाले व आपको नीचा दिखाने का प्रयास करे तो सहनशीलता का उस वक्त अवलम्बन लें। धैर्यपूर्वक विचार करें कि इसे कैसे हैंडल करें, राजनीति का जवाब राजनीति से कूटनीति से दें, मुँह से क्रोध कदापि न करें।
रास्ते का ज्ञान व ड्राइविंग की दक्षता हो कि कब ब्रेक व कब रेस देना है तो कोई भी ड्राइवर सफर का आनन्द ले सकता है। इसी तरह विवेक जागरण (ग़ायत्री मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से जीवन के रास्ते का ज्ञान हो और जीवन की ड्राइविंग की दक्षता हो कि कब ब्रेक-शहनशीलता अपनानी है और कब रेस-अनीति से लोहा लेना है। तो जीवन जीने का आनन्द लिया जा सकता है।
अध्यात्म कायर नहीं बनाता, अध्यात्म तो साहसी व बुद्धिकुशल कूटनीतिज्ञ बनाता है। किंतु अध्यात्म का अभ्यास नित्य आवश्यक है, जैसे ओलंपिक में दो मिनट में रेस जीतने के लिए लाखो किलोमीटर दौड़ने का घण्टों अभ्यास करना पड़ता है। अध्यात्म का त्वरित बुद्धि प्रयोग(presence of mind) को अप्पलाई करने के लिए नित्य का अभ्यास (ग़ायत्री मन्त्र जप-स्वाध्याय-ध्यान) अनिवार्य है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन