प्रश्न - *मुझे मेरे कॉलेज में आत्मबोध पर प्रेजेंटेशन देना है? आत्मबोध अध्यापक और सहपाठियों को कैसे समझाऊं? मार्गदर्शन करें..*
उत्तर - आत्मीय भाई, मंच पर खड़े हो एक बार गायत्री मंत्र बोलो और गुरुदेब का आह्वाहन अपने शरीर मे करो, माँ भगवती का आह्वाहन जिह्वा में करो फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कुछ इस तरह प्रस्तुत करो।
आदरणीय शिक्षकगण और प्रिय सहपाठियों, आत्मबोध का जो यह दर्शन मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। वो कुछ ऐसा है:-
(एक ग्लास में पिसी हुई चीनी डालकर कांच के ग्लास में मिक्स करके दिखाएं, दूसरी ग्लास में सादा पानी रखें)
इस ग्लास में चीनी घुली हुई है, और इसमें नहीं। लेकिन क्या आप में से कोई मुझे बता सकता है? चीनी कहाँ है? यदि मैं ग्लास अदल बदल कर दूं तो क्या आप देख के बता सकते हैं?
(सबका उत्तर नहीं आएगा, कोई बोलेगा चखना पड़ेगा)
जी हाँ, मित्रों जिस तरह घुली हुई चीनी दिख नहीं रही लेकिन विद्यमान है। इसी तरह हम सब में आत्मतत्व है लेकिन किसी भी मनुष्य की बनाई मशीन से देखा जाना सम्भव नहीं है। लेकिन अनुभव जन्य है।
आत्मबोध - दो शब्दों का युग्म है। आत्म + बोध , आत्मा अर्थात वह ऊर्जा जिससे हम जीवित है, देख सुन बोल सकते है और श्वांस ले रहे है। जिसके न रहने पर हम लाश बन जाएंगे। बोध अर्थात इस आत्म ऊर्जा का ज्ञान।
(अब एक ग्लास कांच की ग्लास में दूध दिखाते हुए पूँछिये)
यह दूध है लेकिन आप मे से कोई बता सकता है, कि इसमें घी कहाँ है?
(लोग अपनी बातें बोलेंगे, रुककर उन्हें सुनिये, फिर बोलिये)
मित्रों, जब तक लोगों को इस बात का बोध(ज्ञान) नहीं था कि इसमें घी विद्यमान है। तब भी इसमें घी तो था ही। लेकिन जब बोध हुआ तो दूध को प्रोसेस करके क्रीम निकाला, फिर उस क्रीम को प्रोसेस करके घी निकाला, उसे निश्चित मात्रा में गर्म करके घी प्राप्त किया।
मित्रों जो प्राणतत्व-आत्मऊर्जा आपके और हमारे भीतर है उसे अनुभवजन्य करने हेतु हमें हमारे शरीर और मन को विभिन्न तप साधनाओं और ध्यान द्वारा प्रोसेस करना होगा। तब मंथन द्वारा आत्म बोध प्राप्त होगा।
मित्रों, स्वप्न तो आप सभी देखते होंगे। स्वप्न में मान लो हमारा एक्सीडेंट हो गया, हम दर्द में रो रहे हैं और जब जगे तो दुःख गायब हुआ। ओह वो तो स्वप्न था, मैं स्वस्थ हूँ। लेकिन यदि आप स्वप्न में जाग सको तो अर्थात जान सको यह तो स्वप्न मात्र है...तब न तड़फोगे और स्वप्न को दृष्टा की भांति देख सकोगे, जैसे टीवी सिरियल चल रहा हो...सही कहा न..
मित्रों इसी तरह यह संसार आत्मा का स्वप्न है, एक मिथ्या है। स्वप्न जागने पर दृश्य और स्वप्न दोनों गायब हो जाता है। उदाहरण तौर पर अपने पूर्वज जिनकी मृत्यु हो चुकी है। क्या अब उनका कोई वजूद बचा नहीं, वो इस स्वप्न लोक से परे हो गए।
इसी तरह जब आत्मबोध होता है तो वास्तव में एक प्रकार का जागरण होता है, इस संसार रूपी स्वप्न का भान। मैं तो अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ, इस संसार रूपी स्वप्न में कुछ क्षण के लिए एक नश्वर शरीर को धारण किये अभिनय कर रहा हूँ। यह स्वप्न मिथ्या है। इसलिए आत्मबोध प्राप्त योगी इस सुख-दुःख से परे होकर आनन्द में जीते हैं। क्योंकि वो इस संसार रूपी स्वप्न और जागरण को अनुभव कर चुके होते हैं।
मित्रो, आत्मबोध के लिए योगी दो तरीके अपनाते है,
👉🏼पहले मार्ग में - *मैं क्या हूँ*? प्रश्न उठता है। और उसकी खोज में अंतर्जगत में प्रवेश करते है। ध्यानस्थ होते हैं। संसार मे लोग डिस्टर्ब बहुत करते हैं, अतः कोई डिस्टर्ब न करे इसलिए योगी ऐसी एकांत जगह ढूंढते है जहां कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे, जैसे हिमालय या जंगल। दही जमाने के लिए दूध में दही का जामन डालकर कई घण्टों के लिए स्थिर छोड़ देना पड़ता है। हिलाते रहोगे तो दही न जमेगी। इसी तरह प्रश्न *मैं क्या हूँ?* का जामन डालकर शरीर और मन को स्थिर कर देना पड़ता है। बस भीतर ज्ञान मार्ग स्वतः खुलता जाता है। ध्यान स्वतः घटित होता है, जिस तरह दही स्वतः जमती है।
👉🏼दूसरे तरीक़े में - *मैं क्या नहीं हूँ?* प्रश्न उठता है। फिर अलग अलग लॉजिक और अन्य तप साधनाओ से जो नहीं हूँ उसे हटाते चलते हैं। फिर जो बचता है। वह आत्मबोध होता है।
दोनों ही मार्ग में पता चल जाता है कि अरे मैं तो परमात्मा का अंश अजर अमर परमात्मा हूँ। ठीक उसी तरह जैसे समुद्र के जल को विभिन्न पात्र में रखा हुआ होना। अब जिन्हें बोध नहीं वो सब जल को अलग अलग समझेंगे। लेकिन जिन्हें बोध हो जाएगा, वो बोलेगा अरे सब मे एक ही जल है। इसी तरह योगी को अनुभूत होता है अरे सबके शरीर रूपी मटके में एक ही आत्मतत्व रूपी जल भरा है। मटका फूटते ही जल समुद्र में मिल जाना है, शरीर छूटते ही आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाना है। जब यह बोध हो जाता है तब कोई अपना पराया नहीं रह जाता। योगी विश्वामित्र अर्थात विश्व का मित्र बन जाता है। किसी को भी पीड़ा में देखता हो तो भावविह्वल हो उसकी सेवा में जुट जाता है। क्योंकि कण कण में परमात्मा की अनुभूति करता है। जिसमें भी प्राण-जीवन झलक रहा है वो अंश तो परमात्मा का ही है।
अब अभी जो मैंने चर्चा की वो कुछ इस तरह है कि मैंने किसी मिठाई को वर्णित किया हो। या ऐसे भी कह सकते है किसी प्रकाश के बारे में जानकारी दी। लेकिन जानकारी से न भूख मिटेगी न स्वाद मिलेगा। उसके लिए स्वयं उसे चखना पड़ेगा। प्रकाश की बातों से और मोमबत्ती प्रकाश के चित्र अंधेरा नहीं छटेगा। उसके लिए प्रकाश के समीप जाना होगा, मोमबत्ती को जलाना और उसे अनुभूत करना होगा।
*जो आत्मबोध को अनुभूत कर लेता है, जो अमृत चख लेता है वो जन जन में इस अमृत के प्रचार-प्रसार में लग जाता है। यही योगी और सच्चे सन्त करते है। लेकिन जिन मनुष्यों की प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता मक्खी की तरह निम्न होती है वो आत्मज्ञान के अमृत परागकण को छोड़कर सांसारिक गन्दगी-व्यसन ही चुनते हैं। लेकिन जो मधुमक्खी जैसी उच्च प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता के होते है, वो ऐसे प्रचार-प्रसार के ज्ञान से प्राप्त अमृत परागकण की खोज में निकलते हैं। और तप करके उसका पान करते है।*
आत्मबोध परक और साधना के कुछ साहित्य हम आपको उपलब्ध करवा सकते है, जो हमारे परमपूज्य गुरुदेब युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है।
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- ईश्वर कौन है?कैसा है? और कहां है?
4- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
5- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
6- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान
7- पंचकोशिय साधना
शान्तिकुंज हरिद्वार और तपोभूमि मथुरा में विभिन्न आत्मबोध परक साधनाये करवाई जाती है। जिसे निःशुल्क आप ज्वाइन कर सकते है।
आप सभी का धन्यवाद
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, मंच पर खड़े हो एक बार गायत्री मंत्र बोलो और गुरुदेब का आह्वाहन अपने शरीर मे करो, माँ भगवती का आह्वाहन जिह्वा में करो फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कुछ इस तरह प्रस्तुत करो।
आदरणीय शिक्षकगण और प्रिय सहपाठियों, आत्मबोध का जो यह दर्शन मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। वो कुछ ऐसा है:-
(एक ग्लास में पिसी हुई चीनी डालकर कांच के ग्लास में मिक्स करके दिखाएं, दूसरी ग्लास में सादा पानी रखें)
इस ग्लास में चीनी घुली हुई है, और इसमें नहीं। लेकिन क्या आप में से कोई मुझे बता सकता है? चीनी कहाँ है? यदि मैं ग्लास अदल बदल कर दूं तो क्या आप देख के बता सकते हैं?
(सबका उत्तर नहीं आएगा, कोई बोलेगा चखना पड़ेगा)
जी हाँ, मित्रों जिस तरह घुली हुई चीनी दिख नहीं रही लेकिन विद्यमान है। इसी तरह हम सब में आत्मतत्व है लेकिन किसी भी मनुष्य की बनाई मशीन से देखा जाना सम्भव नहीं है। लेकिन अनुभव जन्य है।
आत्मबोध - दो शब्दों का युग्म है। आत्म + बोध , आत्मा अर्थात वह ऊर्जा जिससे हम जीवित है, देख सुन बोल सकते है और श्वांस ले रहे है। जिसके न रहने पर हम लाश बन जाएंगे। बोध अर्थात इस आत्म ऊर्जा का ज्ञान।
(अब एक ग्लास कांच की ग्लास में दूध दिखाते हुए पूँछिये)
यह दूध है लेकिन आप मे से कोई बता सकता है, कि इसमें घी कहाँ है?
(लोग अपनी बातें बोलेंगे, रुककर उन्हें सुनिये, फिर बोलिये)
मित्रों, जब तक लोगों को इस बात का बोध(ज्ञान) नहीं था कि इसमें घी विद्यमान है। तब भी इसमें घी तो था ही। लेकिन जब बोध हुआ तो दूध को प्रोसेस करके क्रीम निकाला, फिर उस क्रीम को प्रोसेस करके घी निकाला, उसे निश्चित मात्रा में गर्म करके घी प्राप्त किया।
मित्रों जो प्राणतत्व-आत्मऊर्जा आपके और हमारे भीतर है उसे अनुभवजन्य करने हेतु हमें हमारे शरीर और मन को विभिन्न तप साधनाओं और ध्यान द्वारा प्रोसेस करना होगा। तब मंथन द्वारा आत्म बोध प्राप्त होगा।
मित्रों, स्वप्न तो आप सभी देखते होंगे। स्वप्न में मान लो हमारा एक्सीडेंट हो गया, हम दर्द में रो रहे हैं और जब जगे तो दुःख गायब हुआ। ओह वो तो स्वप्न था, मैं स्वस्थ हूँ। लेकिन यदि आप स्वप्न में जाग सको तो अर्थात जान सको यह तो स्वप्न मात्र है...तब न तड़फोगे और स्वप्न को दृष्टा की भांति देख सकोगे, जैसे टीवी सिरियल चल रहा हो...सही कहा न..
मित्रों इसी तरह यह संसार आत्मा का स्वप्न है, एक मिथ्या है। स्वप्न जागने पर दृश्य और स्वप्न दोनों गायब हो जाता है। उदाहरण तौर पर अपने पूर्वज जिनकी मृत्यु हो चुकी है। क्या अब उनका कोई वजूद बचा नहीं, वो इस स्वप्न लोक से परे हो गए।
इसी तरह जब आत्मबोध होता है तो वास्तव में एक प्रकार का जागरण होता है, इस संसार रूपी स्वप्न का भान। मैं तो अजर अमर अविनाशी आत्मा हूँ, इस संसार रूपी स्वप्न में कुछ क्षण के लिए एक नश्वर शरीर को धारण किये अभिनय कर रहा हूँ। यह स्वप्न मिथ्या है। इसलिए आत्मबोध प्राप्त योगी इस सुख-दुःख से परे होकर आनन्द में जीते हैं। क्योंकि वो इस संसार रूपी स्वप्न और जागरण को अनुभव कर चुके होते हैं।
मित्रो, आत्मबोध के लिए योगी दो तरीके अपनाते है,
👉🏼पहले मार्ग में - *मैं क्या हूँ*? प्रश्न उठता है। और उसकी खोज में अंतर्जगत में प्रवेश करते है। ध्यानस्थ होते हैं। संसार मे लोग डिस्टर्ब बहुत करते हैं, अतः कोई डिस्टर्ब न करे इसलिए योगी ऐसी एकांत जगह ढूंढते है जहां कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे, जैसे हिमालय या जंगल। दही जमाने के लिए दूध में दही का जामन डालकर कई घण्टों के लिए स्थिर छोड़ देना पड़ता है। हिलाते रहोगे तो दही न जमेगी। इसी तरह प्रश्न *मैं क्या हूँ?* का जामन डालकर शरीर और मन को स्थिर कर देना पड़ता है। बस भीतर ज्ञान मार्ग स्वतः खुलता जाता है। ध्यान स्वतः घटित होता है, जिस तरह दही स्वतः जमती है।
👉🏼दूसरे तरीक़े में - *मैं क्या नहीं हूँ?* प्रश्न उठता है। फिर अलग अलग लॉजिक और अन्य तप साधनाओ से जो नहीं हूँ उसे हटाते चलते हैं। फिर जो बचता है। वह आत्मबोध होता है।
दोनों ही मार्ग में पता चल जाता है कि अरे मैं तो परमात्मा का अंश अजर अमर परमात्मा हूँ। ठीक उसी तरह जैसे समुद्र के जल को विभिन्न पात्र में रखा हुआ होना। अब जिन्हें बोध नहीं वो सब जल को अलग अलग समझेंगे। लेकिन जिन्हें बोध हो जाएगा, वो बोलेगा अरे सब मे एक ही जल है। इसी तरह योगी को अनुभूत होता है अरे सबके शरीर रूपी मटके में एक ही आत्मतत्व रूपी जल भरा है। मटका फूटते ही जल समुद्र में मिल जाना है, शरीर छूटते ही आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाना है। जब यह बोध हो जाता है तब कोई अपना पराया नहीं रह जाता। योगी विश्वामित्र अर्थात विश्व का मित्र बन जाता है। किसी को भी पीड़ा में देखता हो तो भावविह्वल हो उसकी सेवा में जुट जाता है। क्योंकि कण कण में परमात्मा की अनुभूति करता है। जिसमें भी प्राण-जीवन झलक रहा है वो अंश तो परमात्मा का ही है।
अब अभी जो मैंने चर्चा की वो कुछ इस तरह है कि मैंने किसी मिठाई को वर्णित किया हो। या ऐसे भी कह सकते है किसी प्रकाश के बारे में जानकारी दी। लेकिन जानकारी से न भूख मिटेगी न स्वाद मिलेगा। उसके लिए स्वयं उसे चखना पड़ेगा। प्रकाश की बातों से और मोमबत्ती प्रकाश के चित्र अंधेरा नहीं छटेगा। उसके लिए प्रकाश के समीप जाना होगा, मोमबत्ती को जलाना और उसे अनुभूत करना होगा।
*जो आत्मबोध को अनुभूत कर लेता है, जो अमृत चख लेता है वो जन जन में इस अमृत के प्रचार-प्रसार में लग जाता है। यही योगी और सच्चे सन्त करते है। लेकिन जिन मनुष्यों की प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता मक्खी की तरह निम्न होती है वो आत्मज्ञान के अमृत परागकण को छोड़कर सांसारिक गन्दगी-व्यसन ही चुनते हैं। लेकिन जो मधुमक्खी जैसी उच्च प्रवृत्ति(attitude)-मानसिकता के होते है, वो ऐसे प्रचार-प्रसार के ज्ञान से प्राप्त अमृत परागकण की खोज में निकलते हैं। और तप करके उसका पान करते है।*
आत्मबोध परक और साधना के कुछ साहित्य हम आपको उपलब्ध करवा सकते है, जो हमारे परमपूज्य गुरुदेब युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है।
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ?
3- ईश्वर कौन है?कैसा है? और कहां है?
4- प्रसुप्ति से जागृति की ओर
5- ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा
6- अंतर्जगत का ज्ञान विज्ञान
7- पंचकोशिय साधना
शान्तिकुंज हरिद्वार और तपोभूमि मथुरा में विभिन्न आत्मबोध परक साधनाये करवाई जाती है। जिसे निःशुल्क आप ज्वाइन कर सकते है।
आप सभी का धन्यवाद
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन