Monday, 29 August 2022

प्रश्न - पहले राशि आया या भाव?

 प्रश्न - पहले राशि आया या भाव?


उत्तर- भगवान सदा शिव से पार्वती सहित सप्तर्षि उपदेश सुन रहे थे। तब शिव ने कहा जो ब्रह्मांड में है वही पिंड(अर्थात शरीर) में सूक्ष्म रूप से है।


प्रत्येक व्यक्ति का प्रभाव ब्रह्मांड पर और ब्रह्मांड का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।


सप्त ऋषियों ने इस पर शोध कर सूक्ष्म शरीर से यात्रा कर ब्रह्मांड को 360 डिग्री माना। अब इस ब्रह्मांड में ग्रहों के घूमने का पथ को भचक्र कहा।


इस पथ पर जो स्थिर था वह थे नक्षत्र, नक्षत्र वस्तुत: छोटे तारा मंडल के समूह थे, जो जैसा दिखा उसे वैसा नाम दिया गया। अश्व की तरह दिखने वाला अश्वनी। इस तरह 27 मुख्य और एक अतिरिक्त नक्षत्र उस भचक्र पथ पर ढूंढे गए। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण निश्चित किए गए।


इसके बाद इसी भचक्र पथ पर बड़े तारामंडल समूह को 12 भाग में बांटा गया। जिसके अंदर कुछ नक्षत्र भी थे, जिनका आकार जैसा दिखा वैसा नाम दिया गया। उदाहरण भेड़ जैसा दिखने वाला मेष।


अब मनुष्य में इनका प्रभाव जानने हेतु मनुष्य के जीवन चक्र के आयाम को 12 भाव में बांटा गया। यह स्थिर है।

किसी भी जातक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित होती है उस राशि को ही लग्न कहते हैं तथा इस लग्न राशि को कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित करके सभी ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं तो क्योंकि जन्म के समय उदित लग्न को कुंडली के प्रथम भाव में स्थापित किया जाता है तो इसलिए जन्म कुंडली के प्रथम भाव का नाम ही लग्न कहलाता है।

 उसी राशि से बच्चे की कुंडली का प्रथम भाव माना गया और उसी नक्षत्र से यात्रा प्रारंभ मानकर उसी नक्षत्र के स्वामी से विंशोंतरी दशा प्रारंभ मानी गई।


 उसी नक्षत्र से यात्रा प्रारंभ मानकर उसी नक्षत्र के स्वामी से विंशोंतरी दशा प्रारंभ मानी गई।


इस दशा का क्रम याद रखने का फार्मूला :


आ चं भौ, रा जी, श बु, के शु 


अर्थात सूर्य, चंद्रमा, राहु, वृहस्पति, शनि, बुध, केतु, शुक्र तय किया गया।


यथा ब्रह्मांडे तथा पिंडे, इस कथन के अनुसार बच्चे की कुंडली में कौन से ग्रह का प्रभाव (युति, दृष्टि, स्थिति) इत्यादि की गणना कर फलादेश किया गया।


इन ग्रहों की चाल की गणना कर पंचांग बनाया गया और कब किस समय सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण होगा यह पता लगाया गया।


उस समय अंतरिक्ष में घूमने के लिए नासा और इसरो के अंतरिक्ष यान उपयोग में लोग नहीं लेते थे, अपितु ऋषि गण ध्यान समाधि में जाकर जीवित रहते हुए स्थूल शरीर से आत्मा को बाहर निकाल सूक्ष्म शरीर से यात्रा करते थे। शोध करते थे। उनके शोध आज भी प्रमाणिक हैं।


बनारस में बैठा पंडित पंचांग में बिना इसरो और नासा के इंस्ट्रूमेंट के बता देता है सूर्य चंद्र ग्रहण कब होगा? 


इसलिए ही वेदों की दृष्टि ज्योतिष को कहते हैं।


🙏

ज्योतिषाचार्य श्वेता चक्रवर्ती

Wednesday, 24 August 2022

प्रश्न- प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए मृतक भोज करवाएं या नहीं?

 प्रश्न- प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए मृतक भोज करवाएं या नहीं?


उत्तर - मृतक का लगाव उससे बना रहता है जिससे वो जीवित रहते हुए लगाव रखता था।


आधी ग्लास भरी व आधी ग्लास खाली है.. मृतक की मृत्यु के बाद भोज को देखने का सबका अपना नजरिया है।


मृत्यु भोज को यज्ञ प्रसाद भोज में बदल दें।


हमारी सलाह यह है कि आप प्रियजन की मृत्यु के तेरहवे दिन पंचकुंडीय गायत्री यज्ञ करें, एक घंटे का महामृत्युंजय जप सामूहिक करें और गीता के सातवें अध्याय का पाठ सामूहिक करें। मृतक के नाम पर कुछ वृक्ष लगाएं और भोज मृतक से प्रेम करने वाले रिश्तेदारों, सुख दुःख में साथ खड़े ग्राम वासियों और तपशील पुण्यशील ब्राह्मणों को अवश्य देना चाहिए और भोजन पश्चात युग साहित्य (मैं क्या हूं?, मृत्यु के बाद क्या होता है? , हारिए न हिम्मत, मरनोतर जीवन, पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य, पितर हमारे अदृश्य सहायक) इत्यादि पुस्तक सभी को दें । 


जिससे आत्मा तृप्त हो..सब का भला हो...जब आप उन लोगों को इकट्ठा बुलाकर भोजन करवाएंगे जिससे मृतक आत्मा का लगाव था तो मृतक आत्मा इस बहाने सभी से अंतिम बार मिल लेगी। सबकी संवेदना, श्रद्धा और उसकी शांति के लिए किए जा रहे उपक्रमों को देख मृतक आत्मा शांति अनुभव करती है। उसे अच्छा लगता है।


मृत्यु भोज के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को मृतक भोज नहीं करवाना चाहिए। जो कभी सुख दुःख में साथ खड़े न हुए जिनको मृतक से प्रेम नहीं उन्हे बुलाने से मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती।


जो बिना समझे मृत्यु भोज को विज्ञान के अंधभक्त इसे गलत ठहराते हैं या जो बिना समझे रूढ़िवादी परंपरा के अंधभक्त इसे सही ठहराते है दोनो ही गलत है। 


कोई भी परंपरा जब बनती है तो उसके पीछे कारण होता है, परिवार और समाज को संवेदनशील होकर एकजुट करने की भावना, मृतक को समस्त परिवारजन के साथ मिलवाना (आप मृतक को नही देख सकते लेकिन वह सबको देख सकता है) और मृतक के परिवार को जरूरी सहायता देने की विधि व्यवस्था थी। मृतक की शांति हेतु यज्ञ और भोज खर्च का बोझ छोटे छोटे अंशदान से परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोगों को मिलकर उठाना चाहिए। 


🙏श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Tuesday, 23 August 2022

कविता - जो मिशन का भला सोचेंगे, तो फिर झगड़े में न पड़ेंगे लोग।।

 अपना भला कुछ लोग देखें, 

मिशन का भला न देखे कुछ लोग,

जो मिशन का भला सोचेंगे, 

तो फिर झगड़े में न पड़ेंगे लोग।।


संकीर्णता से उपर उठ सकेंगे,

विराटता को देख सकेंगे लोग,

विराट लक्ष्य के लिए एक जुट हो,

श्रद्धा समर्पण से जुट सकेंगे लोग।।


हाथी सा विराट शत सूत्रीय कार्यक्रम है,

अंत:दृष्टि से अंधे हो चुके है कुछ लोग,

अपने अपने स्पर्श व समझ को सही,

दूसरे के स्पर्श व समझ को नकार रहें हैं कुछ लोग।।


यदि तुम उस विराट को अंतर्दृष्टि से देख रहे हो,

तो दया करो उन अंतर्दृष्टि विहीन लोगों पर,

तेज़ रफ्तार और शुद्ध हृदय से,

काम करो मिशन के बड़े लक्ष्य पर।।


🙏श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

कविता - इतिहास गवाह है, जब तुम आगे बढ़ोगे, दुनियां बाधा देगी,

 इतिहास गवाह है,

जब तुम आगे बढ़ोगे,

दुनियां बाधा देगी,

लोग उपहास उड़ाएंगे,

तुम्हें रोकने को को,

हर पैंतरे अजमाएंगे...


जब तुम सफल बन जाओगे,

मुकाम हासिल कर लोगे,

तब यही लोग,

तालियां बजाएंगे,

माला पहनाएंगे,

और कहेंगे,

हम तो पहले से ही जानते थे,

यह कुछ न कुछ बड़ा करेगा,

हमारे देश का नाम रौशन करेगा...


यदि भविष्य में प्रसंशा सुननी है,

तो अभी उपहास झेलना पड़ेगा,

भविष्य में माला पहनना है,

तो अभी उनकी दी बाधाओं को पार करना पड़ेगा..

सफलता के मुकाम पर पहुंचना होगा,

अनवरत आगे बढ़ना होगा।


🙏श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Sunday, 21 August 2022

कविता -जिंदगी की भागम भाग में, ख़ुद को मत भूल जाना,

 जिंदगी की भागम भाग में,

ख़ुद को मत भूल जाना,

उम्र बाहर चाहे जितनी बढ़ती रहे,

भीतर का बचपन जिंदा रखना।


बाहर की ताप्त परिस्थिति में,

भीतर का एयरकंडीशनर ऑन रखना,

कितनी भी बाधाएं सामने आएं,

मन में साहस जिंदा रखना।


जब तक जीवन हैं तो संघर्ष हमेशा रहेगा,

जिंदा व्यक्ति की राह हर कोई रोकेगा,

मुर्दे को ही लोग राश्ता देंगे,

मुर्दे के लिए ही लोग अच्छा बोलेंगे।


कहती है 'श्वेता ' डर दूर हो तो भले डरना,

मगर पास आए तो केवल मुकाबला करना,

भागते रहोगे तो डर कुत्ते सा तुम्हारा पीछा करेगा,

अगर मुकाबला करोगे तो डर दुम दबाकर भागेगा।


अपने भीतर के बच्चे को जिंदा रखना,

स्वयं पर और परमात्मा पर विश्वास रखना,

दृष्टिकोण जीवन के प्रति ठीक रखना,

योद्धा की तरह संघर्षरत जीवन जीना।


युद्ध के बीच भी मंगल गीत गाना,

युद्ध के मैदान को खेल के मैदान की तरह ही समझना,

सद्गुरु से बुद्धि रथ का सारथी बनने की प्रार्थना करना,

सद्गुरु के साथ जीवन का प्रत्येक युद्ध बहादुरी से लड़ना।


🙏श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Wednesday, 17 August 2022

पुनर्जन्म केस

 काउंसलिंग केस पुनर्जन्म - जब दादा ससुर जब बेटे के रूप में जन्में, पिछले जन्म में पोते बहु ने उन्हें बहुत परेशान किया था। इसलिए उसे मां नही स्वीकारा,दूध नहीं पी रहे

https://youtu.be/XFOxd9S35fo 

Tuesday, 16 August 2022

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं


जिंदगी कोई मंजिल नहीं,

एक सफ़र है, 

मंजिल तो मौत है,

जहां जिंदगी के सफर का अंत है।


जिंदगी के सफ़र में,

तकलीफों का मजा लीजिए,

भगवान कृष्ण की तरह,

एक सच्ची मुस्कान होठों पर सजा लीजिए।


जन्म जेल में, और माता से दूर पले,

जन्म से ही रक्षसों से खूब लड़ें,

एक पल भी चैन से न जिए,

फिर भी हमेशा मुस्कुराते रहे।


जिस राधा से प्रेम किया,

उसके साथ जीवन भर रह न सकें,

राक्षसों से मुक्त कराई स्त्रियों की जान बचाने के लिए,

उन सबके मजबूरी में पति बने।


महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बने,

युद्ध के मैदान में ही अर्जुन को गीता ज्ञान दिए,

छल का जवाब छल से दिए,

फिर भी धैर्य नहीं खोए व मुस्कुराते रहे।


अनुरोध करती है 'श्वेता',

श्रीकृष्ण से जीवन जीने की कला सीखो,

विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखना सीखो,

तकलीफों के बीच भी मुस्कुराना सीखो।


कृष्ण भक्त हो तो गीता का स्वाध्याय करो,

जीवन प्रबंधन का गुण श्रीकृष्ण से सीखो,

सुख हो या दुःख मुस्कुराते रहो,

जीवन के सफ़र में तकलीफों व तनाव को हंसी में उड़ाते रहो।


🙏श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

कविता - आनंदमय वृद्धावस्था का रहस्य

 कविता - आनंदमय वृद्धावस्था का रहस्य


आनंदमय वृद्धावस्था का,

एक रहस्मय फार्मूला है,

पक्षियों की तरह चहचहाना,

पुष्पों की तरह मुस्कुराना है...


ध्यान करना नहीं है,

अपितु प्रकृति के कण कण पर ध्यान देना है,

आसपास की ध्वनियों को बस सुनना है,

प्रकृति को बस बरबस निहारना है।


स्वयं को प्रकृति का हिस्सा समझना है,

प्रकृति का अभिन्न अंग बनना है,

मन से 'मैं मेरा परिवार' का भाव त्याग कर,

'प्रभु सब तेरा और मैं भी तेरा' का भाव रखना है।


बच्चों की तरह निश्छल बनना है,

जो मिल जाय वह प्रभु प्रसाद समझ खाना है,

बस प्रकृति के साथ हंसना गुनगुनाना है,

पुष्प की तरह चेहरा खिला रखना है।


अनुरोध करती है 'श्वेता'

हम सबको भगवान कृष्ण के जीवन से सीखना है,

अच्छा समय हो तो भी मुस्कुराएं,

विपत्ति का समय हो तो भी मुस्कुराएं,

स्वस्थ हों तो भी मुस्कुराएं,

दर्द में हो तो भी मुस्कुराएं,

संसार के कीचड़ से थोड़ा ऊपर उठ जाएं,

कमल के पुष्प की तरह निर्मल हृदय बनाएं,

आनंदमय वृद्धावस्था का आनंद उठाएं,

ब्रह्मांड के कण कण से जुड़ जाएं।


🙏श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

कविता - सास बहू अब होश में आओ

 कविता - सास बहू अब होश में आओ


सास बहू का झगड़ा,

रोज़ रोज़ का रगड़ा,

जानते हो कारण क्या है?

पहचानते हो इसकी जड़ क्या है?


जब पहचान मात्र,

अमुक की पत्नी,

अमुक की खानदान की बहू,

जब सास का भी हो,

और बहू का भी हो,

तो झगड़ा तय है,

अस्तित्व लफ़ड़ा तय है...


उद्देश्य विहीन सास हो,

उद्देश्य विहीन बहु हो,

किचन व घर के अतिरिक्त,

कोई और चिंतन नहीं हो,

तो छोटी छोटी बातों पर,

लफ़ड़ा तय है,

घर की सत्ता हथियाने की,

सुनिश्चित जंग तय है...


सास बहू यदि दोनों समझदार हो,

स्वयं की उनकी अलग स्वतंत्र पहचान हो,

दोनों के पास अपने,

कुछ विशेष जीवन लक्ष्य हों,

तो कोई झगड़ा नहीं होगा,

तब कोई लफ़ड़ा नहीं होगा..


साईकिल के लिए वही लड़ेंगे,

जिनके पास बाईक या कार नहीं होगी,

किचन व घर की सत्ता के लिए वही सास बहू लड़ेंगी,

जिनके पास अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं होगी,

पराधीनता और आत्महीनता ही,

असली झगड़े की जड़ है,

उम्र भर अपमानित हुए बहु बनकर,

कम से कम सास बनकर तो बहु पर शासन का सुख तो मिले,

कम से कम किसी एक से तो ऊपर होने की खुशी तो मिले...


जो बहु कभी अपमानित न होगी,

वह सास बनकर अपनी बहु को अपमानित न करेगी,

अक्सर वही सास अपनी बहू को अधिक कष्ट देती हैं,

जो उम्रभर वही दर्द व पीड़ा को सहकर,

 बहु से सास का सफ़र तय करती हैं।


अनुरोध करती है 'श्वेता',

हे सास - बहू!

अब तो चेत जाओ, होश में आओ,

मदहोशी और अज्ञानता से बाहर आओ,

मित्रवत चैन से जियो,

और चैन से एक दूसरे को जीने दो,

अपने अनमोल जीवन को,

व्यर्थ लड़ाई झगड़े में यूं नष्ट मत होने दो..


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - मौत तू अटल है, सदा ब्रह्मसत्य है,

 मौत तू अटल है, 

सदा ब्रह्मसत्य है,

फिर भी तुझसे भयभीत,

क्यों दुनियां में हर सख़्श है...


तू चिरनिंद्रा है,

तू गहन विश्राम है,

फ़िर भी तुझसे दूर भागता,

क्यों हर इंसान है...


जब तक 'मौत' तू सामने आती नहीं,

जिंदगी की कद्र इंसान करता नहीं,

मोह-माया की टेंशन में तिल तिल मर रहा है,

अनमोल जिंदगी की उपेक्षा कर रहा है...


मौत जिसे तू सदा याद है,

उसे जिंदगी से कोई शिकवा नहीं,

वह हर श्वांस ख़ुशी से ले रहा है,

उसे झूठी शान-शौकत की परवाह नहीं...


हे मृत्यु! 'श्वेता' तुझ पर कविता लिखकर,

किसी को भयभीत करना चाहती नहीं,

बस तेरे नाम को याद दिलाकर,

अनमोल ज़िंदगी की अहमियत बताना चाहती है,

जिंदा है जो वह ख़ुशनशीब हैं,

बस यह अहसास दिलाना चाहती है...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 10 August 2022

कविता - जीवित प्रेत बनाम जीवित योगी

 शरीर जिनका बूढ़ा,

और जिनकी इच्छाएं वासनाएं जवान हैं,

जो वर्तमान को अस्वीकारता है,

और अतीत के खंडहरों में जो भटकता है,

जिह्वा जिसकी लालच में गरिष्ठ का भक्षण करती है,

जिह्वा जिसकी कटु वचनों से किचकिच करती है,

जो बेवजह दूसरों के काम में टांग अड़ाता है,

बिन मांगे खीजकर सलाह देता रहता है,

जिनका पेट भारी व मन भारी रहता है,

कहती है 'श्वेता' वह जीवित प्रेत है, 

मानती है 'श्वेता' वह जीवित नरक में है...


शरीर जिनका बूढ़ा,

और जिनकी इच्छाएं वासनाये मृत हैं,

जो वर्तमान के अस्तित्व को स्वीकारता है,

जो वर्तमान में ही संतोष से जीता है,

जिह्वा जिसकी वश में है व मन्त्र जपती है,

जिह्वा जिसकी मधुर वचनों को बोलती है,

जो बस अपने काम से काम रखता है,

बिन मांगे सलाह नहीं देता है,

मांगने पर अनुभवी सलाह देता है,

जिसका पेट हल्का व मन हल्का है,

कहती है 'श्वेता' वह जीवित योगी है,

मानती है 'श्वेता' वह जीवित मोक्ष में है...


हे मन! स्वर्ग व नरक यहीं इसी जीवन में है,

मनःस्थिति से यह निर्मित होता है,

देवत्व उभार लो तो स्वर्ग यहीं है,

असुरत्व उभार लो तो नरक यहीं है,

देवत्व उभारने में, हे मन! जुट जा,

स्वाध्याय सत्संग में, हे मन! लग जा,

हमें मुक्त योगी बना दे,

गुरु के दिखाए राह पर चला दे..


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जीवन देवता की साधना से इस जन्म को सार्थक बनाओ ...

 बुद्धि के कारण,

पशु से श्रेष्ठ बना इंसान,

सद्बुद्धि के कारण,

मानव से महामानव बना इंसान....


भाव संवेदना के कारण,

नर से नारायण बना इंसान,

श्रेष्ठ कर्मों के कारण,

मानव से देवमानव बना इंसान...


चयन जो ग़लत हुआ,

और बुद्धि जो भ्रष्ट हुई,

मानव से पशुमानव बना इंसान,

मानव से नरपिशाच बना इंसान...


कहती है 'श्वेता' हे मन ज़रा सम्हल,

बड़े सोच विचार के ही बढ़ा हर क़दम,

ग़लत विचार और ग़लत चयन से एक न एक दिन,

'पशुमानव' और 'नरपिशाच' बन जाएगा,

सही विचार और सही चयन से एक न एक दिन,

'महामानव' और 'देवमानव' बन जायेगा...


हे मन! विचारों पर नज़र रखो,

यह विचार ही तो कर्म बीज बनेंगे,

विचार हमें कर्म करने को प्रेरित करेंगे,

जैसे कर्म व विचार होंगे वैसी आदतें बनेंगी,

वह आदतें संस्कार बन चित्त में चिपकेंगी,

वह संस्कार हमारे व्यक्तित्व में छलकेगा,

फ़िर वही हमारे व्यक्तित्व में उभरेगा...


हे मन! सावधान हो जाओ,

बुद्धि को सद्बुद्धि में बदलते जाओ,

नित्य ग़ायत्री जप, ध्यान और स्वाध्याय करो,

उपासना, साधना और आराधना का अभ्यास करो,

मानव से महामानव और देवमानव बनने में जुट जाओ,

कहती है 'श्वेता' हे मन! 

जीवन देवता की साधना से इस जन्म को सार्थक बनाओ ...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - भाई बहन का पर्व है रक्षाबंधन

 भाई बहन का पर्व है रक्षाबंधन,

सच्ची मित्रता का पर्व है रक्षाबंधन,

बहन का सच्चा मित्र है भाई,

भाई की सच्ची मित्र है बहन,

एक दूसरे से छोटी छोटी बातों पर लड़े हैं,

फिर भी मदद को एक दूसरे के साथ हर वक्त खड़े हैं,

शिकायतें एक दूसरे से हज़ार है,

फ़िर भी दिल में एक दूसरे के लिए ढेर सारा प्यार है,

कोई बहन पास तो कोई मीलों दूर है,

फ़िर भी आज के दिन सब दिल के क़रीब है,

कलाई पर जिनके आज बंधी राखी है,

वह बहुत सौभाग्यशाली व ख़ुशनशीब हैं,

सनातन धर्म संस्कृति की यही तो खूबसूरती है,

जो त्योहारों के माध्यम से,

हर रिश्तों को बड़ी खूबी से जोड़ती है,

आपकी बहनों की सूची में,

अब श्वेता चक्रवर्ती भी है,

जो आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए,

भगवान से प्रार्थना करती रहती है,

आपके लिए यह रक्षाबंधन पर कविता लिखी है,

भाई बहन के अटूट बंधन की कड़ी लिखी है।


आपकी बहन 

श्वेता चक्रवर्ती

कविता - सुख-दुःख पर जोर नहीं

 सुख वह पल है,

जिसे दिल पाना चाहे,

पर वह बड़ी जल्दी चला जाये...


दुःख वह पल है,

जिससे दिल कभी न चाहे,

वह जीवन में यूं ही चला आये...


हमारे चाहने से,

न दुःख जाता है,

न सुख आता है..


हमारे न चाहने पर,

न सुख ठहरता है,

न दुःख सिमटता है...


जब जिस पर हमारा ज़ोर नहीं,

उसके बारे में क्या सोचना व क्यों सोचना?

कहती है 'श्वेता' हे मन!

सुख व दुःख में सदा एकरस रहना,

जीवन जीने की कला सीखते रहना,

हर पल को बस जी भर जीना,

हर पल में गाते गुनगुनाते रहना...


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...